फिल्म- भूमि
स्टारकास्ट- संजय दत्त, अदिति राव हैदरी, शरद केलकर, शेखर सुमन
निर्देशक- ओमंग कुमार
रेटिंग- 3 स्टार

जेल से आने के बाद संजय दत्त की पहली फिल्म है
भूमि. एक ज़बरदस्त कमबैक किया है संजय दत्त ने. उन्होंने एक ऐसा रोल चुना है, जिसमें वो अपनी उम्र का ही किरदार निभा रहे हैं. आइए, जानते हैं कैसी है ओमंग कुमार निर्देशित फिल्म
भूमि.
कहानी
कहानी है पिता अरुण सचदेव (संजय दत्त) की, जो अपनी बेटी भूमि (अदिति राव हैदरी) को बहुत प्यार करता है. भूमि की मां नहीं है, लेकिन अरुण मां और पिता दोनों का प्यार अपनी बेटी को देता है. भूमि की शादी बड़ी ही धूमधाम से कराने की तैयारी भ करता है, लेकिन बारात लौट जाती है, जिसकी वजह है धौली (शरद केलकर) जिसने अपने गुंडों के साथ मिलकर उसकी बेटी का शोषण किया है. अरुण बेटी का इंसाफ़ दिलाने के लिए पुलिस और अदालत के चक्कर भी लगाता है, लेकिन वहां इंसाफ़ नहीं मिलता. इस बाच से दुखी होकर भूमि और अरुण अदालत के चक्कर लगाना बंद कर देते हैं और सब बोतें भुला कर नई ज़िंदगी जीना चाहते हैं, लेकिन समाज उन्हें जीने नहीं देता. इन सबसे परेशान होकर अरुण आखिरकार अपनी बेटी के साथ हुए अन्याय के ख़िलाफ़ अपने तरीक़े से लडता है.
ऐक्टिंग का दम
संजय दत्त की ऐक्टिंग के बारे में कुछ कहने की ज़रूरत ही नहीं है, वो हमेशा की तरह अपने रोल में दमदार लगे हैं. एक प्यार करने वाला पिता और बेटी के सम्मान को बचाने के लिए विलन का सामना करने वाला पिता, इन दोनों ही रोल को बेहतरीन ढंग से उन्होंने पर्दे पर पेश किया है.
अदिति राव हैदरी भी संजय दत्त की बेटी के रोल में अच्छी लग रही हैं और उनका अभिनय भी ज़बरदस्त है.
शरद केलकर के पास भी अच्छे डायलॉग्स हैं, जो फिल्म में उनकी जगह को ख़ास बना देते हैं.
फिल्म देखने जाएं या नहीं?
ज़रूर जाएं. ये फिल्म देखनी तो बनती है. संजय दत्त को इतने लंबे समय बाद पर्दे पर देखकर यकीनन आपको अच्छा लगेगा. इलके अलावा एक अच्छी फिल्म है भूमि, जिसे न देखना फिल्म के साथ ग़लत होगा.
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फिल्म- न्यूटन
स्टारकास्ट- राजकुमार राव, पंकज त्रिपाठी, संजय मिश्रा और रघुवीर यादव
निर्देशक- अमित मसुरकर
रेटिंग- 4 स्टार
रिलीज़ होते ही न्यूटन की टीम को मिली है ख़ुशख़बरी.
न्यूटन को भारत की तरफ़ से आधिकारिक तौर पर ऑस्कर अवॉर्ड्स में एंट्री मिली है. राजकुमार राव न्यूटन के रोल में बेहतरीन लग रहे हैं. आइए, जानते हैं क्या खा़स है
न्यूटन में?
कहानी
न्यूटन (राजकुमार राव) का नाम नूतन कुमार होता है. लड़कियों वाले इस नाम को दसवीं की परिक्षा के दौरान वो न्यूटन में बदल देता है. न्यूटन सरकारी कर्मचारी बन जाता है. एक ईमानदार और हर काम कायदे से करने वाले न्यूटन की ड्यूटी नक्सल प्रभावित इलाके में लग जाती है. उसे नक्सल प्रभावित इलाके में जाकर वोटिंग करवानी पड़ती है. ऊसूलों के पक्के न्यूटन के साथ वहां क्या-क्या होता है? ये जानने के लिए आपको फिल्म देखनी होगी.
फिल्म की ख़ासियत
अमित मसुरकर का निर्देशन बेहतरीन है. लोेकेशन, सिनेमैटोग्राफी भी कमाल की है.
सरकारी कर्मचारी के रोल में राजकुमार राव ने एक बार फिर साबित कर दिया है कि ऐक्टिंग का दम दिखाने के लिए बड़े बैनर और बड़े बजट की फिल्मों की ज़रूरत नहीं होती है.
वोटिंग और इलेक्शन जैसे मुद्दों को गहराई से लेकिन मनोरंजक अंदाज़ में पेश किया गया है.
पुलिस अफसर के रोल में पंकज त्रिपाठी ने बेहतरीन काम किया है. रघुबीर यादव, अंजलि पाटिल और संजय मिश्रा ने भी अपने अभिनय की छाप छोड़ी है.
फिल्म देखने जाएं या नहीं?
ज़रूर देखने जाएं ये फिल्म. अगर आप राजकुमार राव के फैन नहीं भी हैं, तो इस फिल्म को देखने के बाद आप उनकी ऐक्टिंग के कायल हो जाएंगे. इसके अलावा अगर आप कुछ अलग विषय पर फिल्म देखने के शौक़ीन हैं तो ये फिल्म आपके लिए ही है.
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फिल्म- हसीना पारकर
स्टारकास्ट- श्रद्धा कपूर, सिद्धांत कपूर, अंकुर भाटिया
निर्देशक- अपूर्व लाखिया
रेटिंग- 2.5 स्टार
अपूर्वा लाखिया निर्देशित हसीना पारकर मोस्ट वांटेड अंडरवर्ल्ड डॉन दाऊद इब्राहिम की बहन हसीना पारकर की कहानी है. आइए, जानते हैं कैसी है फिल्म.
कहानी
कोर्ट रूम के इस ड्रामे को अच्छे से पेश नहीं कर पाए हैं अपूर्वा. सबसे अहम् बात ये है कि अंत तक फिल्म में वो यही समझा नहीं पाए कि वो दाऊद के परिवार को गलत दिखाना चाहते हैं या सही. फिल्म में दाऊद के क्रिमिनल से आंतकी बनने की कहानी नज़र आएगी. दाऊद के रोल में हैं श्रद्धा कपूर के भाई सिद्धार्थ कपूर, जबकि हसीना पारकर के रोल में हैं श्रद्धा कपूर. दाऊद के डॉन बनने की वजह से उसकी बहन हसीना पारकर को भी कोर्ट तक जाना पड़ता है. ख़ुद को पीड़ित बताने वाली हसीना पारकर की इस कहानी पर यकीन करना मुश्किल है. स्क्रीनप्ले भी बेहद कमज़ोर है. हसीना पारकर से ज़्यादा ये फिल्म दाऊद की कहानी लगती है. कोर्ट रूम का ड्रामा आपको बोर करेगा.
फिल्म देखने जाएं या नहीं?
अगर आप श्रद्धा कपूर के फैन हैं, तो भी ये फिल्म देखने से पहले एक बार सोच लें. श्रद्धा की ऐक्टिंग अच्छी ज़रूर है, लेकिन पूरी फिल्म को देखना केवल समय और पैसों की बर्बादी है.
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