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पैरेंट्स अलर्ट: बच्चों को रखें इन निगेटिव चीज़ों से दूर (Parents Beware : Keep Children Away from these things)

आजकल के बच्चे बहुत समझदार और बुद्धिमान हैं. यदि उन्हें बचपन से टॉक्सिक माहौल और निगेटिव चीज़ों से दूर रखा जाए, तो वे न सिर्फ़ अच्छे और सफल इंसान बन सकते हैं, बल्कि अनेक शारीरिक और मानसिक बीमारियों का शिकार होने से बच सकते हैं.

टॉक्सिक मीडिया: डिजिटल वर्ल्ड (सोशल मीडिया, टेलीविजन और वीडियो गेम्स) में आई तेज़ी की वजह से बच्चों को छोटी उम्र से ही हर क्षेत्र में बहुत एक्सपोज़र मिल रहा है. इस एक्सपोज़र से उन्हें जितना फ़ायदा मिल रहा है उस से कहीं अधिक उन्हें नुक़सान पहुंच रहा है, जैसे-

  • बच्चों की पढ़ने-लिखने की क्षमता पर बुरा प्रभाव पड़ रहा है.
  • टॉक्सिक मीडिया के कारण बच्चों का फैमिली टाइम कम हो गया है.
  • उनके पास कम्युनिकेशन करने का समय नहीं है.
  • ख़ुद भी वे अकेलेपन का शिकार हो रहे हैं.
  • डिजिटल वर्ल्ड में बिजी रहने के कारण सोशल एक्टिविटी कम हो गई है.
    -सोशल मीडिया की वजह से बच्चे ज़्यादा कठोर, चिंतित और आक्रामक रहे हैं.
  • डिजिटल वर्ल्ड में हिंसात्मक और नकारात्मकता फ़ैलाने वाले कंटेन्ट भरे पड़े हैं, जिस से उनके मानसिक स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ रहा है.
  • टॉक्सिक मीडिया के ज़रिए बच्चे साइबर बुलिंग का शिकार हो रहे हैं. जिसकी वजह से वे डिप्रेशन और आत्महत्या जैसे भयानक क़दम उठा रहे हैं.

    क्या करें पैरेंट्स?: टॉक्सिक वर्ल्ड में मौजूद हानिकारक कंटेन्ट को ब्लॉक करने के लिए पैरेंट्स, पैरेंटिंग लॉक लगाएं.
  • बच्चों को सुरक्षित और सकारात्मक कंटेन्ट चुनने में मदद करें.
  • उन ऐप्स को ब्लॉक कर दें, जो आपके बच्चे के लिए हानिकारक हो सकते हैं, जैसे- स्नैपचैट.
  • कंटेन्ट फ़िल्टर के माध्यम से आपके बच्चे हानिकारक कंटेन्ट देखने से बच सकते हैं.
  • बच्चों के स्क्रीन टाइम की सीमा तय करें.
  • उन्हें अच्छा सोशल मीडिया यूजर बनना सिखाएं. अच्छा सोशल मीडिया यूजर मतलब- सोशल मीडिया पर क्या पोस्ट करना और क्या नहीं, सोशल मीडिया का सही इस्तेमाल, साइबर फ्रॉड से बचने के तरीक़े आदि.
  • फ़ोन, टैबलेट और लैपटॉप के इस्तेमाल को केवल फैमिली में ही शेयर करें. इससे पैरेंट्स अपने बच्चे की ऑनलाइन गतिविधियों पर नज़र रख सकते हैं.
  • बच्चों को बताएं कि वे अनजान लिंक और फ़ाइलों पर क्लिक न करें और न ही उन्हें डाउनलोड करें.
  1. अपने बारे में नकारात्मक बातें बोलना (निगेटिव सेल्फ टॉक)
    जैसे-जैसे बच्चे बड़े होते जाते हैं, उन्हें उनके आत्मसम्मान के बारे में बताना बेहद ज़रूरी है. जो बच्चे अपने बारे में नकारात्मक बातें हैं-
  • उनमें हीनभावना आने लगती है.
  • कॉन्फिडेंस कम होने लगता है.
  • वे सोशल होने से बचते हैं.
  • कम बोलते हैं.
  • जब बच्चे अपने बारे में नकारात्मक बातें करते हैं, तो वे ख़ुद के विषय में अच्छी बातें भूलने लगते हैं.

    क्या करें पैरेंट्स? - निगेटिव सेल्फ टॉक का मनमस्तिष्क पर गहरा असर पड़ता है, इसलिए बच्चे को समझाएं कि अपने बारे में निगेटिव टॉक न करें.
  • बच्चे से ख़ुद के लिए पॉजिटिव, मोटिवेशनल बातें, स्ट्रॉन्ग बनाने वाले वाक्य और मंत्रों का उच्चारण करवाएं, जैसे- मैं कर सकता हूं. मैं बुद्धिमान, बहादुर और निडर हूं. इन बातों से बच्चे को नकारात्मक विचारों को दूर करने में मदद मिलेगी.
  • बच्चे में अपने विचारों को पहचानने की क्षमता विकसित करने में मदद करें.
  • जब बच्चा सामान्य और सहज अवस्था में हो, तो उससे निगेटिव सेल्फ टॉक के बारे में खुलकर बात करें.
  • सबसे अहम बात ये है कि जब बच्चा अपनी क्षमताओं और डर के बारे में बात करता है, तो पैरेंट्स उसे ज़रूर सुनें. नज़रअंदाज़ या बचने की कोशिश न करें.

3. बहुत अधिक अपेक्षा रखना
अधिकतर माता-पिता अपने बच्चों से इतनी अधिक अपेक्षाएं रखते हैं कि उन पर दबाव बनने लगता है और वे असफलताओं से डरने लगते हैं.
क्या करें पैरेंट्स? : पैरेंट्स बच्चे की काबिलियत को पहचानकर उसे अपनी क्षमता के अनुसार काम करने दें.

  • उस काम को अच्छे से करने के लिए बच्चे को प्रेरित करें.
  • उसे समझाएं कि असफलताओं से डरने की बजाय उनसे सीखें.
  • बच्चे को सफलता प्राप्त करने के सूत्र बताएं.

4. बुरी संगत
दोस्तों की संगति का बच्चों पर गहरा असर पड़ता है. ख़ास तौर से बुरी सगंति का. बुरी सगंति बच्चे के मानसिक विकास को प्रभावित करती है.

क्या करें पैरेंट्स?: रोज़ाना बच्चे के साथ कम-से-कम 30 मिनट ज़रूर बिताएं. इस दौरान बच्चे से उसके बारे में, दोस्तों, पढाई-लिखाई के बारे में बात करें.

  • पैरेंट्स बच्चे के साथ अपनी बातें शेयर करें, तभी बच्चे भी उन्हें अपनी बातें बताएंगे.
  • बच्चे को सीधे तौर पर ग़लत बात पर न टोकें.
  • गलती करने पर बच्चे को डांटने-चिल्लाने के बजाए प्यार से समझाएं.
  • उन्हें बुरी संगत के दुष्प्रभाव बताएं.
  • पढ़ाई के अतिरिक्त उन्हें एक्टिविटी क्लास में डालें.
  • बच्चे को मोबाइल न दें.

5. स्ट्रेस
आजकल जिस तरह का लाइफस्टइल हम जीते हैं, उस से बड़े ही नहीं, बच्चों के जीवन में तनाव बढ़ने लगा है. अधिकतर पैरेंट्स बच्चों पर अपने सपने पूरे करने का स्ट्रेस थोपते हैं. जो कि सही नहीं है.
क्या करें पैरेंट्स? : जब भी बच्चा तनावग्रस्त लगे, तो बच्चे से प्यार से उसकी परेशानी को पूछें. बच्चे की बात ध्यान से सुनें.

  • तनावग्रस्त बच्चे से पूछें कि उसकी शारीरिक और मानसिक स्थिति कैसी है, जैसे- मांसपेशियों में दर्द, सिरदर्द, पेट खराब होना, बेचैनी, चिड़चिड़ापन, ख़राब मूड, मन में नकारात्मक विचार आना, ध्यान लगाने में कठिनाई हो रही है?
  • तनाव की स्थिति में बच्चे को ये विश्वास दिलाएं कि आप उसके साथ हैं.
  • बच्चे को तनाव कम करने के तरीक़े, जैसे- ध्यान, योग, माइंडफुलनेस और रिलैक्सेशन तकनीक सिखाएं.
  • तनावग्रस्त बच्चे में तनाव के भावनात्मक और शारीरिक के लक्षण दिखाई दें तो उसे तुरंत बाल मनोचिकित्सक को दिखाएं.

6. बुली
स्कूल और कॉलेज में सब जगह बड़े बच्चे छोटे बच्चों को बुली करते हैं. कई बार बुली का शिकार हुए बच्चे अंदर से इतना टूट जाते हैं, कि उनका आत्मविश्वास और मनोबल टूट जाता है, वे ख़ुद पर भरोसा करना छोड़ देते हैं. स्थिति गंभीर होने पर कुछ बच्चे सुसाइड भी कर लेते हैं
क्या करें पैरेंट्स?: पैरेंट्स बचपन से ही बच्चों को सिखाएं कि अगर कोई बुली करता है तो उन्हें किस तरह से निपटना है.

  • बच्चों में बुली के लक्षण दिखाई दें, तो पैरेंट्स उनका मनोबल बढ़ाते हुए उन्हें मोटिवेट करें.
  • बुलीग्रस्त बच्चे के साथ पैरेंट्स ज़ोर-ज़बरदस्ती न करें.
  • देवांश शर्मा

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