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काव्य- प्रेम का समर्पण (Poetry- Prem Ka Samarpan)

मनौती के धागे नहीं  
धूप
दीप
पुष्प भी नहीं 
कुछ पाने की प्रार्थना नहीं
आरती
पाठ 
मंत्र भी नहीं 
सुवासित जल भी नहीं 
रोली 
अक्षत 
चंदन भी नहीं
प्रेम के मंदिर
में 
तुम रीते हाथ
चले आना प्रिये 
और स्वयं 
समर्पित होकर 
स्वीकार 
लेना मेरा 
सम्पूर्ण 
समर्पण
एक गहन 
मौन की
माला लपेटे हुए

- नीरज कुमार मिश्रा

यह भी पढ़े: Shayeri


Photo Courtesy: Freepik


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