नव वर्ष की पावन बेला मन मेरा तो हर्षित है
नए सूर्य की आभा से मानो सब आलोकित है
उम्मीद और आशा की ओढ़ चुनर ये आया है
स्वागत में अल्लाहदित इसके हवाओं ने गीत गाया है
चहुं ओर उल्लास है आनंदमयी प्रकाश है
चांद और तारों के संग झूमता आकाश है
निराशा के घोर तम का तर्पण आओ करते हैं
पुष्प आशा के नव वर्ष को सब मिल अर्पण करते हैं
बिखर गया जो गए साल में फिर से उसे संजोते हैं
उजड़ गया था चमन हमारा नई फसल फिर बोते हैं
ग़म में अश्रु बहुत बहाए अब ख़ुशियों की बारी है
नव चेतना से संचित हो जीने की तैयारी है
वर्ष था संघर्षोंभरा मुश्किलों का जोर था
सीखा गया जो हमें भूले अपनेपन का दौर था
खोई थी पहचान हमारी स्वयं से नाता जोड़ गया
हम ही श्रेष्ठ धरा पर इस भ्रम को कैसे तोड़ गया
चिरनिद्रा में सोकर हम तो भौतिकता में खोए थे
प्रतिफल मिला हमे वो ही जो बीज हमने बोए थे
सरिता का नीर स्वच्छ कलकल पंछियों का मधुर गान
कोरोना आया कैसा कुदरत से कराई पहचान
जीवन का अनूठा सबक गत वर्ष जाते दे गया
पर थे जो कुछ अनमोल पल वो छीन हमसे ले गया
जो चला गया, बीत गया, वो था कल पुराना
दृढ़ संकल्पों की ख़ुशबू से महकेगा नया ज़माना
सकारात्मक सोच की उड़ान आओ भरते हैं
नव भावों के नव सृजन से नव वर्ष का आगाज़ करते हैं…
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