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कहानी- ऐसा तो सोचा ना था… (Short Story- Aisa Toh Socha Na Tha…)

सुनीता ने अपने पति से कहा, "अजय, क्या महिलाएं किसी भी उम्र में सुरक्षित नहीं है? कितना अजीब लगता है और कितना दुख होता है, इस आयु के साथ इस तरह की हरकतें देखकर… क्या संस्कार दिए होंगे उसने अपने परिवार को खासतौर पर अपने बेटे को?"

साठ वर्ष की आयु पार कर चुकी सुनीता सुंदर होने के साथ ही आकर्षक व्यक्तित्व की भी धनी थी. सुंदर छवि के कारण नारी को कठिनाइयों का सामना करना ही पड़ता है. जवानी की दहलीज़ पर कदम रखने के बाद से ही पुरुष का छिछोरापन उनके द्वारा कि गई अप्रिय हरकतें और उनकी नीयत का पता चलने लगता है. सुनीता ने भी पुरुष के ऐसे रूप अवश्य देखे थे, इसलिए वह इस तरह के लोगों की औकात अच्छी तरह से पहचानती थी.
अब तो वह दादी-नानी बन चुकी थी, नाती-पोतोंवाली सुनीता अब अपने आपको पूरी तरह सुरक्षित समझती थी. दिखने में वह अभी भी अपनी उम्र से काफ़ी कम ही लगती थी. गठा हुआ सुंदर शरीर, उसकी चाल-ढाल, उसकी जवानी का दर्पण दिखाते थे.


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सुबह टहलने के लिए नित्य ही जानेवाली सुनीता यह महसूस कर रही थी कि कुछ दिनों से एक बुज़ुर्ग जान-बूझकर बार-बार उसी रास्ते से अपनी साइकिल से गुज़रता है, जहां से वह जाती है. जवानी के दिनों में तो हर लड़की इस तरह की घटनाओं का शिकार होती है, उनसे जूझती रहती है. सुनीता ने कभी कल्पना भी नहीं की थी कि उम्र के इस पड़ाव पर ऐसे भी लोग होते हैं, जो वृद्धावस्था आने तक भी छिछोरेपन से बाज़ नहीं आते हैं और जवानी की बचकानी हरकतों को इस उम्र में भी दोहराते हैं.
सुनीता ने अपने पति से कहा, "अजय, क्या महिलाएं किसी भी उम्र में सुरक्षित नहीं है? कितना अजीब लगता है और कितना दुख होता है, इस आयु के साथ इस तरह की हरकतें देखकर… क्या संस्कार दिए होंगे उसने अपने परिवार को खासतौर पर अपने बेटे को?"
अजय ने बीच में ही टोका, "क्या हुआ सुनीता ऐसी बातें क्यों कर रही हो तुम?"
तब सुनीता ने अजय को बताया, "पिछले कुछ दिनों से एक बुज़ुर्ग साइकिल से बार-बार मेरे पीछे आता है. उसके ऐसा करने से मुझे बहुत ग़ुस्सा आता है और बहुत ही ख़राब लगता है."
तब अजय ने सुनीता को समझाते हुए कहा, "सुनीता, तुम ध्यान ही मत दो. इस तरह के लोग भी होते हैं, जिनका चरित्र यदि ख़राब है, तो वह वैसा ही रहता है. वह अपने आपको बदल नहीं पाते."
"लेकिन अजय ऐसे लोगों के लिए दिल में कितनी घृणा उत्पन्न होती है. कितना ग़ुस्सा आता है उन पर नफ़रत के लायक होते हैं वे. काश! ऐसे लोग इस नफ़रत को समझ सकें और इस तरह की घटिया हरकतें करना बंद करें."
अजय, मेरा मन तो करता है कि उस इंसान की बहन, बेटी और पत्नी को उसकी इस हरकत के बारे में बता दूं, लेकिन मैं सोचती हूं कि उसके परिवार को शर्मिंदा कैसे करुं? उसकी पत्नी को दुखी करना और बेटी के सामने एक बुज़ुर्ग पिता का अपमान करना मुझे ठीक नहीं लग रहा, क्योंकि उन सभी की नज़रों में वह उनका हीरो है."
"हर घर में पिता अपनी बेटी के लिए उसका हीरो होता है, पत्नी के लिए सच्चा जीवनसाथी और बहन के लिए रक्षा करनेवाला उसका भाई. इन सब के साथ ही यदि वह चरित्रहीन है, तो वह इंसान दूसरी महिलाओं के लिए नफ़रत का पात्र भी हो सकता है."
"तुम बिल्कुल ठीक कह रही हो सुनीता, एक पत्नी अपने पति के और बेटी अपने पिता के विषय में इस तरह की बातें सुनकर कतई विश्वास नहीं कर सकतीं, क्योंकि वह हमेशा उनका वह रूप देखती हैं, जो एक पति और पिता का होता है. वे तो उनका वह रूप कभी नहीं देख पातीं, जो एक पराई स्त्री देख लेती है."


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"हां अजय, किसी परिवार को शर्मिंदा करने से बेहतर है कि मैं ही अपना रास्ता बदल लूं, ताकि मुझे भी इस मानसिक तनाव से ना गुज़रना पड़े और मन सुबह-सुबह पक्षियों को देखकर, प्रकृति का आनंद ले सके."
तब सुनीता को वह पुराने दिन याद आ गए, जब वह सहेलियों के साथ ऐसी अप्रिय घटनाओं का शिकार हो जाया करती थी और अपना रास्ता बदल दिया करती थी. आज इस उम्र में भी रास्ता बदलना पड़ेगा, ऐसा तो सुनीता ने कभी सोचा ना था!

रत्ना पांडे

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Photo Courtesy: Freepik

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