गर्मी की छुट्टियों में मैं मायके गई थी. वहां बाज़ार में अचानक मेरी मुलाक़ात मेरी पुरानी सहेली रिया से हो गई. रिया को देखकर मेरा मन ख़ुशी से झूम उठा. ज़िंदगी में चाहे कितने ही लोग मिल जाएं, लेकिन स्कूल के दोस्त भुलाए नहीं भूलते.
रिया मेरी ऐसी ही स्कूल की दोस्त थी. बाज़ार में अचानक मिलने पर थोड़ी औपचारिक बात हुई और मैंने उससे कहा, “तुम बिल्कुल नहीं बदली.” सच उम्र की महीन रेखाओं को छोड़कर वह वैसी ही थी, जैसी आज से बीस साल पहले थी. मैंने उसे अपने घर आने का आमंत्रण दिया और हम दोनों ने मेरे घर पर मिलना तय किया.
घर आने पर मेरे ज़ेहन में रिया और उसका पहला प्यार किसी फिल्म की तरह चलने लगा. दरअसल पहले प्यार की वास्तविक अनुभूति मैंने पहली बार रिया में ही देखी थी. बात उन दिनों की है जब मैंने बीएससी फर्स्ट ईयर में एडमिशन लिया था. यूनिवर्सिटी में एडमिशन के बाद पढ़ाई के साथ-साथ कुछ जवां हसीन सपनों का भी आगमन होता है. यहां अक्सर आंखें जीवन की नई मंज़िल तलाश करती हैं.
हम सभी सहेलियां स्कूल के बाद कॉलेज में भी एक साथ ग्रुप में ही जाया करती थीं. रिया भी हमारे साथ कॉलेज जाया करती थी.
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दूध-सा स़फेद गोरा रंग, आकर्षक नयन-नक़्श और सुडौल काया थी उसकी. मैं उसकी बहुत करीबी सहेली तो नहीं थी, लेकिन मेरी उससे अक्सर बातें होती थीं. चूंकि वो पढ़ने में सामान्य ही थी, इसलिए कभी-कभी कुछ पढ़ाई संबधी समस्या मुझसे पूछ लिया करती थी.
जब हम कॉलेज जाते थे, तो हमारे ही कॉलेज का एक लड़का, जिसका नाम रवि था, अक्सर हमें मिल जाया करता था. उसको देखकर रिया का रंग रक्तिम हो जाता था और वो उसे ही देखा करती थी. धीरे-धीरे साथ की चंचल लड़कियों ने उसे रवि का नाम लेकर छेड़ना शुरू कर दिया था. एक दिन हम लैब में एक एक्सपेरिमेंट कर रहे थे, वहां रिया के हाथ पर कोई केमिकल गिर गया, तो रवि एकदम से भागकर आया. उसने सबके सामने रिया से कहा, “लगी तो नहीं, कुछ दवा लेकर आऊं?” उसकी ये बात पूरे कॉलेज में मसाले के साथ फैल गई. रिया और रवि फिर फेमस कपल बन गए.
छोटी जगह थी, बात रिया के पापा को भी पता चली, उन्होंने कुछ दिनों के लिए रिया का कॉलेज आना बंद करवा दिया. एक दिन सुनने में आया कि रिया की शादी उसी शहर में दूसरे लड़के के साथ तय कर दी है.
कुछ दिनों के बाद रिया अपनी शादी का इनविटेशन देने ख़ुद ही आ गई. उस समय मैंने उसकी अधूरी प्रेम कहानी का ज़िक्र छेड़ना उचित नहीं समझा. कुछ समय के बाद मेरी भी शादी हो गई और मैं अपनी गृहस्थी में व्यस्त हो गई. आज बीस साल बाद रिया मिलने आई, तो बातों ही बातों में मैंने उससे पूछा, “रवि कैसा है? तुमसे बात होती है?”
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आज भी उसके चेहरे पर रवि का नाम सुन वही रक्तिम आभा थी, उसने कहा, “नहीं मेरी बात नहीं होती. अब तक दो बार ही मिला है वह. उसने कहा था कि उसकी बेटी का नाम रिया ही रखा है. इससे ज़्यादा मुझे कुछ नहीं पता.”
रिया के पहले प्यार की कसक उसकी आंखों में झलक रही थी. उसको देखकर लग रहा था कि पहला प्यार न भी मिले, तो यादों में और दिल में हमेशा धड़कता रहता है. कुछ अधूरी प्रेम कहानी भी मुकम्मल कहानी हो जाती है.
- रश्मि वैभव गर्ग
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