"मीनू वाक़ई में तेरी मां तो साक्षात देवी है देवी. सचमुच कितनी नि:स्वार्थ हैं! पता है हमारी नानी की कितनी इज्ज़त बढ गई. सब कह रहे थे कि मौसी के कितने पीहर हैं, जो इतने सारे लड्डू बनाकर दिए हैं."
कॉफी की चुस्कियों मे डूबी सहेली ने कहा, तो मीनू ने मन ही मन अपनी मां के लिए गौरव का अनुभव किया.
मीनू ने जैसे ही कॉलेज से घर आकर अपनी किताबें मेज पर रखीं, उसे पापा की बुदबुदाहट सुनाई दी. मीनू फटाफट ख़ुद पापा के पास जाती इससे पहले वो ही कुछ बोलते हुए उसके सामने आ गए.
"पापा क्या हुआ बुखार है या रक्तचाप बढ़ गया है? मम्मी नहीं दिखाई दे रहीं?" विस्मय के साथ उसने पापा से पूछा.
पापा अपनी बिटिया की ऐसी फ़िक्र पर निहाल हो गए और बोले, "वो नाश्ता करके घर से निकली है और मैं तुम्हारी मम्मी की ही प्रतीक्षा कर रहा हूं. चलो तब तक तुम्हारे लिए खाना परोस देता हूं."
पापा ने मुस्कुराकर कहा ही था कि मम्मी को घर मे प्रवेश करते हुए देखकर मीनू को बहुत सुकून मिला.
पापा को भी बहुत चैन मिला, मगर मम्मी हर किसी से बेख़बर बस अपने में मस्त-मगन धुन में बोलती जा रही थी और पापा के हाथ से ग्लास लेकर घूंट-घूंट कर पानी पीए जा रही थी.
दस मिनट के भीतर मीनू और पापा ने तीन थालियों में खाना परोस दिया था. मम्मी ने आनंद से दोनों के साथ भोजन किया और खाना खाने के बाद बोलीं, "पूरी कॉलोनी का चक्कर लगा लिया. दस नई ज़िंदगी अपनी आंखें खोलनेवाली हैं इसी सप्ताह. बस, अब मुझे अपनी तैयारी में लगना है."
मम्मी पापा को देखते हुए बोली, तो पापा ने हंसकर सहमति में सिर हिलाया और मदद का प्रस्ताव दिया, जिसे मम्मी ने ख़ुशी-ख़ुशी मान लिया.
मीनू को सब पता था कि अब क्या और कौन-कौन सी तैयारियां होनेवाली हैं?
अब शाम से पहले पापा-मम्मी बाज़ार जाएंगे. गुड़, अजवायन, सूखे मेवे और घी लाया जाएगा. जिनकी बात की जा रही थी उन सबके लिए जापे में लड्डू बनेंगे और मम्मी जब एक-एक प्रसूता को यह सब हाथों से खिलाकर वापस आएंगी, तब घर पर तितली की तरह उड़ती रहेंगी.
मीनू यह सब सोच ही रही थी कि उसकी सहेली निमि आ गई. मीनू से पहले उसने मम्मी से गले लगकर बताया कि उसकी मौसी को पिछले महीने, जो लड्डू खिलाए थे वो निमि और उसके भाई ने भी चोरी छिपे स्वाद लेकर खाए थे बहुत मज़ा आया था.
मम्मी मंद-मंद मुस्कुरा दी. मम्मी ने सबको कॉफी बनाकर पिलाई.
"मीनू वाक़ई में तेरी मां तो साक्षात देवी है देवी. सचमुच कितनी नि:स्वार्थ हैं! पता है हमारी नानी की कितनी इज्ज़त बढ गई. सब कह रहे थे कि मौसी के कितने पीहर हैं, जो इतने सारे लड्डू बनाकर दिए हैं."
कॉफी की चुस्कियों मे डूबी सहेली ने कहा, तो मीनू ने मन ही मन अपनी मां के लिए गौरव का अनुभव किया.
संवेदनाओं मे भी कितनी ग़जब की ऊर्जा होती है. सपनों के घर में प्रेम की बगिया खिल उठती है और दुनिया शानदार बन जाती है इन संवेदनाओं में.
वो मन ही मन सोच रही थी कि उसको एक पुराना क़िस्सा बरबस याद आ गया. उसके घर कुछ दोस्त रहने आए थे. सब इस शहर में नए थे. मां ने उनका ख़ूब स्वागत -सत्कार किया. उनको घुमाया-फिराया. एक बार वो सब साथ बाहर डिनर पर गए.
मां दंग रह गई कि डिनर में वो दोस्त पिज़्ज़ा और बर्गर ऑर्डर कर रहे थे.
मां ने दोस्त को टोका, तो सबने पिज़्ज़ा और बर्गर के दर्जनों प्रकार बता दिए.
तब मां ने हंसते-हंसते कहा, "कमाल है, हमारे देश मे हज़ारों तरह के व्यंजनों की तो सारी दुनिया दीवानी है और आप लोग ये सब खाते हैं जंक फूड?"
उस दिन मां के हाथ की बनी दाल-रोटी सबने चटखारे लेकर मन से खाई. वो मन ही मन यह सब याद करती हुई हंसती रही. उसको अपने भीतर बहुत सारी ताक़त का अनुभव हुआ.
और थोड़ी देर बाद उन दोनों को बाय करती हुई मम्मी पापा के साथ चहकती हुई बाज़ार चली गई.
मीनू को भी टेनिस कोचिंग के लिए जाना था. वो जब लौटकर आई, तो पूरा घर घी और मेवों की महक से सराबोर था. पापा और मम्मी ने मिलकर लड्डू तैयार कर दिए थे.
मीनू ने रात के भोजन में सबके लिए तहरी बना दी.
"हमारी मीनू के हाथ में जादू है." मम्मी-पापा दोनों ने उंगलियां चाटते हुए कहा.
देर रात तक उन लडडुओं की अलग-अलग नामों से पैकिंग करने के बाद मम्मी नींद के झोंके में जो बिस्तर पर लेटीं कि दो पल में ही गहरी निद्रा ने उनको आगोश में ले लिया.
मीनू ने देखा कि पापा अभी भी स्टडी टेबल पर बैठकर कुछ पढ रहे थे.
मीनू बहुत छोटी-सी थी, तब ही से यह लड्डुओं का सिलसिला देख रही है.
मीनू ने आज मौक़ा देखकर पापा से पूछ ही लिया, "पापा, मम्मी इतनी समर्पित क्यों हैं आख़िर क्या बात है?"
पापा ने बगैर किसी लाग लपेट के पूरी कहानी सुना दी. मीनू का जन्म होने मे बस दो हफ़्ते का समय बचा था.
"हमारे घर के हर कोने से यही आवाज़ आती थी, कब आनेवाला है नन्हा मेहमान. रीनू की दोपहरी की नींद, शाम की अलसाहट, सब माया मोह का केंद्र बस तुम्हीं तो थीं, जो अभी तक हमें इंतज़ार करा रही थी.
रीनू ने बहुत ही उत्साह में भरकर अपनी मां और भाभी को यह सूचना दी. मगर रीनू को बदले में ना आशीष, ना कोई अच्छी बात, उल्टा दोनों की तरफ़ से टका-सा जवाब मिला." पापा का गला भर आया.
"क्या जवाब मिला." मीनू ने ज़ोर देकर पूछा.
"यही कि शिमला से पूना आने में बहुत ही मुसीबत है और पंद्रह दिन बाद रीनू की भाभी के पीहर में गृह प्रवेश है. भाभी रात-दिन उनकी तैयारी में बहुत व्यस्त है, इसलिए भाभी को तो समय मिलेगा ही नहीं. बाकी घर पर कौन रहेगा, इसलिए मां ने भी रीनू को टाल दिया और कह दिया 'रीनू, सब बहुत उलझे हैं, इसलिए ऐसा करना किसी महिला को दिहाडी़ पर रख लो."
'कितने पत्थर दिल हैं?..' मन ही मन सोचती रीनू को सदमा लगा. वो जड़ हो गई बहुत देर तक कुछ बोलते ही नहीं बना.
"रीनू ने अपनी मर्जी से एक सामान्य युवक को जीवनसाथी क्या बनाया, मां और भाभी ने उसको नकारा ही समझ लिया. रीनू को लगा था कि कम से कम पीहर से जापे की बर्फी और लड्डू तो कोई ना कोई लाएगा ही सही, पर ऐसा कुछ नही हुआ. जब तुम तक़रीबन एक महीने की हो गई उसके बाद शायद किसी को याद आई और एक मनीऑर्डर आया, जिसे रीनू ने वैसे का वैसा ही उसी समय वापस लौटा दिया.
फिर जब तुम एक साल की हो गई, तब भी किसी से यह नहीं हुआ कि पहले जन्मदिन पर ही आ जाते. तुम चलने और दौड़ने लगी. उसके बाद से रीनू अपने मन की कसक मिटाने के लिए जहां तक हो सकता है, यह लड्डू बनाकर बांटती है."
"अच्छा…" मीनू ने लंबी सांस लेकर कहा, तभी खराटे की आवाज़ आने लगी. पापा बोलते-बोलते सो गए थे. मीनू ने उनको हौलै से जगाया और वो जम्हाई लेकर सोने चले गए.
मीनू की आंखें भर आईं. उसे अपनी मम्मी की खुद्दारी व संवेदनशीलता पर बहुत गर्व हुआ.
अगले दिन रविवार था. मीनू भी मम्मी के साथ लड्डू बांटने गई. जब दोनों वापस लौटीं, तो आज मीनू भी मम्मी की इस अनोखी ख़ुशी में शामिल थी.
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