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कविता- प्रेम पत्र… (Kavita- Prem Patra)

लिखा था धड़कते दिल से
और दिया था कांपते हाथों से
मैंने नजरें ज़मीन में ही गड़ा रखी थी
फिर भी पढ़ ली थी
तुम्हारी आंखों में प्रत्त्युत्तर की आस
उम्मीद की डोरियों में उलझी
मनाही की आशंका भी
देख ली थी
जितने धड़कते दिल से तुमने लिखा होगा
उतने ही धड़कते दिल से मैंने पढ़ा था
कई-कई बार पढ़ा
सांसों के आवेग के बीच
धड़कनों की आवाज़ दबाकर
कि कहीं कोई सुन न ले
प्रेम को मुखरित होते हुए
एक काग़ज़ के टुकड़े पर
तब तकिए के नीचे से
शब्द-शब्द प्रेम आता रहा सपनों में
छूता रहा होंठों को
चलता रहा साथ में
कॉलेज के रास्ते भर, क्लास में
और घर पर, बहता रहा रगों में
और आज तक बह रहा है
सुनो वो तुम्हारा प्रेम पत्र
आज भी तकिए के नीचे
महक रहा है…

Dr. Vinita Rahurikar
डॉ. विनीता राहुरीकर

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