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काव्य- … जबकि तुमने बचाए रखा मनुष्यता को! (Kavay- … Jabki Tumne Bachaye Rakha Manushyta Ko!)

सुनों कविताओं.. (मन का विश्वास)
जबकि
हिम्मत बंधाने की बजाय
दहशतों के कारनामे गिना रहे थे लोग
तुमने प्रेम से सहलाये कंधे
मनुष्यता के
तुमने उखडती सांसों को बचाया
सांत्वनाओं के ऑक्सीजन से

जबकि
हम बंद रहे
अपने ही घर में
तुमने खुलेआम
ज़ारी रखी
सभी से वार्तालापें मन की
… और नहीं डगमगाने दिया
भीतर का सकारात्मक रुझान
किसी भी क़ीमत पर

सुनों कविताओं..
जबकि
हर कहीं गिनीं जा रही हैं
सिर्फ़ संख्याएं ही
तुमने कहीं-न-कहीं बचाए रखा
मनुष्यता को
सही से…

नमिता गुप्ता 'मनसी'

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