रेटिंग: ३ ***
कुछ कर गुज़रने का जज़्बा हो, तो मंज़िल आसान हो ही जाती है. कुछ ऐसा ही संदेश देती है तरुण डुडेजा की फिल्म 'धक-धक'. रत्ना पाठक शाह, फातिमा सना शेख, दीया मिर्ज़ा और संजना सांघी इन चारों पर केंद्रित महिला प्रधान यह फिल्म हर उस नारी को देखना चाहिए, जो अपने सपनों को दरकिनार करके जीवन जी रही हैं.
मनप्रीत कौर सेठी, माही, रत्ना पाठक उम्र के चौथे पड़ाव यानी साठ की उम्र में दिल्ली से खारदुंग ला (18000 फीट ऊंचाई), जो लेह में है, को बाइक से सड़क के रास्ते पार करने का ख़्वाब देखती हैं.
इसमें उनकी तीन साथी बनती हैं- स्काई, फातिमा सना शेख, जो बाइकर व यूट्यूबर है.. उज़्मा, दीया मिर्ज़ा, जो बाइक को रिपेयर करने का हुनर जानती है.. मंजरी, संजना सांघी, जिसकी जल्दी अरेंज मैरिज होनेवाली, लेकिन वह उसके पहले अपनी ज़िंदगी के एडवेंचरस को पूरा करना चाहती है...
अलग-अलग पृष्ठभूमि से आई चार अलग तरह की स्त्रियों की अपनी स्वतंत्रता को लेकर यह रोड ट्रिप बेहद दिलचस्प और कई बार रोमांचक मोड़ से होकर गुज़रती है. पहली बार इस तरह की एक्सपेरिमेंट की गई है, जिसमें निर्देशक कामयाब रहे हैं.निर्देशक तरुण ने पारिजात जोशी के साथ मिलकर फिल्म की कहानी लिखी है.
प्रांजल खंढडिया, तापसी पन्नू व आयुष माहेश्वरी निर्मित 'धक धक' फिल्म कई बार दिलों की धड़कन बढ़ाने में भी सफल रही है. श्रीचित विजयन दामोदर की सिनेमैटोग्राफी लाजवाब है. उन्होंने दिल्ली से लेकर लेह तक के प्रकृति, पहाड़ियों, सड़कों, वादियों के दृश्यों को बख़ूबी कैमरे में क़ैद किया है. फिल्म के संवाद, गीत-संगीत प्रभावशाली है, ख़ासकर रे बंजारा... गाना मधुर है.
रत्ना पाठक शाह, फातिमा सना शेख, दीया मिर्ज़ा और संजना सांघी फिल्म की जान है. चारों ने बेहतरीन अभिनय किया है. इसके साथ ही अन्य कलाकारों मेंपूनम गुरंग, अवनीश पांडे, निशंक वर्मा, बेनेडिक्ट गर्रेट व कलिररोइ तजिएफेटा ने भी अपनी भूमिकाओं के साथ न्याय किया है. दो घंटा बीस मिनट की इस फिल्म की थोड़ी सी एडिटिंग की जा सकती थी, मनीष शर्मा इसी में चूक गए.
Photo Courtesy: Social Media