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काव्य- एक ख़्वाहिश (Kavya- Ek Khwahish)
उस दिन हम मिले
तो मिले कुछ इस तरह
जैसे मिलती है धूप छाया से
जैसे मोती से सीपी मिल जाए
जैसे सहरा में फूल खिल जाए
यादों के फूलों की ख़ुशबू
यही एहसास-सा दिलाती है
तू हो, तेरा ख़्याल हर पल हो
गर मुलाक़ात हो फिर कभी
तो ज़िंदगी मेरी मुकम्मल हो
काव्य- एक ख़्वाहिश (Kavya- Ek Khwahish)
दिनेश खन्ना
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