वो शाम और वो लम्हे दुबारा ज़िंदगी में कभी नहीं आए्. उसके बाद जब भी कहीं तबला बजाता हूं, वो लम्हे दिल पर तारी हो जाते हैं और पल भर को धड़कनें बेताल हो उठती हैं.

बारिश की पहली फुहार के साथ ही मन की भिगी मिट्टी से यादों के न जाने कितने अंकुर फूट आते हैं, जाने कितने एहसास जाग जाते हैं. तृप्त करने वाले अनुभवों से मुक्त होने की कामना करता मन आकाश की ओर ताकता है. बरखा जो प्रिय की यादों का भीगा सा एहसास ले आती है अपने साथ. मैं भी आकाश की ओर घंटों तकता रहता हूं.
बादलों में आंखें जाने किसका चेहरा तलाशती रहती हैं. बरसती बूंदों में तन जाने किसके स्पर्श का एहसास कर सिहरता रहता है. वो चेहरा जिसका नाम तक मैं नहीं जानता. वो स्पर्श जिसे मैंने कभी अनुभव किया ही नहीं.
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यह एक संगीत संध्या थी. उस दिन सुबह से ही रिमझिम फुहारें बरस रही थीं. मौसम बड़ा ख़ुशनुमा था. म्यूजिशियंस के अपने ग्रुप के साथ मैं तबले पर संगत कर रहा था. गायक अपनी-अपनी बारी आने पर स्टेज पर आकर गाना गाते. दूसरा या तीसरा गाना था वह- ये शाम मस्तानी मदहोश किए जाए मुझे डोर कोई खींचे, तेरी ओर लिए जाए... आवाज़ और गाने का अंदाज़ इतना पुरकशिश और दिलकश था कि श्रोताओं के साथ हमारा म्यूजिशियन ग्रुप भी झूम उठा.
गाने के बोलों और आवाज़ के जादू में सभी मदहोश से होकर अपने-अपने इंस्ट्रूमेंट्स बड़ी तल्लीनता से बजा रहे थे. तभी हॉल का दरवाज़ा धीरे से खुला और वह अंदर आई. जैसे कोई भीगा चांद ज़मीन पर उतर आया हो. उसके दिलकश चेहरे पर पानी की बूंदें यूं चमक रही थीं जैसे किसी फूल पर ओस की नमी झिलमिला रही हो.
एक नज़र स्टेज पर डालकर वह हॉल में पीछे की एक सीट पर ठीक मेरे सामने बैठ गई.

मदहोश शाम अब बहकने लगी थी. अगला गाना था भी तो उसी मिजाज़ का- समा है सुहाना-सुहाना, नशे में जहां है किसी को किसी की ख़बर ही कहां है हर दिल में देखो मुहब्बत जवां है... हां मुहब्बत ही तो हो गई थी मुझे उससे, पहली नज़र की मुहब्बत. जिसका न मैं नाम जानता था, न जिसे आज से पहले कभी देखा ही था. पर नज़र थी कि उसके चेहरे से हट ही नहीं रही थी. मन था कि तबले की थाप से उचटकर उसके आसपास घूमने लगा.
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मन भटका तो तबले की ताल भी भटक गई. ऑक्टापैड और ड्रम बजाते सुदीप्तो दा और सुधीर ने मुझे घूरकर देखा. कीबोर्ड पर बैठे जय ने बिगड़ी ताल संभाल ली. क्षण भर को झेंप कर मैंने तबले पर ध्यान लगाने की कोशिश की. लेकिन अगले ही पल आंखों के साथ ही ध्यान भी उस पर चला गया और मेरा हाथ तबले पर ग़लत पड़ गया.
क्या करूं उसे देखकर जब दिल की धड़कने ही बे ताल हो गई थी तो तबले की ताल कैसे सुर में रह सकती थी. गाने सुनते हुए उसका मगन हो जाना, मुस्कुराना, ख़ुश होकर ताली बजाकर दाद देना, और मैं अपलक उसकी ओर देखता रहता. गिटार, बेस गिटार, बास सब अपने सुर ताल में बज रहे थे, बस एक तबला ही सुर से भटक रहा था.

गाना ख़त्म हुआ तो सुदीप्तो दा ने पूछा, “क्या बात है वरुण तबियत तो ठीक है तुम्हारी? इतने सालों में पहली बार तुम्हारे तबले को बेताल होते सुन रहा हूं.” मैंने मुस्कुराकर उन्हें आश्वस्त किया. क्या कहता... पहली बार ही तो उस दिन किसी को देखकर दिल की धड़कनें बेताल हुई थीं, तो भला तबला कैसे लय में रहता.
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वो चार-पांच घंटे ज़िंदगी के सबसे हसीन थे. वो शाम ज़िंदगी की सबसे ख़ूबसूरत शाम. वो शाम और वो लम्हे दुबारा ज़िंदगी में कभी नहीं आए्. उसके बाद जब भी कहीं तबला बजाता हूं, वो लम्हे दिल पर तारी हो जाते हैं और पल भर को धड़कनें बेताल हो उठती हैं. आज भी बरसती बूंदों में, बादलों में, बारिश की फुहारों भरी शामों में दिल उसे याद करता है.
- विनीता राहुरीकर

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