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कविता- प्रेम (Kavita- Prem)
बेशक़ीमती हैं पल तुम्हारे
यूं ख़्वाबों में आया न करो
माना ह्रदय में
उमड़ता प्यार बहुत है
कहूं क्या बेबस याद बहुत है
न कहीं उमड़ पाया तो क्या?
आंसुओं संग ढुलक जाएगा
माटी संग मिल हर रुत में
नए-नए रूप धरेगा
आएगी जो वर्षा तो
महक उठेगी धरती
सोंधी महक से
मेरा प्यार ही तो होगा
रुत बदलेगी
रूप-रंग बदल जाते हैं जैसे
वैसे ही मेरा प्यार
धरती की उमस में
कसमसाता-सा
नव रूप धरेगा
आएगी जो शिशिर
रंगबिरंगे फूलों में
छवि उसकी ही होगी
बदलती भावों की तरह
वह फिर बदलेगा
उष्मा कैसे वह इतनी सहेगा?
ताप हरने को
बिखरने से पहली ही
फिर से, वह रंग बदलेगा
हां, तुम देख लेना
मेरा प्यार वहीं कहीं
तुम्हारे ही आस-पास
सफेद लिली के रूप में
हंस रहा होगा कि
तुम छू लो एक बार उसे
- सुनीता नैनम
मेरी सहेली वेबसाइट पर सुनीता नैनम की भेजी गई कविता को हमने अपने वेबसाइट के शायरी संग्रह में शामिल किया है. आप भी अपनी कविता, शायरी, गीत, ग़ज़ल, लेख, कहानियों को भेजकर अपनी लेखनी को नई पहचान दे सकते हैं…
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