देवी ब्रह्मचारिणी ब्रह्म स्वरूप है.
यहां ब्रह्म का अर्थ तपस्या से है यानी तपस्या का मूर्तिमान स्वरूप है.
यह देवी कई नाम से प्रसिद्ध हैं, जैसे-
तपश्चारणी, अपर्णा, उमा आदि.
सिद्धि प्राप्ति के लिए नवरात्रि के दूसरे दिन मां दुर्गा के ब्रह्मचारिणी स्वरूप की विशेष पूजा की जाती है.
या देवी सर्वभूतेषु मां ब्रह्मचारिणी रूपेण संस्थिता
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः
मां दुर्गा का दूसरा स्वरूप भक्तों व सिद्धों को अनंत फल देनेवाला है.
देवी ब्रह्मचारिणी हिमालय व मैना की पुत्री हैं.
इन्होंने भगवान शंकर को पति के रूप में प्राप्त करने के लिए घोर तपस्या की थी.
इस कठिन तपस्या के कारण ही इनका नाम ब्रह्मचारिणी पड़ा.
इन्हें त्याग व तपस्या की देवी माना जाता है.
इनके दाहिने हाथ में अक्षमाला और बाएं हाथ में कमंडल है.
इनकी पूजा-अर्चना करने से हमारे जीवन में तप, संयम, त्याग व सदाचार की वृद्धि होती है.
इनकी पूजा करने से पहले हाथ में एक फूल लेकर यह प्रार्थना करें-
दधाना करपप्राभ्यामक्षमालाकमण्डलू l
देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्माचारिण्यनुत्तमा ll
इसके बाद देवी को पंचामृत से स्नान कराकर
फूल, अक्षत, रोली, चंदन, कुमकुम अर्पित करें.
देवी को अरूहूल (लाल रंग का एक विशेष फूल) का फूल विशेष रूप से पसंद है, इसलिए हो सके, तो इसकी माला बनाकर पहनाएं.
मान्यता के अनुसार, इस दिन ऐसी कन्याओं की पूजा व आवभगत की जाती है, जिनका विवाह तय हो गया है, पर अभी शादी नहीं हुई है. इन्हें घर बुलाकर पूजन के बाद भोजन कराकर वस्त्र उपहार स्वरूप दिया जाता है.
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नवरात्रि का वैज्ञानिक-आध्यात्मिक रहस्य 2
डॉ. मधुराज वास्तु गुरु के अनुसार, ऋषियों ने नवरात्रि के महत्व को अत्यंत सूक्ष्मता के साथ वैज्ञानिक परिप्रेक्ष्य में समझने और समझाने का प्रयत्न किया. रात्रि में प्रकृति के बहुत सारे अवरोध ख़त्म हो जाते हैं. आधुनिक विज्ञान भी इस बात से सहमत है. हमारे ऋषि-मुनि आज से कितने ही हज़ारों वर्ष पूर्व ही प्रकृति के इन वैज्ञानिक रहस्यों को जान चुके थे.
दिन में आवाज़ दी जाए, तो वह दूर तक नहीं जाएगी, किंतु रात्रि को आवाज़ दी जाए, तो वह बहुत दूर तक जाती है. इसके पीछे दिन के कोलाहल के अलावा एक वैज्ञानिक तथ्य यह भी है कि दिन में सूर्य की किरणें आवाज़ की तरंगों और रेडियो तरंगों को आगे बढ़ने से रोक देती हैं. रेडियो इस बात का जीता-जागता उदाहरण है. कम शक्ति के रेडियो स्टेशनों को दिन में पकड़ना अर्थात सुनना मुश्किल होता है, जबकि सूर्यास्त के बाद छोटे से छोटा रेडियो स्टेशन भी आसानी से सुना जा सकता है.
वैज्ञानिक सिद्धांत यह है कि सूर्य की किरणें दिन के समय रेडियो तरंगों को जिस प्रकार रोकती हैं, उसी प्रकार मंत्र जाप की विचार तरंगों में भी दिन के समय रुकावट पड़ती है, इसीलिए ऋषि-मुनियों ने रात्रि का महत्व दिन की अपेक्षा बहुत अधिक बताया है. मंदिरों में घंटे और शंख की आवाज़ के कंपन से दूर-दूर तक वातावरण कीटाणुओं से रहित हो जाता है. यह रात्रि का वैज्ञानिक रहस्य है, जो इस वैज्ञानिक तथ्य को ध्यान में रखते हुए रात्रियों में संकल्प और उच्च अवधारणा के साथ अपने शक्तिशाली विचार तरंगों को वायुमंडल में भेजते हैं, उनकी कार्यसिद्धि अर्थात मनोकामना सिद्धि, उनके शुभ संकल्प के अनुसार उचित समय और ठीक विधि के अनुसार करने पर अवश्य होती है.
मां अम्बे की आरती
ॐ जय अम्बे गौरी, मैया जय श्यामा गौरी
तुम को निशदिन ध्यावत हरि ब्रह्मा शिवरी. ॐ जय अम्बे…
मांग सिंदूर विराजत टीको मृगमद को
उज्जवल से दो नैना चन्द्र बदन नीको. ॐ जय अम्बे…
कनक समान कलेवर रक्ताम्बर राजे
रक्त पुष्प दल माला कंठन पर साजे. ॐ जय अम्बे…
केहरि वाहन राजत खड़्ग खप्पर धारी
सुर-नर मुनिजन सेवत तिनके दुखहारी. ॐ जय अम्बे…
कानन कुण्डल शोभित नासग्रे मोती
कोटिक चन्द्र दिवाकर राजत सम ज्योति. ॐ जय अम्बे…
शुम्भ निशुम्भ विडारे महिषासुर धाती
धूम्र विलोचन नैना निशदिन मदमाती. ॐ जय अम्बे…
चण्ड – मुंड संहारे सोणित बीज हरे
मधु कैटभ दोऊ मारे सुर भयहीन करे.ॐ जय अम्बे…
ब्रह्माणी रुद्राणी तुम कमला रानी
आगम निगम बखानी तुम शिव पटरानी. ॐ जय अम्बे…
चौसठ योगिनी मंगल गावत नृत्य करत भैरु
बाजत ताल मृदंगा और बाजत डमरु. ॐ जय अम्बे…
तुम ही जग की माता तुम ही हो भर्ता
भक्तन की दुःख हरता सुख सम्पत्ति कर्ताॐ जय अम्बे…
भुजा चार अति शोभित वर मुद्रा धारी
मन वांछित फ़ल पावत सेवत नर-नारी. ॐ जय अम्बे…
कंचन थार विराजत अगर कपूर बाती
श्रीमालकेतु में राजत कोटि रत्न ज्योति. ॐ जय अम्बे…
श्री अम्बे जी की आरती जो कोई नर गावे
कहत शिवानंद स्वामी सुख संपत्ति पावे. ॐ जय अम्बे…
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