
जब मनोरंजन और चुनौतीपूर्ण उद्देश्य के चलते कोई फिल्म बनाई जाए और विवादों में भी घिर जाए, तो सुर्ख़ियां बटोरने के साथ-साथ उत्सुकता का विषय भी बन जाती है. यही सब हो रहा है तुषार अमरीश गोयल के निर्देशन में बनी अभिनेता परेश रावल की लाजवाब अदाकारी दिखाती फिल्म ‘द ताज स्टोरी’ परेश रावल जो एक गाइड विष्णु दास की भूमिका में है. लोगों को ताजमहल दिखाने के साथ-साथ उसकी ख़ूबियों को बयां करते रहते हैं. लेकिन परिस्थितियां तब करवट बदलती हैं, जब इतिहास खंगालते-खंगालते ताज को लेकर मंदिर का मुद्दा उठता है. साथ ही 22 दरवाज़ों का रहस्य भी दिलचस्पी पैदा करता है. फिल्म का कोर्ट सीन मज़ेदार है.

परेश रावल का अभिनय उम्दा है, लेकिन वकील बने जाकिर हुसैन भी अपना जलवा दिखाते हैं. दोनों की जुगलबंदी चुटीले संवाद के साथ चेहरे पर मुस्कुराहट ला देती है. मूवी तो तब से कॉन्ट्रोवर्सी झेल रही है, जब से इसके मोशन पिक्चर्स व ट्रेलर आए थे. परेश रावल का ताजमहल के गुंबद को उठाया जाना और उसमें से शिव की मूर्ति का निकलना कुछ तबको को रास नहीं आया.
किसी ने इसे राजनीति से प्रेरित बताया तो किसी ने सांप्रदायिक दंगे होने व उकसाने को लेकर भी बयान ज़ारी कर दिए. यहां तक की इसके ख़िलाफ़ जनहित याचिका भी दायर कर दी गई. लेकिन कोर्ट के बयान और निर्णय के कारण अब तक स्थिति नियंत्रण में है.

निर्देशक तुषार गोयल जिन्होंने फिल्म की कहानी भी लिखी है, उन्होंने व परेश रावल और जाकिर हुसैन ने भी लोगों से अपील की है कि फिल्म देखने के बाद ही कुछ कहे, वरना आरोप-प्रत्यारोप का सिलसिला तो यूं ही चलता रहेगा. फ़िलहाल तुषार जी लोगों की प्रतिक्रियाओं से बेहद ख़ुश हैं. थिएटर जाकर उन्होंने ख़ुद लोगों के रिएक्शन को देखा और समझा. हमसे बात करते हुए उन्होंने कहा कि दर्शकों को फिल्म पसंद आ रही है, इसकी मुझे बेहद ख़ुशी है. फिल्म को यूं ही वे अपना प्यार देते रहें.

अमृता खानविलकर, नमित दास, स्नेहा वाघ, अखिलेंद्र मिश्रा, शिशिर शर्मा, अनिल जॉर्ज, बिजेंद्र काला, लतिका राज, श्रीकांत वर्मा व सिद्धार्थ भारद्वाज सभी ने अपनी भूमिकाओं के साथ न्याय किया है. सत्यजित हजर्निस की सिनेमैटोग्राफी बेहतरीन है. राहुल शर्मा व राहुल देव नाथ का संगीत कर्णप्रिय है. कैलाश खेर और जावेद अली के गाए गाने माहौल बना देते हैं. निर्माता सीए सुरेश झा की स्वर्णिम ग्लोबल सर्विस प्राइवेट लिमिटेड के बैनर तले बनी ‘द ताज स्टोरी’ में हिंमाशु एम. तिवारी का संपादन सराहनीय है. इतिहास के पन्नो को पलटते आज के संदर्भ में फिल्म को देखने का अनुभव कुछ अलग ही रहता है. आप भी इसका लुत्फ़ उठाएं.
- ऊषा गुप्ता

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