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कविता- नव वर्ष की पावन बेला… (Kavita- Nav Varsh Ki Pawan Bela…)

Kavita

नव वर्ष की पावन बेला मन मेरा तो हर्षित है
नए सूर्य की आभा से मानो सब आलोकित है

उम्मीद और आशा की ओढ़ चुनर ये आया है
स्वागत में अल्लाहदित इसके हवाओं ने गीत गाया है

चहुं ओर उल्लास है आनंदमयी प्रकाश है
चांद और तारों के संग झूमता आकाश है

निराशा के घोर तम का तर्पण आओ करते हैं
पुष्प आशा के नव वर्ष को सब मिल अर्पण करते हैं

बिखर गया जो गए साल में फिर से उसे संजोते हैं
उजड़ गया था चमन हमारा नई फसल फिर बोते हैं

ग़म में अश्रु बहुत बहाए अब ख़ुशियों की बारी है
नव चेतना से संचित हो जीने की तैयारी है

वर्ष था संघर्षोंभरा मुश्किलों का जोर था
सीखा गया जो हमें भूले अपनेपन का दौर था

खोई थी पहचान हमारी स्वयं से नाता जोड़ गया
हम ही श्रेष्ठ धरा पर इस भ्रम को कैसे तोड़ गया

चिरनिद्रा में सोकर हम तो भौतिकता में खोए थे
प्रतिफल मिला हमे वो ही जो बीज हमने बोए थे

सरिता का नीर स्वच्छ कलकल पंछियों का मधुर गान
कोरोना आया कैसा कुदरत से कराई पहचान

जीवन का अनूठा सबक गत वर्ष जाते दे गया
पर थे जो कुछ अनमोल पल वो छीन हमसे ले गया

जो चला गया, बीत गया, वो था कल पुराना
दृढ़ संकल्पों की ख़ुशबू से महकेगा नया ज़माना

सकारात्मक सोच की उड़ान आओ भरते हैं
नव भावों के नव सृजन से नव वर्ष का आगाज़ करते हैं…

Saarika phalor
सारिका फलोर

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