“सिया, तुम कोरी भावुकता में बह रही हो. हमारी तो यह इकलौती संतान है. हमें तो इसे देखना ही है, लेकिन तुम तो अभी मात्र सत्ताइस साल की हो, ख़ूबसूरत हो, ज़हीन हो, इससे तलाक़ लेकर एक नई ज़िंदगी शुरू करो. देखो वरुण भी यही चाहता है, है ना वरुण…”और वरुण ने हां का संकेत देते हुए दो बार अपनी पलकें झपकाई.
“सिया, अब तुम्हें स्वीकार करना ही होगा कि वरुण अब ताजिंदगी बेड रिडेन रहेगा. तुम्हारे सामने पूरी ज़िंदगी पड़ी है, तुम एक ऐसे इंसान के साथ ज़िंदगी कैसे बिता सकती हो, जो न बोल सकता है, न चल-फिर सकता है. जिसके ठीक होने की उम्मीद ना के बराबर है."
"मैंने नेट पर पढ़ा है, ऐसे कई मरीज़ ठीक भी हुए हैं. चमत्कार भी हुए हैं. वह सब कुछ महसूस कर सकता है, देख सकता है, सुन सकता है. मैं उसे ऐसे मुक़ाम पर नहीं छोड़ सकती, जब उसे मेरी सबसे ज़्यादा ज़रूरत है."और सिया अपने पिता के पास से उठ कर उस फ़िजियोथेरेपी सेंटर के दूसरे कमरे में आ गई, जहां उसका पैरालाइज्ड पति वरुण स्यूडोकोमा में लेटा हुआ था और उसके सास ससुर बैठे हुए थे.
उसके ससुर भी उससे बोले, “सिया, तुम कोरी भावुकता में बह रही हो. हमारी तो यह इकलौती संतान है. हमें तो इसे देखना ही है, लेकिन तुम तो अभी मात्र सत्ताइस साल की हो, ख़ूबसूरत हो, ज़हीन हो, इससे तलाक़ लेकर एक नई ज़िंदगी शुरू करो. देखो वरुण भी यही चाहता है, है ना वरुण…”और वरुण ने हां का संकेत देते हुए दो बार अपनी पलकें झपकाई.
“उफ़ पापा, अब बस भी करिए. मेरा फ़ैसला अटल है." और आंखों में उमड़ते आंसुओं को सायास रोकने की कोशिश करते हुए वह भीतर के कमरे में चली गई.
“यह नियति उसे क्या दिखाने पर आमादा है? तीन वर्ष पहले ही तो बड़े धूमधाम से उसका विवाह दिल्ली के नामी अस्पताल में कार्यरत डॉक्टर वरुण से हुआ था. वह कितनी ख़ुश थी. वरुण उसे अपनी पलकों पर सहेज कर रखता. उसके मुंह से कोई बात निकलती नहीं कि उसे झट पूरी कर देता. लेकिन देखते-देखते उसके सोने के संसार को किसी की नज़र लग गई. वर्ष भर पहले एक ऐक्सीडेंट के बाद से वह स्यूडोकोमा में चला गया.
अब उसके अपने माता-पिता और सास-ससुर वरुण को छोड़ उस पर दूसरा विवाह करने के बारे में सोचने के लिए ज़ोर दे रहे हैं. उसकी कोई नहीं सोच रहा. कैसे छोड़ दे वह वरुण को, जो सब कुछ देख, सुन और महसूस कर रहा है. जिसके नाम का कुमकुम उसने लगाया हुआ है. जिसके साथ उसने सप्तपदी के मंत्रों के बीच उसका जीवनभर साथ निभाने के वचन लिए थे.
मन ही मन उसने फिर से अपना निश्चय दोहराया, 'नहीं नहीं, वह किसी की बात नहीं मानेगी. वरुण को बढ़िया से बढ़िया ट्रीटमेंट दिलाएगी. उसे एक बार फिर से ज़िंदगी की दूसरी पारी खेलने के क़ाबिल बनाएगी.'
मन ही मन यह भीष्म प्रतिज्ञा दोहरा अपने बहते आंसू पोंछ वह वरुण के पास पहुंची.
उसका शिथिल हाथ अपनी मुट्ठी में भींच उसकी आंखों में झांकते हुए उससे बोली, “मैं कहीं नहीं जा रही. तुम्हें ठीक होना ही होगा मेरी ख़ातिर. मां-पापा की ख़ातिर. बस तुम्हें अपनी हिम्मत बनाए रखनी है. जब स्टीफन हॉकिंग ने अपनी बीमारी से लड़ते हुए इतना कुछ अचीव कर लिया, तो तुम्हें भी अभी बहुत कुछ अचीव करना है."
सिया को लगा वरुण की आंखों में आस के असंख्य दीप जल उठे.
- रेणु गुप्ता
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