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गीत- अबकी नवरात्रि कुछ यूं मनाएं… (Geet- Abki Navratri Kuch Yun Manayen…)

बहुत ज़रूरी काम है ये, भाई मेरे मत झुठलाना
इक बेटी की हंसी खो गई, कहीं मिले तो बतलाना
ओढ़ उदासी की चादर, वो आज बिना खाए सो गई
बड़े जतन से पाली थी, इक बेटी की हंसी खो गई
रोज़ दोपहर, नुक्कड़ वाले स्कूल से वापस आती थी
बैग पटक वो आनन-फानन, मेरे घर आ जाती थी
झाड़ू करती, बरतन मलती, मां का हाथ बंटाती थी
जो भी दे दो वो खा पीकर, पढ़ने को बैठ जाती थी
उसे पढ़ाकर मेरा वजूद भी, थोड़ा सुकून पाता था
अच्छा करने का एहसास, मन को बहुत भाता था
मुंह लटकाए आई इक दिन, मैंने पूछा कुछ टूट गया?
बोली भाई हुआ है इसलिए, मेरा स्कूल छूट गया
मां काम पर जाएगी तो, भाई को कौन सम्हालेगा
अब तो मेरा बस्ता रद्दी से, कोई नहीं निकालेगा
मैं निकली उसकी हंसी ढूंढ़ने, तो स्वयं ही कहीं खो गई
नवरात्रि के अनुष्ठान की, ख़ुशी पलक मूंद सो गई
ये देख कि इतनी बेटियां, इतनी त्रस्त और वंचित हैं
लगा कि देवी मां की आखें, बड़ी दुखी और चिंतित हैं
क्यों न हम सब मिल-जुलकर विद्या धन बांटने की शुरुआत कराएं
क्या सहमत हैं आप कि हम इस बार नवरात्रि कुछ यूं मनाएं...

- भावना प्रकाश

Photo Courtesy: Freepik

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