कलाकार- अमिताभ बच्चन, इमरान हाशमी, धृतिमान चटर्जी, अनु कपूर, रिया चक्रवर्ती, क्रिस्टल डिसूज़ा, रघुवीर यादव.
निर्देशक- रूमी जाफरी
रेटिंग- **
जब भी जी चाहते हैं नई दुनिया बसा लेते हैं लोग, एक चेहरे पर कई चेहरे लगा लेते हैं लोग… यह गाना काफ़ी हद तक 'चेहरे' फिल्म पर फिट बैठता है. इसमें भी कई किरदारों के चेहरे पर कई चेहरे हैं. अमिताभ बच्चन, इमरान हाशमी स्टारर फिल्म चेहरे थ्रिलर सस्पेंस मूवी है, जिसमें दोनों ने ही ज़बर्दस्त अभिनय किया है. अमिताभ बच्चन फिल्म की जान हैं और उन्होंने एक शातिर वकील की भूमिका को बख़ूबी अंजाम दिया है.
कहानी शुरू होती है समीर यानी इमरान हाशमी से जो एक बड़े बिज़नेसमैन बने हुए हैं. वह किसी काम के सिलसिले में सफ़र पर रहते हैं. लेकिन ठंडी बर्फीली रात में जंगल के रास्ते पेड़ गिरने से रास्ता जाम हो जाता है और वे फंस जाते हैं. तब एक घर में शरण लेते हैं. वहां पर एक रिटायर जज, अमिताभ बच्चन, दो वकील, तीन लोग के साथ अदालत की सीन क्रिएट करके गेम खेल रहे हैं. वे इस खेल के लिए इमरान हाशमी को भी मनाते हैं. पहले थोड़े ना-नुकुर के बाद इमरान मान जाते हैं. फिर शुरू होता है फिल्म का असली सस्पेंस और ड्रामा. यह एक कोर्ट ड्रामा थ्रिलर मूवी है. सभी कलाकारों ने अपना क़िरदार बढ़िया निभाया है.
अदालत की नाटकीयता के साथ घर में आरोप-प्रत्यारोप के बीच काफ़ी तीखी बहस भी होती है. पक्ष-विपक्ष की अपनी-अपनी दलील. विरोधी एडवोकेट के रूप में अनू कपूर ने लाजवाब भूमिका निभाई है.
अमिताभ बच्चन जब एक के बाद एक रहस्य खोलते हैं. फिर कहीं ना कहीं वह इमरान हाशमी को मुज़रिम साबित करते हैं. इमरान मना करते हैं, लेकिन पता चलता है कि उन्होंने गुनाह किया था, जिसकी सज़ा के लिए बहस चलती है. जाने-अनजाने में इमरान हाशमी इस मकड़जाल में फंस जाते हैं. फिर क्या उनको सज़ा मिलती है. उन्होंने क्या गुनाह किया था… यह तो आपको फिल्म देखने के बाद ही पता चल पाएगा. लतीफ जैदी नाम के एक फौजदारी के वकील के क़िरदार में अमिताभ बच्चन ख़ूब जंचे हैं, इसमें कोई दो राय नहीं है. विशेषकर फिल्म के अंत में इंसाफ और निर्भया कांड जैसे मसले पर उनका लंबा-चौड़ा संवाद हर किसी को प्रभावित करता है.
फिल्म में रिया चक्रवर्ती भी ख़ास रोल में है. सुशांत सिंह राजपूत की इस गर्लफ्रेंड का काफ़ी दिनों से लोगों को फिल्म का इंतज़ार था. फिल्म में रिया का क़िरदार भी कुछ कम रहस्मय नहीं है.
टीवी एक्ट्रेस क्रिस्टल डिसूजा की यह पहली फिल्म है और उन्होंने पूरी कोशिश की ख़ुद को साबित करने की. उसमें कुछ हद तक कामयाब रही हैं.
धृतिमान चटर्जी और रघुवीर यादव ने भी अपनी भूमिकाओं के साथ न्याय किया है.
रूमी जाफरी का निर्देशन तो कमाल का है. उन्होंने दिलचस्पी और रोमांच भरने की पूरी कोशिश की है. कई दृश्य बेहद ख़ूबसूरत बने हैं, लेकिन लोगों के टेस्ट को समझने में चूक गए. फिल्म की कहानी और पटकथा रंजीत कपूर ने लिखी है.
प्रोड्यूसर आनंद पंडित ने एक अच्छी कहानी पर बेहतर फिल्म बनाई है. लेकिन भारतभर में सभी सिनेमा हॉल पूरी तरह से नहीं खुले हैं, इसका खामियाज़ा भी फिल्म को भुगतना पड़ा.
जिस तरह फिल्म का ट्रेलर और प्रोमो हुआ था, उससे दर्शकों को फिल्म से काफ़ी उम्मीद भी थी, पर
फिल्म औसत दर्जे की बनकर रह गई. निर्माता ने भी सोचा था कि कोरोना काल में थियेटरों के बंद रहने पर, अब दोबारा खुलने को लेकर आशा थी कि बड़ी तादाद में फिल्म देखने दर्शक आएंगे, पर ऐसा हो ना सका. लेकिन अमिताभ बच्चन और इमरान हाशमी के फैंस इसे एक बार देखना ज़रूर पसंद करेंगे, ख़ासकर अमिताभ बच्चन के अभिनय को.
इस फिल्म के लिए अमिताभ बच्चन ने कोई फीस नहीं ली. ऐसा दूसरी बार हुआ है, जब अमिताभ बच्चन ने किसी फिल्म के लिए अपनी फीस नहीं ली. इसके पहले संजय लीला भंसाली की फिल्म ब्लैक, जिसमें रानी मुखर्जी ने मुख्य क़िरदार निभाया था, की कहानी अमितजी को इतनी पसंद आई थी कि उन्होंने इसमें काम करने के लिए फीस नहीं ली थी. इसी तरह चेहरे की कहानी से भी वे इतना प्रभावित हुए कि अपनी फीस ना लेने के अलावा उन्होंने शूटिंग के लिए विदेश आने-जाने का ख़र्च भी ख़ुद ही वहन किया था.
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