बोल रहे लोग कि दुनिया
बदल गई!
कहां बदली दुनिया?
औरत तो एक गठरी तले दब गई..
गठरी हो चाहे संस्कारों की,
रस्मों को, रिवाज़ों को निभाने की
बंधनों की, मर्यादाओं की,
औरत तो वही तक सिमट गई..
तहज़ीब और तालीम
घर हो या बाहर
ज़िम्मेदारी का ढेर
औरत उन्हीं ज़िम्मेदारियां को निभाने में रह गई..
भाव एक, भावनाएं अनेक
मन में आस
काश!
मुझे भी मिले एक आकाश
आकाश छूने की अभिलाषा
औरत तो काल्पनिक दुनिया में रह गई
लोगों के लिए दुनिया बदल गई
औरत जहां थीं वहीं रह गई...
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