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कहानी- आख़िर क्यों… (Short Story- Aakhir Kyon…)

पहली बार उसे लगा पापा बोले या ना बोले उसके सब से अपने हैं. जब कोई अपना कहे चिंता मत कर, मैं हूं तुम्हारे साथ. सच में ज़िंदगी की हर समस्या कितनी आसान हो जाती है.
वह तत्काल बोला, "हां पापा, मैं सुनंदा को प्यार करता हूं और उससे शादी भी करना चाहता हूं. पर न जाने क्यूं ये बात न ममा को पसंद है, न ही सुनंदा की मां को. उनका भी ख़्याल है कि मैं सुनंदा के लिए उपयुक्त वर नहीं हूं.’’

घर के अंदर प्रवेश करते ही अभीक का सामना अपनी मां सुधा से हो गया. उसे देखते ही वे बोलीं, ‘‘आज तो लौटने में काफ़ी देर हो गई."
’’हां, आज थोड़ी देर हो गई. अपने एक दोस्त के साथ काॅफी कैफे में बैठ गया था.’’
उसके बोलते ही सुधा ने कुछ अजीब तरह से व्यंग्यात्मक नज़रों से ऐसे उसे देखा कि उसे थोड़ी घबराहट-सी महसूस होने लगी थी. पता नहीं मां के मन में क्या चल रहा था. उसकी मां थोड़ी उग्र स्वभाव की थी.
‘‘ऐसा क्यों नहीं कहता कि तुम अपने किसी दूसरे दोस्त के साथ नहीं, बल्कि अपनी ख़ास दोस्त सुनंदा के साथ बैठा बातें कर रहा था.’’
‘‘जी… उसी के साथ था, क्योंकि वह मेरी एक अच्छी दोस्त ही नहीं मेरी सलाहकार भी है. आप भी तो उसे पसंद करती हैं. फिर अचानक उससे इतनी वितृष्णा क्यूं?"
अपनी मां के इस तरह के सवाल-जबाब से परेशान-सा वह बोला, तो बात को घुमाते हुए सुधा बोली, "मुझे ठीक-ठाक लगी थी, तो यूं ही कह दिया था कि अच्छी है. पर अच्छी होने से तुम्हारा क्या मतलब है? तुम आज उससे कुछ ज़्यादा ही कंसर्न लग रहे हो? आज की तुम्हारी बातों से क्या अर्थ निकालू कि तुम दोनों के बीच बात दोस्ती से आगे तक बढ़ गई है? कही शादी-वादी का तो इरादा नहीं कर लिए?’’
‘‘अरे ममा, आप भी न… बात को कहां से कहां ले जाती हैं. मेरी उसके साथ सिर्फ़ दोस्ती है, जैसे अन्य लड़कियों से है बस. यह बात मैं कैसे आपको समझााऊं."
उसकी बातें सुन सुधा थोड़ा मुस्कुराते हुए बोलीं, ‘‘चल दोस्ती तक तो ठीक है. मेरा सिर्फ़ इतना कहना है कि तुम सुनंदा से दूर ही रहो. बाकी लड़कियों से मुझे कोई मतलब नहीें है. मैंने कल उसे अपने मम्मी-पापा के साथ देखा था. बड़े उत्साह से सुनंदा ने उनसे मेरा परिचय करवाया, पर मैं उसके पापा विष्णु और मां सुप्रिया, दोनों को पहले से जानती थी. एक नंबर के बेशरम लोग हैं. तरह-तरह के नमूने से भरा पड़ा है इनका पूरा खानदान. हर तरह के अवैध कामों से इनके नाम जुड़ते रहे हैं. इसके दादा पागल होकर मरे, इसकी मां को मिर्गी के दौरे पड़ते थे. मेरा तो एक ही बेटा है, मैं नहीं चाहती कि उन लोगों का साया भी हमारे परिवार पर पड़े, इसलिए इस लड़की से दूर ही रहो.’’
सुनंदा के विषय में अचानक अपनी ममा के बदतेे ख़्यालात से हैरान और परेशान अभीक, अपनी ममा के मन की ग़लतफ़हमी दूर करने के लिए बोला, ‘‘मैं तो कई बार उसके घर गया हूं. वहां सब के सब अच्छे स्वभाव के और अच्छे संस्कारोंवाले खानदानी लोग लगते हैं. आपको ज़रूर कोई ग़लतफ़हमी हुई है."
‘‘चुप कर तू मुझे ही सिखाने चला है. बस, इतना समझ ले कि तुम्हारी शादी उस लड़की सुनंदा से कभी नहीं हो सकती. इस मामले में मैं पूरी तरह गंभीर हूं, इसलिए इसे हल्के से मत लेना."
अपनी मां के तेवर देख कर ही वह समझ गया था कि उनसे अभी कुछ भी कहना-सुनना बेकार था. पास ही उसके पापा प्रभाकरजी भी बैठे हमेशा की तरह अख़बार पढ़ने में मगन थे. ऐसा नहीं था कि पापा, ममा और उसके बीच की बातें सुन नहीं रहे थे, पर एक बार भी ममा की बातों का खण्डन नहीं कर रहे थे. उसके मन में पापा के प्रति ग़ुस्सा भरने लगा था. कुछ तो उसकी तरफ़ से ममा को समझाते.
बिना कुछ बोले तेजी से अपने कमरे की तरफ बढ़ गया.
दूसरे दिन जब वह ऑफिस जाने के लिए घर से निकलनेवाला था, ममा ने एक बार फिर उसे याद दिलाया कि वह सुनंदा से दूर रहे. साथ ही सअधिकार यह भी सुना दिया कि वह जल्द ही उसका विवाह करवा देगी. आज भी पापा हाथों में अख़बार थामें ममा की सारी नसिहतें सुन रहे थे, पर हमेशा की तरह चुप थे. पापा भी नहीं चाहते थे कि वह अभी शादी करें. वह चाहते थे अभी वह अपना करियर बनाए. फिर भी ऐसे कैसे चुप थे. जैसे कुछ सुनाई ही न दे रहा हो.
वह दोनों को सुनाकर बोला, ‘‘नहीं करनी मुझे अभी शादी-वादी.’’
फिर तेजी से सिढ़ियां उतरता अपनी कार की तरफ़ बढ़ गया.
ऑफिस पहुंचा, तो उसका मन उखड़ा-उखड़ा ही था. सुनंदा भी अपने सीट पर आ गई थी, पर न जाने क्यूं वह भी उदास-उदास-सी लग रही थी. लंच में वह एक टेबल पर अभी बैठा ही था कि सुनंदा भी उसी टेबल पर आकर बैठ गई. हमेशा की तरह दोनों अपना-अपना लंच बाॅक्स खोल, लंच शेयर करने लगे, पर दोनों चुप थे शायद अपनी-अपनी बातें शेयर करने की भूमिका बांध रहे थे.


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अभीक अपनी ममा की कही बातों को साफ़ कर लेना चाहता था, इसलिए प्लेट अपनी ओर खींचते हुए उसने ही बोलने में पहल की, "तुम आज सुबह से ही इतनी चुप-चुप सी क्यूं हो? घर में मैं वैसे ही ममा की बातों से परेशान हूं और यहां तुम्हारी चुप्पी से.’’
अभीक की बातें सुन वह चिंतातुर अंदाज़ में बोली, ‘‘तुम्हारी ममा क्या बोल रही थीं? मेरी मम्मी को भी अचानक जाने क्या हो गया है, कल रात से ही मुझे समझा रही है कि मैं तुमसे हमेशा के लिए अलग हो जाऊं.’’
‘‘बिल्कुल कुछ ऐसा ही मेरी ममा भी मुझे समझा-समझा कर परेशान कर रखी हैं. उनका कहना है कि तुम्हारे यहां लोगों को पागलपन के दौरे पड़ते हैं और भी कुछ-कुछ.’’
‘‘तुम्हे शायद पता नहीं कि मेरी मम्मी ने ज्योतिष शास्त्र की पढ़ाई की है. दुर्भाग्य से मेरी मम्मी को तुम्हारे कपाल की बनावट से पता चल गया है कि तुम पर मंगल का प्रकोप है. जो लड़की तुम से शादी करेगी उसकी मृत्यु निश्चत है. वह नहीं चाहती हैं कि उनकी बेटी एक ऐसे लड़के के साथ दोस्ती बढ़ाए और बाद में शादी कर मर जाए, इसलिए अभी से उसे उस लड़के से दूर रहना चाहिए.’’
उसकी बातें सुन अभीक तड़पकर बोला, ‘‘मैं नहीं मानता तुम्हारी मम्मी की बकवास बातों को. पहले तुम्हारी मम्मी मुझे पसंद करती थीं और मेरी ममा भी तुम्हे बहुत पसंद करती थी. फिर अचानक दोनों के आपस में मिलते ही दिमाग़ में ऐसा कौन-सा फ़ितूर समा गया है कि दोनों चाहने लगीं हैं कि हम दोनो एक-दूसरे से अलग हो जाएं. मुझे तो दाल में कुछ काला लगता है.’’
खाना समाप्त कर अभीक दो कप काॅफी ले आया. दोनो काॅफी पीते हुए थोड़ी देर तक गहरी सोच में डूबे रहें. तभी एक गहरी सांस के साथ अभीक बोला, ‘‘मैंने आज तक तुम्हें नहीं बताया कि मैं तुम्हें पसंद करता हूं और तुमसे शादी भी करना चाहता हूं. पर इतनी जल्दी शादी करने के लिए नहीं सोचा था, क्योंकि अभी मैं अपना करियर और संवारना चाहता था. अब ममा को मेरी शादी की भी जल्दी हो गई है.’’
अभीक की बातें सुनते ही सुनंदा थोड़ा हड़बड़ाते और थोड़ा शर्माते हुए बोली, ‘‘क्या तुम सच में मुझे पसंद करते हो और मुझसे शादी करना चाहते हो? या यूं ही मेरा मन रखने के लिए बोल रहे हो.’’
‘‘कैसी बातें करती हो? क्या तुम्हे मेरा प्यार महसूस नहीं होता? इस ऑफिस में दूसरी लड़कियां भी काम करती हैं तुम्हारी तरह की दोस्ती तो किसी और से नहीं है. आश्चर्य है कि फिर भी तुम मेरे प्यार को समझ नहीं सकी. अब एक बात साफ़-साफ़ तुमसे पूछता हूं, क्या तुम मुझसे शादी करोगी?’’
सुनंदा बिना समय गंवाए बोली, ‘‘हां, मैं तुमसे ही शादी करूंगी. तुम मानो या ना मानो पर तुमसे शादी करने का ख़्याल मेरे मन में बहुत पहले से था, बस मैं तुम्हारे पहल करने का इंतज़ार कर रही थी. लेकिन अपने-अपने मांओं को कैसे समझाया जाए?’’
‘‘बस, तुम मज़बूत बनी रहो. मैं कुछ न कुछ करता हूं.’’ वह मुस्कुराते हुए उठ खड़ा हुआ.
घर आया, तो चुपचाप अपने कमरे में आ गया. सुनंदा को अश्वास्त तो कर आया था, पर कैसे क्या करे समझ में नहीं आ रहा था. तभी घर के नौकर सोहन काका ने आकर बताया कि पापा उसे छत पर बुला रहे हैं. वह चौंका पापा क्यों बुला रहे हैं? कोई ख़ास बात होती है तभी पापा बुलाते हैं, वरना घर के सारे मामले ममा ही हल करती थीं. इस घर में हर जगह ममा का ही वर्चस्व था. वह छत पर पहुंचा, तो पापा छत पर लगे झूले पर बैठे थे. उसे देखते ही बोले, ‘‘आओ, यहां बैठो.’’
वह उनकी बगल में जा बैठा. थोड़ी देर की ख़ामोशी के बाद प्रभाकरजी उसके चेहरे पर अपनी नज़र जमाते हुए बोले, ‘‘क्यों उदास हो? ममा की बातों से परेशान हो?‘‘
‘‘नहीं… ऐसी बात नहीं है.’’
‘‘देखो अभी, मैं इस मामले में तुम्हारी ममा की तरह ही पूरी तरह गंभीर हूं. मैं अच्छी तरह जानता हूं कि तुम सुनंदा के आसपास बहुत नज़र आते हो. क्या तुम सुनंदा से प्यार करते हो? उससे शादी करना चाहते हो? सच-सच बताओ, तो सुनंदा से तुम्हारी शादी मैं करवा दूंगा. यह मत भूलो कि तुम्हारे जीवन की हर लड़ाई में मैंने तुम्हारा साथ दिया है बिना कुछ बोले और आगे भी तुम्हारे साथ दूंगा अगर तुम चाहोगे.’’
पहली बार उसे लगा पापा बोले या ना बोले उसके सब से अपने हैं. जब कोई अपना कहे चिंता मत कर, मैं हूं तुम्हारे साथ. सच में ज़िंदगी की हर समस्या कितनी आसान हो जाती है.
वह तत्काल बोला, "हां पापा, मैं सुनंदा को प्यार करता हूं और उससे शादी भी करना चाहता हूं. पर न जाने क्यूं ये बात न ममा को पसंद है, न ही सुनंदा की मां को. उनका भी ख़्याल है कि मैं सुनंदा के लिए उपयुक्त वर नहीं हूं.’’
सारी बातें पापा को बता कर बोला, ‘‘पापा, अब आप ही बताओ कि मैं क्या कंरूं?"
‘‘तुम कुछ नहीं करोगे. अब जो करूंगा, मैं करूंगा. तुम सिर्फ़ इतना करो कि मुझे सुनंदा के पापा का फोन नबंर ला कर दो. कभी हम दोनों क्लासमेट थे."
‘‘सच पापा…’’ वह ख़ुशी के अतिरेक से उछल पड़ा.
उसी समय उसने सुनंदा से फोन नबंर लेकर पापा को दे दिया. फिर तो उस दिन खाने के टेबल पर काफ़ी कोशिशों के बाद भी सुधा सुनंदा के विषय में कुछ भी नसिहतें नहीं दे पाई. दोनों पिता-पुत्र किसी राजनितिक विषय पर उलझे रहें. पिता-पुत्र की दोस्ती देख सुधा हैरान थी. माजरा कुछ समझ में नहीं आ रहा था. कुछ दिनों बाद अचानक एक दिन पापा ने उसके हाथों में एक कपड़े का पैकेट थमाते हुए बोलें, ‘‘इसमें तुम्हारे लिए कुछ कपड़े हैं. कल किसी दोस्त के यहां तैयार होकर अपने दोस्तों के साथ ठीक 11 बजे कोर्ट पहुंच जाना. ममा को कानोंकान ख़बर नहीं होनी चाहिए."
‘‘पर… ममा…’’ वह हकलाते हुए बोला, ममा से छुपाने की बात सुनते ही उसकी आंखों में भय-सा उतर आया था.
उसे यूं डरते देखकर पापा हंसते हुए बोलें, ‘‘अभीक नाम है फिर भी डरते हो.’’
जब अभीक सुनंदा को फोन किया, तो विदित हुआ कुछ ऐसा ही निर्देश सुनंदा को भी दिया गया था. प्लानिंग के मुताबिक़ जब दोनों अपने दोस्तों के साथ कोर्ट पहुंचे, तो दोनों के पापा वहां पहले से मौजूद थे. नंबर आते ही दोनों मैरिज रजिस्ट्रार के सामने पहुंचे. थोड़ी देर में ही शादी की सारी प्रक्रिया पूरी हो गई. दोनों ने बढ़कर दोनों पापा को प्रणाम किया. प्रभाकरजी और विष्णुजी अभी गले मिल ही रहे थे कि गेट पर दोनों की मम्मी अलग-अलग टैक्सी से उतरती नज़र आईं. पास पहुंचते ही सुनंदा और अभीक को शादी के जोड़े में देख दोनों बिफर उठीं. दोनों ने प्रणाम करने बढ़ आए अभीक और सुनंदा को वही रोक दिया.


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सुधा तो उन्हें देखते ही जैसे सुलग उठी, "तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई मेरे मना करने के बाद भी इस लड़की से शादी करने की. मैं नहीं मानती इसे अपनी बहू. देखती हूं कैसे इसे तुम घर में लेकर आते हो.’’
सुप्रिया भी कहां पीछे रहनेवाली थी, ‘‘तू मेरे मना करने पर भी नहीं मानी, तो आज से तुम मेरे लिए मर गई."
तब प्रभाकरजी दोनों को रोकते हुए बोले, ‘‘आप दोनों फ़िक्र मत करो. यह दोनों किसी के घर नहीं जाएंगे. मैंने जो नया फ्लैट बुक किया था, ये दोनो मेरे उसी घर में जाएंगे.’’
चाभी और पता देकर दोनों को दोस्तों के साथ भेज. चारों पास ही पड़े बेंच पर थके-हारे से जा बैठे थे. थोड़ी देर के लिए एक अजीब-सी ख़ामोशी पसर गई थी. सब को विश्वास नहीं हो रहा था कि इस नई पीढ़ी के हाथों फिर से उनके पुराने दिन इकट्ठे हो रहे थे. एक-दूसरे को देखते चारों अपने पुराने दिनों में उतरने लगे थे. वर्तमान सिकुड़ कर अतीत में समाने लगा था.
सबसे ज़्यादा बीती बातें सुधा के मन में सुलग उठी थी. बचपन से ही सुधा व विष्णु एक-दूसरे से बेहद प्यार करते थे और शादी करना चाहते थे. दोनों साथ-साथ पढ़ते काॅलेज में आ गए थे. काॅलेज में उन दोनों की दोस्ती प्रभाकर और सुप्रिया से हुई थी. धीरे-धीरे चारों अच्छे दोस्त बन गए थे, पर इसके साथ ही विष्णु की दोस्ती अब सुप्रिया से ज़्यादा हो गई थी, जिसने सुधा को हाशिये पर ला खडा किया.
ग्रेजुएशन के बाद विष्णु सिविल सर्विस के परीक्षा की तैयारी में लग गया और सुधा ने एमए में दाख़िला ले लिया. एक साल बाद ही विष्णु आईएएस की परीक्षा पास कर ट्रेनिंग के लिए चला गया. उसी दौरान सुधा को पता चला कि विष्णु सुप्रिया से शादी कर रहा है. उसने फोन कर विष्णु को समझााने की बहुत कोशिश की. अपने प्यार का वास्ता दिया, फिर भी विष्णु ने उससे किनारा कर सुप्रिया से शादी कर ली. विष्णु का इस तरह अपने जीवन से पलायन कर जाने की वेदना सुधा के लिए असहनीय हो गई थी. तभी उसके दग्ध हृदय पर मरहम लगाते प्रभाकर से उसकी नज़दीकियां कुछ ज़्यादा ही बढ़ गई थी. फिर दोनों ने शादी कर ली. प्रभाकर से शादी के बाद भी अपने अपमान का दर्द वह भूला नहीं पाई थी. तभी उसने ठान लिया था कि ईश्वर के घर में देर है अंधेर नहीं. जीवन में जब भी मौक़ा मिलेगा वह विष्णु को सबक सिखाएगी. इतने दिनों बाद उसे मौक़ा मिल ही गया था.
तभी प्रभाकर ने बीती हुई बातों का सहारा लेते हुए वहां का सन्नाटा तोड़ा, ‘‘मानता हूं सुधा कि तुम अतीत की ज़्यादतियों और बेइंसाफ़ी से दग्ध थी, फिर भी अपने बच्चे को अतीत के आग में कैसे धकेलनेे को तैयार हो गई? जिससे प्यार करतें हैं उसके फ़ैसले का सम्मान करते हैं, न कि उन्हे बदले की आग में झोंकते हैं. और तुम सुप्रिया कम से कम अपनी बेटी के प्यार की ख़ातिर हमारी भूली-बिसरी दोस्ती की ख़ातिर इस रिश्ते को मान देती… पर नहीं… तुमने भी दोनों बच्चों को जुदा करने की भरपूर कोशिश की. पर हुआ क्या? आज का पूरा सच यही है कि हमारे बच्चों में सही निर्णय की क्षमता है. तुम दोनों के सारे प्रयास विफल कर अपने निर्णय को अंज़ाम दे दिया. अब हमारी भलाई भी इसी में है कि हम उनके निर्णय को स्वीकार कर लें. तुम दोनों इतना ख़ुदगर्ज मत बनो कि कल को हमारे बच्चे भी हमसे दूर हो जाए. उनके प्यार और हसरतों को मिट्टी में मिलाने के बदले उन्हें अपने घर और दिल में जगह दो. अब हम उम्र के उस पड़ाव पर हैं, जहां अतीत गौण हो चुका है. अब कुछ कायम हो सकता है, तो वह है हमारी दोस्ती, जो बच्चों के कारण ही सही हमें क़रीब ले आया है."
थोड़ी देर तक वहां सन्नाटा पसरा रहा. अचानक सुप्रिया और सुधा दोनों उठकर एक-दूसरे के गले लग गई.
इसके साथ ही वातावरण काफ़ी हल्का हो गया. चारों अपने सारे शिकवे-शिकायत भूल चेहरे पर ताज़गीभरे मुस्कान लिए एक नए उत्साह से उठ खड़े हुए थे.

Rita kumari
रीता कुमारी

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