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काव्य- मेरे घर के सामनेवाली सड़क (Poem- Mere Ghar Ke Samnewali Sadak)

मेरे घर के सामने वाली सड़क

आगे एक जंगल में जा कर

खो जाती है

तभी वह इतनी उदास

इतनी एकाकी है..

इसके नियमित साथी हैं

भोर की एक किरण

संध्या की लाली

स्वास्थ्य के कुछ दीवाने

दूधवाला और माली..

मेरे घर में ख़ामोशी

ठूंस ठूंस कर भरी है

तब भी मैं अकेली नहीं हूं

पल पल जीती हूं, तुम्हारे साथ बिताए क्षण..

जबकि तुम्हारे घर के सामने इस वक़्त

मोटरें और कारें

चींटियों की क़तार सी रेंगती होंगी

गाड़ी की तीखी चीख

मेरे स्वप्न को चूर चूर कर देती होगी..

कितने एकाकी हो तुम

इन सब के बीच,

कितने विवश हैं हम

विज्ञान के वरदानों के आगे

हमारा प्यार, हमारी भावनाएं

निर्भर करती हैं

हमारे घर के सामनेवाली सड़क पर!..

- उषा वधवा

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Photo Courtesy: Freepik

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