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काव्य- सफ़र है ये, कुछ तो छूटना ही था… (Kavya- Safar Hai Yeh, Kuch Toh Chhutna Hi Tha…)

अलग फ़लसफ़े हैं हमेशा ही तेरे, सुन ऐ ज़िंदगी
बटोरकर डिग्रियां भी यूं लगे कि कुछ पढ़ा ही नहीं

ये पता कि सफ़र है ये, कुछ तो‌ छूटना ही था कहीं
पर वही क्यों छूटा, अब तक जो मिला ही नहीं

ये बात और है कि समझा ही लेंगे, ख़ुद को कैसे भी
मैं उसकी राह भी तकूं कैसे, जिसको आना ही नहीं

Kavya

अक्सर गुज़र जाती है ज़िंदगी, रास्ते तय करने में ही
वो जो मिले हैं पहली दफा, लगे आख़िरी भी नहीं

दोस्तों, कशमकश का दौर ये बहुत लंबा है शायद
हक़ जताऊं कैसे, न वो पराया है, पर हमारा भी नहीं…

Namita Gupta 'Mansi'
नमिता गुप्ता 'मनसी'
Kavya

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