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काव्य- विरही मन… (Kavya- Virahi ...
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काव्य- विरही मन… (Kavya- Virahi Mann…)

By Usha Gupta in Shayeri , Geet / Gazal , Short Stories
दुख में भीगे मन के काग़ज़
सूख गयी कलम की स्याही
बीच विरह की लंबी रात है
कैसे मिलन के गीत लिखूँ
एक छोर पर तुम बह रहे
एक छोर पर मेरी धारा
दो दिशाओं में दोनों के मन
कैसे किनारों का गठबंधन लिखूँ
विकल उधर तुम्हारे प्राण है
व्याकुल इधर मेरा अंतर्मन
अश्रुओं से धुँधलाए नयन हैं
कैसे प्रेम के ढाई आखर लिखूँ
कितनी पीड़ा भरी हृदय में
साँसें रुक सी जाती हैं
रोम-रोम विरह में तपता
कहो कैसे श्रृंगार लिखूँ
इन नयनों को दरस दे जाओ
तप्त हृदय को छाँह मिले
आलिंगन से पावन कर दो
जीवन तुम्हारे नाम लिखूँ
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Photo Courtesy: Freepik