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ग़ज़ल (Gazal)

दर्दे जिगर मुझे

चाशनी में डुबोना था

मैं कल ख़्वाब में

तेरे दामन से लिपटकर रोया

नींद और बेहोशी के बीच

कोई लम्हा क़ैद था शायद

कौन कहता है मैं तेरी बांहों में

सिमटकर सोया

मौत आती तो लौट जाती दर से

मैं तेरी मन्नत के धागे से उलझकर सोया…

- शिखर प्रयाग

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Gazal

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