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क्या आप जानते हैं आंसू बहाने में पुरुष भी कुछ कम नहीं… (Do you know even men are known to cry openly?)

अक्सर सुनने में आता है कि मर्द को दर्द नहीं होता.. कमोबेश कुछ ऐसे ही बात पुरुष के आंसू बहाने को लेकर भी होती है. यदि कोई पुरुष रोता है, तो उसके आंसुओं को लेकर यह उलाहना पहले दी जाती कि क्या औरतों की तरह रो रहे हो… यानी अप्रत्यक्ष रूप से रोना, आंसू बहाना मानो औरतों की ही नियति है.
दरअसल, आंसू निकलने की वजह प्रोलैक्टिन हार्मोन होता है. इसके कारण हमारी आंखों से आंसू निकलते हैं. लेकिन विशेष बात यह भी है कि यह हार्मोन पुरुषों में कम होते हैं. इसी वजह से उनकी आंखों से जल्दी आंसू नहीं निकलते, पर अब ऐसा नहीं है.
सामाजिक दृष्टिकोण से देखें तो पुरुषों की परवरिश इस तरह से होती है कि वह कठोर हैं, मज़बूत हैं. उन्हें कमजोर नहीं बनना है. रोना नहीं है. कुछ तो उनकी परवरिश ही ऐसी होती है और यह सब बातें बचपन से उनके दिलोंदिमाग़ पर हावी रहती हैं. जिसके कारण वे सभी के सामने आंसू बहाने से बचते हैं, जबकि अकेले में भले ही फूट-फूट कर रोएं. परेशानी होने, किसी क़िस्म का दबाव, मानसिक पीड़ा, दिल टूटने, तलाक़, ब्रेकअप, इमोशनल होने पर उन्हें भी रोना आता है. पर वे अधिकतर अकेले में ही ख़ूब आंसू बहाते हैं. पब्लिकली ऐसा इसलिए नहीं कर पाते कि लोग क्या कहेंगे?
जिस तरह का हमारा सामाजिक ढांचा बना है, वहां पुरुषों को रोना मना है, जबकि आज के हालात देखें, तो इसके वपरीत हो रहा है. अब चाहे वह आम इंसान हो या सेलिब्रिटी पब्लिकली रोने से नहीं हिचकिचाते. सभी ने देखा होगा टीवी शो 'सत्यमेव जयते' जिसमें काफ़ी इमोशनल बातें होती थीं, दर्दनाक भावुक कर देनेवाली घटनाएं होती थीं, जो तन-मन को हिलाकर रख देती थीं. ऐसे में अक्सर इसके होस्ट आमिर खान की आंखें भी भर आती थीं. कई बार इमोशनल होकर वे रो भी देते थे.


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इसी तरह जब महान क्रिकेटर कपिल देव पर मैच फिक्सिंग के आरोप लगे थे, तब नेशनल टीवी पर वे सफ़ाई देते हुए इस कदर भावुक होकर दुखी हुए कि रो दिए. अपनी ईमानदारी के बारे में कहते हुए उनकी आंखें बार-बार भर आती थीं. इस तरह की तमाम घटनाएं देखने को मिलती रही हैं, जब फिल्म स्टार, खिलाड़ी, सेलिब्रिटीज़ पुरुष अपनी भावनाओं को कंट्रोल नहीं कर पाए और रो दिए. अब रोना केवल औरतों पर लगा ठप्पा नहीं, अब पुरुष भी सभी के सामने अपने जज़्बातों को रखने में शर्म-संकोच नहीं करते, फिर चाहे वह आंसू बहाना ही क्यों ना हो.
टेनिस के उम्दा खिलाड़ी रोजर फेडरर की एक ख़ास बात रही है कि वे जब भी कोई मैच जीतते या हारते हैं, तो उनके आंखों से आंसू ज़रूर निकल आते हैं, उनकी आंखें भर आती हैं. इस पर रोजर का कहना है कि ख़ुद को इंसान साबित करने के लिए कभी-कभी रोना भी आवश्यक होता है, जिससे लोग यह समझ सके कि आपका दिल भी टूट सकता है.
क्रिकेट में जब भारत ने दूसरी बार वर्ल्ड कप जीता था, तब 'मैन ऑफ द सीरीज़' रहे युवराज सिंह भी अपनी भावनाओं को नहीं रोक पाए और रो दिए थे. उनके साथ तमाम खिलाड़ी सचिन तेंदुलकर, हरभजन सिंह भी भावुक होकर रोए थे. उनकी जीत की ख़ुशी के आंसू को पूरी दुनिया ने देखा था. कप्तान महेंद्र सिंह धोनी ने भी स्वीकारा था कि जीतने के बाद ड्रेसिंग रूम में जाकर वे भी ख़ूब रोए थे.

रिसर्च से हुए चौंकानेवाले खुलासे
लगभग दो हज़ार अमेरिकी पुरुषों पर किए गए अध्ययन से भी यह बात सामने आई है कि आंसू बहाने में पुरुष भी कुछ कम नहीं है. इस अध्ययन में यह पाया गया कि जहां महीनेभर में महिलाएं तीन बार आंसू बहाती हैं, तो वहीं पुरुष चार बार रोते हैं यानी रोने के मामले में वे महिलाओं से एक कदम आगे ही चल रहे हैं.
अधिकतर दिलोंदिमाग़ पर होनेवाले तनाव रोने के मुख्य कारण होते हैं. आपको जानकर आश्चर्य होगा कि मेंटल हेल्थ प्रॉब्लम होने पर सलाह लेने के मामलों में पुरुष महिलाओं को पीछे छोड़ रहे हैं. वन पोल कस्टमर मार्केट रिसर्च के सर्वे में पाया गया कि ब्रेकअप होने पर, दिल टूटने पर दुखी और आहत पुरुषों ने बड़े पैमाने पर मेंटल हेल्थ एक्सपर्ट की सलाह व मदद ली.
ब्रिटिश कोलंबिया यूनिवर्सिटी में हुए एक शोध में भी पाया गया कि बिखरते और तनाव से भरे रिश्ते होने के कारण अधिकतर पुरुषों में मानसिक समस्याएं बढ़ने लगती हैं. यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर डॉ. जॉन ओलिफ, जो पुरुषों के मेंटल हेल्थ पर काम कर रहे हैं का मानना है कि वैवाहिक जीवन में अलग होने या डिवोर्स होने पर पुरुषों में सुसाइड करने की प्रवृत्ति चार गुना बढ़ जाती है.


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रोल रिवर्सल के कारण भी पुरुष अधिक भावुक और संवेदनशील होते जा रहे हैं. महिलाओं और पुरुषों की भूमिकाओं में भी वक़्त के साथ बदलाव आया है. आज जहां स्त्रियां बाहर और ऑफिस के काम को अच्छी तरह से संभाल रही हैं, तो वहीं पुरुष घरेलू कामों और रसोई में अपने टैलेंट को दिखा रहे हैं. इसी रोल रिवर्सल के कारण भी पुरुषों की सोच और भावनाओं में बेहद परिवर्तन आया है. वे अधिक इमोशनल हुए हैं और अपने ग़म, आंसू, अनकहे दर्द को बेबाक़ी से कहने और दिखाने भी लगे हैं. आज की जनरेशन टीनएज लड़के-लडकियां भी एक-दूसरे के प्रति जल्द अट्रैक्ट हो जाते हैं, रिलेशन में आ जाते हैं और जल्दी ही उनका ब्रेकअप भी हो जाता है. यहीं टीनएज लड़के भी अपने दर्द को बर्दाश्त नहीं कर पाते और ग़मगीन होकर बेइंतहा आंसू बहाने लगते हैं.

क्या आप जानते हैं कि आंसू भी तीन प्रकार के होते हैं- रेफलेक्सिव, इमोशनल, कंटीनिअस. इसमें इंसान ही है जो इमोशनल यानी भावुक होकर रो सकते हैं. वैसे भी कभी-कभार रोना भी सेहत के लिए अच्छा रहता है. इससे तनाव कम होने के साथ दिल और दिमाग़ भी दुरुस्त रहते हैं. देखा गया कि रोने के बाद हम हल्का और अच्छा महसूस करते हैं, इसकी वजह तनाव के दौरान उत्पन्न हुए केमिकल्स बाहर निकल जाते हैं.

  • ऊषा गुप्ता

Photo Courtesy: Freepik

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