एक दिन उसे अकेले देखकर प्रियांशु ने उसका हाथ पकड़ लिया, “नीति जानता हूं, बहुत ग़लत कर रहा हूं. अपने परिवार को धोखा दे रहा हूं, मगर क्या करूं. यह सच है कि मैं तुमसे प्यार करने लगा हूं.” यह बात तो नीति भी जानती थी. वह भी उससे अनजाने में प्यार कर बैठी थी, मगर जानती थी कि उसके पापा इस रिश्ते के लिए कभी तैयार नहीं होंगे.
सामने खिड़की खुली हुई थी. वह बाहर देखती जा रही थी. सामने रखी डायरी में कुछ शब्द लिखे हुए थे, जो उसकी दीदी के देवर प्रियांशु ने लिखा था- नीति, आई लव यू!..
नीति की बहन कोमल प्रेग्नेंट थी. उसकी सास काफ़ी बीमार रहती थी, इसलिए उन्होंने ख़ास आग्रह कर मायके से नीति को बुलवाया था. वहां कोमल का देवर प्रियांशु भी छुट्टियों में आया हुआ था. प्रियांशु के साथ नोकझोंक, हंसी-मज़ाक करते हुए ना जाने वह कब उसे अपना दिल दे बैठी, यह उसे भी नहीं पता चला. कोमल की डिलीवरी के एक महीने बाद जब वह वापस घर लौटी, तब उसे अजीब सा महसूस होने लगा. ऐसा लग रहा था कि वह अपना सब कुछ प्रियांशु के नाम कर आई हो.
नीति के ज़ेहन में बार-बार वही लम्हा करवटे बदलने लगता. उस दिन छत पर पतंग उड़ा रही थी. अचानक ही बेख़्याली में रेलिंग के पास पहुंचकर वह तेजी से पतंग काटने को झुकी और संतुलन बिगड़ने के कारण गिरने ही वाली थी कि पीछे से एक मज़बूत हाथ ने उसे रोक लिया था. उसने पीछे देखा, प्रियांशु मुस्कुराते हुए खड़ा था. “ओह! थैंक्स...” पहली बार उसने अपने शरीर में झुरझुरी सी महसूस की.
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“अरे, इतना भी पतंग के पीछे पागल बनने की ज़रूरत नहीं है. अपना ध्यान रखा करो.” तभी बारिश शुरू हो गई.
“मैडम आपको नीचे चलना चाहिए.” इसी तरह प्रियांशु के साथ कई पलों को सजोए हुए एक महीने कैसे बीत गए, उसे पता ही नहीं चला.
एक दिन उसे अकेले देखकर प्रियांशु ने उसका हाथ पकड़ लिया, “नीति जानता हूं, बहुत ग़लत कर रहा हूं. अपने परिवार को धोखा दे रहा हूं, मगर क्या करूं. यह सच है कि मैं तुमसे प्यार करने लगा हूं.” यह बात तो नीति भी जानती थी. वह भी उससे अनजाने में प्यार कर बैठी थी, मगर जानती थी कि उसके पापा इस रिश्ते के लिए कभी तैयार नहीं होंगे. उसने अपना हाथ जल्दी से खींच लिया.
वह थरथराती हुई बोली, “नहीं प्रियांशु यह ग़लत है. हम अपने पापा से कभी भी नहीं बोल पाएंगे और पापा कभी भी इस रिश्ते के लिए हां नहीं कहेंगे.” यह तो प्रियांशु भी जानता था. एक ही घर में दो रिश्तों के लिए उसके माता-पिता कभी तैयार नहीं होंगे. लेकिन उसने ठान लिया कि नौकरी लगने के बाद वह इस रिश्ते के लिए बात करेगा.
तीन साल बीत चुके थे. नीति भी ग्रेजुएशन कंप्लीट कर चुकी थी. घर में उसकी शादी की बात चलने लगी. जहां सारी लड़कियां अपनी शादी की बात सुनकर ख़ुश होती हैं, वहीं नीति मन ही मन दुखी और उदास रहती थी. उसका दिल टूट गया था.
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प्रियांशु लौट आओ तुम! अब तो तुम इंजीनियर भी बन गए हो. तुम ही ने कहा था, हम दोनों एक दूसरे के लिए बने हैं. तुम्हारा प्यार छलावा था, लेकिन तुम्हारे अलावा मैं किसी को अपना नहीं सकती!..
कुछ दिन बीते. नीति की मां नए सलवार-कुर्ती लेकर उसके पास आई, “नीति, इसे पहन लेना. आज शाम हम होटल जा रहे हैं. लड़के वाले आ रहे हैं.” नीति की आंखें बरस पड़ीं.
नीले रंग का सूट, उसका फेवरेट कलर! मगर उसका मन भर आया. कैसी पसंद... मेरी पसंद तो खो गई है... बेमन से जैसे ही उसने होटल में कदम रखा, सामने टेबल पर कोमल और उसके पति शशांक अपने पूरे परिवार के साथ बैठे हुए थे. नीति का दिल ज़ोरों से धड़क उठा. तभी प्रियांशु भी आकर बैठ गया.
कुछ देर बाद कोमल के पति ने नीति और प्रियांशु दोनों से कहा, “तुम दोनों एक-दूसरे से बातें कर लो. अगर कोई ऐतराज़ नहीं है, तो आज ही यह शादी पक्की कर देंगे.”
नीति को विश्वास नहीं हुआ. वह तो लड़के वालों के आने का इंतज़ार कर रही थी.
“हां... हां!..” कहता हुआ प्रियांशु नीति को खींचकर बाहर ले जाने लगा. उसने कनखियों से अपनी भाभी कोमल को देखा और फिर मुस्कुरा कर नीति की ओर देखकर बोला, “बाहर चलें थोड़ी बातचीत कर लेते हैं.” नीति उसके पीछे-पीछे चलने लगी.
अपने घरवालों से थोड़ी दूर हटते ही प्रियांशु ने उसका हाथ पकड़ लिया, “मैंने कहा था ना इन हाथों को मैं छोड़ूंगा नहीं. उम्मीद पर दुनिया टिकी है और देखो मेरी दुनिया मेरे सामने आ गई.”
नीति की आंखों में आंसू आ गए. उसने कांपती हुई आवाज़ में कहा, “अपनी सारी प्रार्थनाओं में मैंने यही मांगा था- लौट आओ प्रियांशु! तुम्हारे बगैर नीति अधूरी है.”
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“हां मैंने भी! मगर मेरी सभी प्रार्थनाओं में मेरी भाभी कोमल ने बड़ी भूमिका निभाई है.” प्रियांशु ने यह कहकर नीति का हाथ थाम लिया.
- सीमा प्रियदर्शिनी सहाय
