“हम तुम्हें अच्छी लड़की समझते थे, मगर तुम्हारा इरादा जानकर मुझे नफ़रत होती है. आज के ज़माने में कोई प्यार में पागल होकर इस हद तक नहीं जा सकता. आजकल सच्चा प्यार है ही कहां. तुमने क्या सोचा कि हम तुम्हारी बातों में आ जाएंगे? तुम अभी चली जाओ यहां से.”
''मन्दिरा, क्या सोच रही हो?” सुबह-सुबह खिड़की पर खड़े मयंक की आवाज़ सुनकर मन्दिरा ने आंखों से आंसू पोंछते हुए कहा, “आज तुषार को गए पूरे दो साल हो गए. याद है, आज उसकी बरसी है. मयंक, भगवान ने हमारे साथ इतना बड़ा अन्याय क्यों किया? उसे बुलाना ही था तो मुझे ही बुला लेता अपने पास. अब आगे की ज़िन्दगी कैसे कटेगी? हमारी इकलौती औलाद ही हमसे छीन ली ईश्वर ने.” कहते हुए मन्दिरा मयंक से लिपटकर रोने लगी.
मयंक पत्नी को चुप कराते हुए कहने लगा, “काश, उसने शादी की होती तो आज कम-से-कम एक बहू तो होती, जो हमारे बुढ़ापे का सहारा बनती. कम-से-कम अमेरिका में ही अपनी पसन्द की लड़की से शादी कर लेता.” पति की बात सुनकर मन्दिरा को जैसे कुछ याद आ गया, “हां, जब उससे आख़िरी बार फोन पर बात हुई थी, तो वो कह रहा था कि आपके लिए बहू पसन्द कर ली है. घर आऊंगा, तो सब कुछ बताऊंगा.”
“तुम भी मन्दिरा, आज दो साल बाद बता रही हो.”
“मैं क्या करती? उसके बाद ही तो उसका एक्सीडेंट हो गया. फिर मुझे क्या होश था?”
“लेकिन मन्दिरा, अगर सच में कोई लड़की उसकी ज़िन्दगी में थी तो उसका क्या हाल हुआ होगा? अब तक तो उसने शादी कर ली होगी. और क्या पता उसके कारण ही उसका एक्सीडेंट भी हुआ हो.”
“नहीं, उस समय कार में तुषार अकेला था और ग़लती आगे से आ रहे ट्रक वाले की थी. अच्छा, अब ये सब मत सोचो. मन्दिर भी जाना है.”
बेटे की बरसी का कार्यक्रम उन्होंने मन्दिर में सादे तरी़के से किया. शाम के क़रीब छह बजे थे कि दरवाज़े की घण्टी बजी. मयंक ने उठकर दरवाज़ा खोला तो सामने सलवार-कमीज़ पहने एक लड़की खड़ी थी. उसने अपना परिचय तुषार की सहकर्मी के रूप में दिया. दोनों अमेरिका में एक ही हॉस्पिटल में डॉक्टर थे. उसने बताया कि उसका नाम प्रियंका है और वो पूरे दो साल बाद भारत लौटी है. उन लोगों से ऐसे ही मिलने चली आई है.
वो पूरे दो घण्टे रही और इन दो घंटों में उसने घर का वातावरण ही बदल दिया था. कितने दिन बाद घर में हंसी की आवाज़ आई थी. जाते समय प्रियंका ने पूछा, “आप लोगों को मेरा आना बुरा तो नहीं लगा? आप लोगों को अगर...”
मन्दिरा ने बीच में ही कह दिया, “नहीं, तुमसे मिलकर तो बहुत अच्छा लगा. तुम किसी दिन खाने पर आओ अपने घरवालों के साथ.” प्रियंका के जाने के बाद मन्दिरा ने मयंक से पूछा, “मैंने उसे खाने पर बुलाकर ग़लत तो नहीं किया?” पति के ना में सिर हिलाने पर उसे राहत मिली.
इसके बाद प्रियंका दो बार तुषार के घर आई. एक बार अपने भाई-भाभी के साथ भी आई थी. परिवार में उसके भाई-भाभी ही थे. प्रियंका ने कई बार उन्हें अपने घर बुलाया, पर हर बार वे टाल जाते. फिर अचानक एक महीने तक प्रियंका नहीं आई. उसका फोन नंबर भी मन्दिरा से खो गया था. अक्सर दोनों की आंखें दरवाज़े पर लगी रहती थीं.
आख़िर एक दिन मयंक ने कहा, “शायद अमेरिका वापस चली गई हो. अच्छा याद है ना कल 15 नवंबर यानी तुषार का जन्मदिन है, मन्दिर जाना है सुबह.”
“हां, कल वो पूरे 32 साल का हो जाएगा.” दूसरे दिन जब मयंक-मन्दिरा मन्दिर से लौटे, तो दरवाज़े पर प्रियंका की खड़ा देखकर मन्दिरा बहुत ख़ुश हो गई. फिर उसका ध्यान उस छह सात महीने के बच्चे पर गया, जो प्रियंका की गोद में था. दरवाज़ा खोलकर जब अन्दर आए, तो प्रियंका ने कहा, “आप लोग मन्दिर गए थे ना, आज तुषार का जन्मदिन है इसलिए.” “मगर तुम्हें कैसे पता?”
“वही बताने आई हूं.” मयंक ने मन्दिरा की तरफ़ देखा और सोफे पर बैठ गए. दोनों के दिमाग़ में एक ही ख़्याल आने लगा कि कहीं ये वो लड़की तो नहीं, जिसके बारे में तुषार ने बताया था. प्रियंका ने सब कुछ सिलसिलेवार बताना शुरू किया, “आज से चार साल पहले मुझे याद है अच्छी तरह उस दिन भी 15 नवंबर था. तुषार और मैं दोनों ही तीन साल के स्पेशलाइजेशन कोर्स के लिए भारत से आए थे. क़रीब एक साल हो गया था अमेरिका आए. उस दिन जब उसने मुझसे डिनर पर चलने को कहा, तब पता चला कि उसका जन्मदिन है, तो मैंने हां कर दी. डिनर से लौटते वक़्त जब वह मुझे घर छोड़ने आया, तो उसने कहा, “प्रियंका, एक बात कहूं.”
मैंने कहा, “आज सब माफ़ है.”
अचानक मेरा हाथ पकड़कर कहने लगा, “मैं तुमसे प्यार करता हूं. तुमसे शादी करना चाहता हूं. तुम मुझे सोच-समझकर जवाब देना.” और वो चला गया. मैंने उसकी बात को मज़ाक में लिया. फिर अगले पांच दिन तक वो हॉस्पिटल भी नहीं आया. फिर अचानक रविवार को सुबह मेरे घर आ गया और सीधे पूछने लगा, “और क्या सोचा मेरे बारे में?” मैंने आश्चर्य से उसे देखते हुए कहा, “मुझे लगा तुम मज़ाक कर रहे हो.”
“नहीं मैडम, मैं आपसे प्यार करता हूं. हां, अगर तुम्हारी ज़िन्दगी में पहले से कोई है, तो मैं अपना हाथ पीछे खींचता हूं और नहीं तो प्लीज़ मुझसे प्यार न करने का कारण बताओ.” उसके किसी भी सवाल के लिए मैं तैयार नहीं थी. उस दिन किसी तरह मैं उसे टाल गई.
पिछले एक साल से हम दोनों कार्डिक डिपार्टमेंट में साथ थे, मगर कभी लगा नहीं कि तुषार मुझे चाहता भी है. धीरे-धीरे उसके प्यार में मैं भी रंग ही गई. अब हम दोनों रोज़ एक बार ज़रूर मिलते, भविष्य के लिए तरह-तरह की योजनाएं बनाते. इस तरह एक साल बीत गया. हम लोगों के कोर्स को अब एक ही साल रह गया था, इसलिए हम लोगों ने फ़ैसला किया कि जब कोर्स ख़त्म हो जाएगा, तब अपने घरवालों को बताएंगे और उनके आशीर्वाद से शादी कर लेंगे. कोर्स का टाइम जैसे-जैसे ख़त्म हो रहा था, वैसे-वैसे हम लोगों पर पढ़ाई का बोझ बढ़ रहा था. रात-रात भर हॉस्पिटल में ही रहना पड़ता. सब कुछ अच्छा चल रहा था, तभी अचानक...
तुषार का एक्सीडेंट हो गया. उसकी मौत ने मुझे पागल-सा बना दिया. मैंने किसी तरह अपना बचा हुआ दो महीने का कोर्स पूरा किया और फिर वहीं पर नौकरी कर ली. कुछ समझ में नहीं आ रहा था. ज़िन्दगी पूरी तरह बिखर गई थी. हर जगह मुझे तुषार ही नज़र आता था. उसकी यादों से भागने के लिए हॉस्पिटल में मैं अठारह-अठारह घंटे की ड्यूटी करने लगी.
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छह महीने बाद हॉस्पिटल में एक दिन बेहोश हो गई, तो मुझे एड्मिट कर दिया गया. भारत से भैया आ गए. उन्हें वहां हॉस्पिटल से ख़बर किया गया था. कई दिनों तक बेहोश रही. जब होश आया तो पता चला कि चिन्ता से बीपी लो हो गया था. ख़ून में हीमोग्लोबिन का स्तर बहुत ज़्यादा घट गया था. भइया मुझे ज़बरदस्ती भारत ले आए. यहां आकर भैया-भाभी से मैं झूठ नहीं बोल पाई. उन्हें तुषार के बारे में बता दिया.
भैया मेरा दुख देखकर दुखी रहने लगे. फिर धीरे-धीरे मैं नॉर्मल हो गई. मैं भैया को परेशान नहीं कर सकती, इसलिए हमेशा हंसती रहती थी. ऐसे ही छह महीने बीत गए. मैं एकदम ठीक हो गई थी और ज़िद करके वापस अमेरिका आ गई थी. पूरे छह महीने के बाद जब दोबारा अमेरिका पहुंची, तो फिर तुषार हर जगह नज़र आने लगा. हर चीज़ से उसकी यादें जुड़ी थीं.
घरवालों के लिए मैं तुषार को भूल गई थी, मगर सच पूछिए तो एक पल के लिए भी मैं उसे नहीं भूली थी और कभी भूल भी नहीं सकती थी. मैं बस यह सोचती थी कि आख़िर सारी ज़िन्दगी उसके बिना कैसे कटेगी. कभी-कभी मन करता, आत्महत्या कर लूं, मगर तभी ख़्याल आता कि मेरे बाद भैया-भाभी का क्या होगा? आप लोगों का भी ख़्याल आता था. जब भारत आई थी, तो कई बार आपके घर भी आई थी, मगर कभी दरवाज़े तक आने की हिम्मत नहीं हुई.
एक दिन जब मैं अपने लेटर बॉक्स में लेटर देख रही थी, तो एक लिफ़ाफ़ा मिला, जिस पर तुषार का नाम था और केयर ऑफ़ में मेरा नाम था. अन्दर आकर जब मैंने उस लिफ़ा़फे को खोला, तो लेटर स्पर्म बैंक का था. उससे पता चला कि एक साल पहले तुषार ने अपने स्पर्म बैंक में फ्रीज कराए थे. उसने शायद मेरा भी पता दिया था, तभी उसके लेटर का जवाब न मिलने पर मेरे पते पर लेटर भेजा गया था. मेरी समझ में नहीं आया कि आख़िर तुषार को ऐसा करने की क्या ज़रूरत थी और उसने मुझे बताया भी नहीं.
दूसरे ही दिन मैं स्पर्म बैंक गई. वहां से मुझे पता चला कि स्पर्म के फ्रीज होने का टाइम ख़त्म हो गया है. उसके प्रयोग करने या न करने का अधिकारी क़ानूनी तौर पर तुषार मुझे बना गया था. मैंने उसकी अवधि एक महीने और बढ़ा दी और वापस भारत आ गई. मैंने जब अपना यह फ़ैसला कि मैं आर्टिफिशियल इनसेमीनेशन द्वारा तुषार के बच्चे की मां बनूंगी, भइया को सुनाया, तो उन्होंने मुझे बहुत समझाया. समाज का वास्ता दिया, मगर मैं नहीं मानी. वापस अमेरिका आकर यहां की नागरिकता भी आसानी से मिल गई. फिर तुषार ने मुझे क़ानूनी तौर पर अपने स्पर्म का अधिकार दिया था, तो वो भी क़ानूनन उस बच्चे का पिता था. आख़िर मैंने आर्टिफिशियल इनसेमीनेशन कर लिया.
इस बीच भइया का कोई फोन नहीं आया. मेरा आठवां महीना चल रहा था. तभी भाभी मेरे पास आ गई. फिर मैंने आदित्य को जन्म दिया. पूरे तीन महीने भाभी मेरे साथ थीं. उन्होंने मेरे फ़ैसले में पूरा साथ दिया. अब आदित्य पूरे छह महीने का हो गया है...'' मयंक ने प्रियंका की बात सुनते ही तेज़ आवाज में कहा “तो तुम यह कहना चाहती हो कि यह बच्चा मेरे बेटे का है और तुम उसकी बिनब्याही मां हो, वो भी उसके मरने के दो साल बाद. क्या तुमने हम लोगों को पागल समझ रखा है? हम लोग बूढ़े ज़रूर हुए हैं, पागल नहीं. माना मेरा बेटा तुमसे प्यार करता था, मगर तुम किसी और के पाप को हमारे सिर क्यों मढ़ने आई हो?”
मन्दिरा ने भी मयंक की हां में हां मिलाते हुए कहा, “हम तुम्हें अच्छी लड़की समझते थे, मगर तुम्हारा इरादा जानकर मुझे नफ़रत होती है. आज के ज़माने में कोई प्यार में पागल होकर इस हद तक नहीं जा सकता. आजकल सच्चा प्यार है ही कहां. तुमने क्या सोचा कि हम तुम्हारी बातों में आ जाएंगे? तुम अभी चली जाओ यहां से.”
प्रियंका ने जाते-जाते बस इतना ही कहा, “मैं आदित्य को आप लोगों से मिलाने लाई थी. तुषार का प्रतिरूप दिखाने आई थी, अपना हक़ मांगने नहीं आई थी. मुझे तो तुषार पहले ही आदित्य के रूप में अपना हक़ दे गया. मुझे कुछ नहीं चाहिए. वैसे भी मैं इसे इसलिए लाई थी कि शायद इससे आप लोगों के जीवन में फिर से ख़ुशी आ जाए.”
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प्रियंका ने जैसे मयंक-मन्दिरा के जीवन में हलचल मचा दी थी. दोनों इस बात को मानने के लिए तैयार ही नहीं थे कि आज के ज़माने में भी लोग प्यार में इतना बड़ा क़दम बिना किसी स्वार्थ के उठा सकते हैं और अगर उन्होंने उसे स्वीकार कर भी लिया तो क्या समाज इसे मानेगा. सुबह जब मयंक सोकर उठे, तो मन्दिरा बैठकर पहले का फोटो एलबम देख रही थी. तुषार जब छह महीने का था, तब का फोटो देखकर वो मयंक को देखने लगी. मयंक ने देखा आदित्य एकदम वैसे ही है. तभी फोन की घंटी बजी. मयंक ने फोन उठाया, प्रियंका की भाभी थी. उन्होंने कल के व्यवहार पर दोनों को ख़ूब बातें सुनाईं और कहा, “वो आप लोगों को सहारा देने आई थी. सोचा था, उसके पास तो आदित्य है, पर आप लोगों के पास क्या है? मगर आप लोगों ने उसे बेइज़्ज़त करके घर से निकाल दिया. आज वो हमेशा के लिए अमेरिका वापस जा रही है.”
फोन कट गया. मयंक की आंखों से आंसू गिरने लगे. मन्दिरा ने घबराकर पूछा, “क्या हुआ?” उसने कहा, “मैं एयरपोर्ट जा रहा हूं, प्रियंका को रोकने के लिए.”
“मैं भी साथ चलूंगी.” लेकिन जब दोनों एयरपोर्ट पहुंचे, तो प्रियंका की फ्लाइट जा चुकी थी.
मन्दिरा ने कहा, “हम लोगों ने देर कर दी. अपना सहारा ख़ुद ही खो दिया.” तभी मयंक ने कहा, “नहीं, अभी देर नहीं हुई है. हम लोग ख़ुद उसके पास चलेंगे. चलो अभी पासपोर्ट ऑफिस चलते हैं. इससे पहले कि देर हो जाए अमेरिका के वीजा के लिए अप्लाई करना है.” और दोनों हाथ पकड़कर पासपोर्ट ऑफिस चल दिए. नए उत्साह से अपना सहारा वापस लाने.
- नीतू
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