दूर होते क़रीबी रिश्ते
- एक व़क्त था जब शाम का खाना खाते व़क्त घर के सभी सदस्य दिनभर के अपने अनुभवों को एक-दूसरे से शेयर करते थे. लेकिन आज ये नज़ारा बदल गया है. घर के ज़्यादातर सदस्य अपने-अपने मोबाइल फोन में बिज़ी रहते हैं.
- बेडरूम में भी टेक्नोलॉजी रिश्तों पर भारी पड़ रही है. अपने लैपटॉप पर ऑफिस का काम निपटाते पार्टनर के साथ मिलनेवाले पर्सनल स्पेस पर भी टेक्नोलॉजी का कब्ज़ा होता जा रहा है.
- एक सर्वे में लगभग 80% कपल्स ने माना कि डिनर के व़क्त उनका ध्यान खाने से ज़्यादा अपने मोबाइल या लैपटॉप पर रहता है, जिससे कई बातों पर डिस्कशन नहीं हो पाता. बिना डिस्कशन लिए गए फैसलों से दूसरा पार्टनर ख़ुद को उपेक्षित महसूस करता है.
- सर्वे में शामिल 98% लोगों ने माना कि पहले जहां वो 2-4 महीनों में गेट-टुगेदर कर लेते थे, वहीं अब गु्रप चैट व वीडियो कॉन्फ्रेंस पर ज़्यादा समय निकल जाता है और साल-दो साल बाद ही समय निकाल पाते हैं.
- लोग हक़ीक़त से ज़्यादा वर्चुअल वर्ल्ड में ज़िंदगी जीने लगे हैं. अपने आस-पास बैठे लोगों से बातें करने की बजाय सोशल मीडिया से जुड़े लोगों को अपने अपडेट्स देने में ज़्यादा दिलचस्पी लेते हैं.
- त्योहारों पर परिवारवालों से मिलकर त्योहार मनाने या उसका मज़ा लेने की बजाय सोशल मीडिया पर अपडेट करने में लगे रहते हैं.
रिश्तों को दें पर्सनल टच
- रात के खाने के समय को ‘नो मोबाइल टाइम’ बनाएं. कोई भी उस समय मोबाइल या लैपटॉप इस्तेमाल नहीं करेगा.
- शादीशुदा हैं, तो बेडरूम में जब तक आपका पार्टनर नहीं, तब तक सारे काम निपटा लें, उसके बाद का समय उसे दें, न कि अपने वर्चुअल वर्ल्ड को.
- बच्चों के लिए भी नियम बनाएं कि रात को इतने बजे के बाद मोबाइल स्विच ऑफ कर दें और सुकून से सोएं. इससे उनकी हेल्थ पर भी असर नहीं होगा और वो समय से सोएंगे व उठेंगे.
- परिवार या दोस्तों के साथ बात करते व़क्त मोबाइल को बगल में रख दें. अगर बातचीत बहुत लंबी चले, तो भले ही एक बार चेक कर लें, पर बार-बार ऐसा न करें.
फ़ायदेमंद भी है डिजिटल दुनिया
- भले ही दिन-ब-दिन हमारे रिश्ते डिजिटल(Relationships becoming digital) होते जा रहे हैं, पर कहीं न कहीं ये टेक्नोलॉजी हमें जोड़े रखने में मददगार भी साबित होती है.
- न जाने हमारे कितने दोस्त थे, जो स्कूल-कॉलेज में हमसे बिछड़ गए थे, सोशल मीडिया के ज़रिए हम दोबारा उनसे जुड़ गए हैं.
- हमारे ऐसे कई रिश्तेदार हैं, जिन्हें हम फलां मौसी, फलां बुआ के नाम से ही जानते-पहचानते थे, भला हो इस टेक्नोलॉजी का कि अब हम एक-दूसरे से बातें करते हैं और एक-दूसरे की ज़िंदगी से जुड़ भी गए हैं.
- दूर-दराज़ और देश-विदेश के दोस्तों-रिश्तेदारों के जन्मदिन, सालगिरह आदि पर शुभकामनाएं देना आसान हो गया है. उनकी ख़ुशियों में अब हम भी शामिल हो पाते हैं.
- हमारे बड़े-बुज़ुर्ग बरसों पहले बिछड़े अपने दोस्तों व उनके परिवार से जुड़ पा रहे हैं.
- स्मार्टफोन्स और सोशल मीडिया दिलों को जोड़ने का काम भी करते हैं. व्हाट्सऐप, फेसबुक और स्काइप के ज़रिए चाहनेवाले 24 घंटे एक-दूसरे से जुड़े रहते हैं.
- लॉन्ग डिस्टेंस रिलेशनशिप अब दूर नहीं, क्योंकि आप हर व़क्त अपनों के दिल के क़रीब रहते हैं.
- नए रिश्तों को जोड़ने में भी टेक्नोलॉजी काफ़ी मददगार साबित हो रही है. डिजिटल(Relationships becoming digital) दुनिया में बहुतों को अपने हमसफ़र मिल जाते हैं.
- चैट ग्रुप्स के ज़रिए आप अपनों के हमेशा क़रीब रहते हैं.
- परिवार में कोई फंक्शन हो या किसी का जन्मदिन या सालगिरह हर कोई उन्हें अपनी बधाइयां पहुंचाता है और उनकी ख़ुशियों को चार गुना बढ़ा देती है.
- हर रोज़ चैट के ज़रिए सबको एक-दूसरे की ख़बर मिलती रहती है, इसलिए दूरी का एहसास नहीं होता, बल्कि एक-दूसरे से जुड़ाव और बढ़ गया है.
75% महिलाओं ने माना कि मोबाइल उनके रिश्ते को बिगाड़ रहा है
‘स्मार्टफोन्स रिश्ते को किस तरह प्रभावित कर रहा है?’ इस विषय पर अमेरिका की दो यूनिवर्सिटीज़ द्वारा महिलाओं पर हाल ही में सर्वे किया गया, जिसमें 75% महिलाओं ने माना कि मोबाइल उनके रिश्ते को बिगाड़ रहा है. मनोवैज्ञानिकों के मुताबिक पति-पत्नी की गृहस्थी में ‘स्मार्टफोन’ तीसरे पहिए के रूप में शामिल होता जा रहा है, जो उनके रिश्ते के लिए ठीक नहीं.
- सर्वे में शामिल 75% महिलाओं ने माना कि स्मार्टफोन की लत उनकी लव लाइफ के लिए ख़तरा बनती जा रही है.
- 62% महिलाओं ने माना कि जब वो अपने पार्टनर के साथ समय बिताने की कोशिश करती हैं, तो उनका आधा ध्यान अपने मोबाइल पर ही होता है, जिसे वो बार-बार चेक करते रहते हैं.
- 75% महिलाओं ने माना कि टेक्नोलॉजी उनके रिश्ते को बिगाड़ रही है. उनके रिश्ते के बीच टेक्नोलॉजी ने अपनी ख़ास जगह बना ली है.
- अनीता सिंह
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