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कविता- होली (Poetry- Holi)

बदली के घूंघट को तोड़, धूप सखी इठलाकर बोली
अब तो मैं मुँह दिखलाऊंगी ही, आने को है होली

बिन मेरे मेरी सखियाँ, चिप्स-पापड़ कैसे बनाएंगी
आंगन में बडियाँ दे-देकर, चुहल न बिखरा पाएंगी

तपिश जो न आई तो, बच्चों को पानी से डराएंगी
सुंदर रंगों में रंगी टोलियाँ, घर-घर कैसे जा पाएंगी

सौहार्द की नौका लेकर, सौजन्य की लेकर पतवार
नेह-नदी में कर लो सब, मिलकर के आनंद-विहार

संदेश होली का ले लेकर, मुझको जाना द्वार-द्वार,
लोगों में अलख जगानी है, क्यों आते हैं ये त्योहार…

भावना प्रकाश

यह भी पढ़े: Shayeri

Photo Courtesy: Freepik

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