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कविता- शिव आराधना (Poetry- Shiv Aradhana)

फागुन कृष्ण चतुर्दशी, शिव का हुआ विवाह।
पूजन जन-जन कर रहा, लेकर हृदय उछाह।।
लेकर हृदय उछाह, पूजते पार्थिव को सब।
रस का बहे प्रवाह, रात्रि शिव की आती जब।
शंभु बने साकार, त्याग कर रूप निरागुन।
भरा भक्ति भण्डार, बड़ा पावन यह फागुन।

करते हैं अभिषेक सब, घृत, दधि मधु ले हाथ।
भांग, धतूरा, बेल, सँग, बिल्वपत्र ले हाथ।
बिल्वपत्र ले हाथ, लोग करते आराधना।
सभी झुकाते माथ, भक्त सब करते वंदन।
जन-जन में उत्साह, सुरुचि से मंदिर सजते।
रसमय भक्ति प्रवाह, संग शिव दर्शन करते।

रात पुनीत बड़ी मन भावन शंभु विवाह बड़ा शुभकारी।
पूजन भक्त करें दिन में भजनामृत धार बहे निशि सारी।
शैलसुता-शिव का गठबंधन दृश्य मनोहर और सुखारी।
मंगल हेतु प्रणाम करें अर्पित गिरिजापति भक्ति हमारी

- प्रवीण त्रिपाठी

Photo Courtesy: Freepik


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