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सोशल मीडिया रिलेशन: अधूरे रिश्ते… बढ़ती दूरियां… (Impact Of Social Media On Relationships)

 Social Media Relationships
सोशल मीडिया रिलेशन: अधूरे रिश्ते... बढ़ती दूरियां... (Impact Of Social Media On Relationships)
डिजिटल (Digital) होती दुनिया में रिश्ते (Relationships) भी डिजिटल हो चुके हैं. अब तो पति-पत्नी भी आसपास बैठकर सोशल मीडिया (Social Media) के ज़रिए ही एक-दूसरे से बात करते हैं. वहीं दूसरी ओर रियल लाइफ से दूर अब हमारे डिजिटल रिश्ते (Digital Relationships) भी बहुत सारे बन गए हैं, जो हमारे लिए सबसे महत्वपूर्ण भी हो गए हैं, क्योंकि उनमें अलग तरह का आकर्षण है. वहां रोक-टोक नहीं है, वहां हर बात जायज़ है... ऐसे में हमें वो भाते हैं और बहुत ज़्यादा लुभाते हैं. -    सोशल मीडिया एडिक्शन की तरह है, यह बात शोधों में पाई गई है. यह एडिक्शन मस्तिष्क के उस हिस्से को एक्टिवेट करता है, जो कोकीन जैसे नशीले पदार्थ के एडिक्शन पर होता है. यही वजह है कि सोशल साइट्स से दूर रहने को एक तरह से लोग बहुत बड़ा त्याग या डिटॉक्सिफिकेशन मानते हैं. -    यहां पनपे रिश्ते शुरुआत में बेहद आकर्षक और ख़ूबसूरत लगते हैं, क्योंकि सबकुछ एकदम नया लगता है. -    अंजान लोग दोस्त बनते हैं और उनके बारे में सबकुछ जानने को आतुर हो जाते हैं. -    न स़िर्फ उनके बारे में हम जानना चाहते हैं, बल्कि अपने बारे में भी सबकुछ बताने को उतावले रहते हैं. -    यहां हमें इस बात का आभास तक नहीं होता कि इनमें से कौन, कितना सच बोल रहा होता है? अपने बारे में कौन किस तरह की जानकारी साझा कर रहा होता है और उनका इरादा क्या होता है. -    डिजिटल रिश्तों में सबसे बड़ा ख़तरा फ्रॉड या धोखे का होता है. यहां कोई भी आपको आसानी से बेव़कूफ़ बना सकता है. -    दरअसल, जो सोशल मीडिया के रिश्ते हमें इतने भाते हैं, वो उतने ही अधूरे होते हैं. कई बार तो साल-दो साल गुज़रने के बाद पता चलता है कि जिससे हम बात कर रहे थे, वो तो ये था ही नहीं. -    इतने फेक अकाउंट्स, इतनी फेक आईडीज़, इतना दिखावटी अंदाज़... पर यही सब हमें इतना रियल लगता है कि अपने रिश्तों में दूरियां बढ़ाकर हम इन नक़ली रिश्तों के क़रीब जाते हैं. -    एक स्टडी में यह बात सामने आई है कि जो लोग सोशल साइट्स पर अधिक समय बिताते हैं, वो अधिक अकेलापन और डिप्रेशन महसूस करते हैं, क्योंकि जितना अधिक वो ऑनलाइन इंटरएक्शन करते हैं, उतना ही उनका फेस टु फेस संपर्क लोगों से कम होता जाता है. यह स्टडी यूनिवर्सिटी ऑफ मिशिगन द्वारा की गई थी. -    आपसी रिश्तों में हम पर बहुत सारी ज़िम्मेदारियां और जवाबदेही होती है, जबकि सोशल मीडिया रिलेशन इन सबसे मुक्त होते हैं, तो ऐसे में ज़ाहिर है ये रिश्ते हमें अच्छे लगने लगते हैं. -    इन रिश्तों का मायाजाल ऐसा होता है कि हम इन्हें अपने पल-पल की ख़बर देना चाहते हैं और अपनी लाइफ को बहुत हैप्पनिंग दिखाना चाहते हैं, जबकि रियल रिश्तों में हमारी दिलचस्पी कम होने लगती है. -    हम भले ही डिजिटल रिश्तों में अपनी ख़ुशियां ढूंढ़ने की कोशिश करें, लेकिन सच्चाई तो यही है कि ये सबसे अधूरे रिश्ते होते हैं, क्योंकि ये झूठ की बुनियाद पर अधिक बने होते हैं. -    इनमें कई आवरण और नक़ाब होते हैं, जो परत दर परत धीरे-धीरे खुलते हैं और कभी-कभार तो हमें पता भी नहीं चलता और हम फरेब के मायाजाल में फंसते चले जाते हैं. -    रियल रिश्तों में हमारा कम्यूनिकेशन कम होने लगता है और प्यार की गर्माहट भी घटती चली जाती है. जब तक होश आता है, तब तक बहुत कुछ हाथ से निकल चुका होता है.
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Social Media Relationships इस तरह छलता है सोशल मीडिया का रिश्ता... मुंबई की रहनेवाली 35 वर्षीया आशा यूं तो अपनी  ज़िंदगी से और शादी से ख़ुश थी, पर कहीं न कहीं उसे सोशल मीडिया की ऐसी लत लग गई थी कि वो वहां अपनी ज़िंदगी के अधूरेपन को कम करने की कोशिशों में जुट गई थी. उसे हमेशा शिकायत रहती थी कि उसका पति उसे पूरा समय नहीं दे पाता. वो उसको पहले की तरह पैंपर नहीं करता... ऐसे में वो एक लड़के के संपर्क में आई. उसका नाम राजेश था. उसकी राजेश से रोज़ बातें होने लगीं. ये बातें अब इतनी बढ़ गई थीं कि मुलाक़ात करने का मन बनाया. आशा का 5 साल का बेटा भी था, पर उसने किसी तरह अपने पति से झूठ कहा कि वो ऑफिस की तरफ़ से ट्रेनिंग के लिए दूसरे शहर जा रही है. वो राजेश के साथ होटल में रहने गई, तो उसे पता चला कि वो अकेला नहीं आया. उससे मिलने उसके साथ उसके दो दोस्त भी हैं. ये पहला झटका जो आशा को लगा. उसके बाद राजेश ने उसे समझाया कि वो सब अलग कमरे में रहेंगे. आशा मान गई. राजेश उसको शहर में साथ घूमने के लिए कहता, तो आशा मना करती, क्योंकि इसी शहर में वो पति से झूठ बोलकर रह रही है, तो एक डर था मन में कि कहीं कोई देख न ले. अगले ही दिन राजेश के साथ आशा की बहस हो गई. आशा को महसूस होने लगा कि राजेश की सोच बहुत पिछड़ी हुई है. वो चैटिंग में भले ही मीठी-मीठी बातें करता था, पर अब रू-ब-रू उससे मिलकर अलग ही व्यक्तित्व सामने आ रहा है. राजेश का सोचना था कि जो वो बोले, आशा को आंख मूंदकर वही करना चाहिए. आशा आत्मनिर्भर महिला थी. उसे इस तरह के व्यवहार की आदत भी नहीं थी, क्योंकि उसका पति बेहद सुलझा हुआ और शालीन था. अब आशा को महसूस हुआ कि उससे इस झूठे, अधूरे-से रिश्ते के लिए अपनी शादी को दांव पर लगा दिया. आशा को यह भी डर था कि कहीं राजेश उसे ब्लैकमेल न करे, पर उसने राजेश से बात करके अपने सारे रिश्ते ख़त्म किए और अपने घर लौट आई. इस घटना ने आशा को बुरी तरह हिला दिया, लेकिन उसे यह बात समझ में आ गई कि रियल और डिजिटल रिश्तों में कितना अंतर होता है. पति भले ही व्यस्तता के चलते समय न दे पाते हों, पर वो एक भले इंसान हैं और आशा का साथ कभी नहीं छोड़ेंगे, जबकि राजेश एक दंभी पुरुष था, जो स़िर्फ आशा का फ़ायदा उठाना चाहता था. कुछ इसी तरह का केस मालिनी का भी था, लेकिन वहां मालिनी के पति ने उसका झूठ पकड़ लिया था और मालिनी का तलाक़ हो गया था. उसके बाद जिस लड़के की वजह से मालिनी ने पति से फरेब किया था, उस लड़के ने भी मालिनी से पल्ला झाड़ लिया. जबकि मालिनी का कहना है कि वो पहले कहता था कि दोनों शादी कर लेंगे. इस तरह के तमाम वाकये इस तरह के रिश्ते के अधूरेपन और रियल रिश्तों में बढ़ती दूरियों का संकेत देते हैं. ऐसे में बेहतर होगा कि संतुलन व सामंजस्य बनाकर ही हर चीज़ का इस्तेमाल किया जाए, वरना जो चीज़ वरदान है, उसे हम ख़ुद ही अपने लिए अभिशाप बना लेंगे.

- शौर्य सिंह

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