मां का इतना कहना था कि सुरीली को ऐसे लगा जैसे अब उसकी मां उसकी नहीं रही, वह अपनी बहू की हो गई है. मां को अपनी बेटी से ज़्यादा फ़िक्र अपनी बहू की है. लेकिन सुरीली ने तुरंत कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की, बल्कि एक ही शहर में ससुराल और मायके होने की वजह से रात के खाने से पहले ही वह बहाने बनाकर ससुराल लौट आई. तब से फिर कभी सुरीली ने मायके की तरफ़ मुड़ कर नही देखा.
समय, दिन और महीने जैसे-जैसे बीतते जा रहे थे. सुरीली का दुख और ग़ुस्सा दोनों ही बराबर मात्रा में बढ़ता जा रहा था. छह महीने पहले जब वह अपने मायके गई थी और वहां उसने जो देखा व महसूस किया उसके उपरांत दोबारा फिर कभी सुरीली का मन अपने मायके जाने का नहीं हुआ. इस बात को पूरे छह महीने बीत चुके हैं, लेकिन आज भी सुरीली अपनी मां से खफ़ा हैं. मां, बाबूजी, भाई और यहां तक की उसके भाई की पत्नी कनक ने भी कई बार सुरीली से घर ना आने का कारण जानना चाहा, लेकिन उसने कभी भी किसी से अपने दिल की बात नहीं कही. बस अंदर ही अंदर परेशान होती रही.
सुरीली ने तो कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि बहू के आते ही मां के व्यवहार में इतना बदलाव आ जाएगा. उसे अपने ही घर में अपनी ही मां पराई लगने लगेगी. माना कि उसका भाई सारांश मां-बाबूजी का अकेला बेटा है और अब मां-बाबूजी को सारांश और उसकी पत्नी के साथ ही रहना है, लेकिन वह भी तो उनकी एक ही बेटी है.
भाई सारांश की शादी से पहले तक सुरीली को ऐसा कभी नहीं लगा कि मां या बाबूजी उससे कम स्नेह रखते हैं बावजूद इसके कि सारांश सुरीली से छोटा था, परंतु कनक के आने के पश्चात जब सुरीली अपने मायके पहुंची, तो उसने घर और अपनी मां के व्यवहार में कई परिवर्तन देखे. मां का अपनी बहू कनक के प्रति अत्यधिक स्नेह व परवाह देख सुरीली को बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगा और वह चिढ़ गई थी. भला बहू से कौन इतना स्नेह रखता है!.. यह बात सुरीली के समझ से परे था, सुरीली को अपनी मां की और भी कुछ बातें पसंद नहीं आई.
पहले जब कभी घर पर कोई छोटे से छोटा सामान भी ख़रीदा जाता, मां सुरीली से अवश्य सलाह-मशवरा करती और फिर उसके कहे अनुसार ही घर पर कोई सामान आता. लेकिन अब की बार घर के सारे पर्दे सुरीली की जानकारी के बगैर ही बदल दिए गए थे, वह भी वे पर्दे जिन्हें सुरीली ने पसंद करके लगाए थे. जब इस बारे में सुरीली ने अपनी मां से बात की, तो मां बड़ी सहजता से कहने लगी, "अरे वो कनक को ब्राइट कलर के पर्दे पसंद है ना… इसलिए उसने सारे पर्दे बदल दिए. मैंने ही कहा उससे बदल दो यदि तुम्हें पसंद नहीं है आख़िर अब यह तुम्हारा ही घर है."
मां का ऐसा कहना न जाने क्यों सुरीली को अंदर तक चुभ गया. उसे ऐसा लगा जैसे मायके से उसकी पकड़ ढीली पड़ती जा रही है. अभी सुरीली को मायके आए चंद घंटे ही हुए थे कि सुरीली से कनक बोली, "दीदी आपको आलू चाट बहुत पसंद है ना, मैंने सारी तैयारियां कर रखी है आपके लिए बनाकर ले आऊं."
यह सुन सुरीली को थोड़ा अच्छा लगा और वह तनकर बोली, "हां बना लाओ." और साथ ही साथ सुरीली ने रात के खाने का मैनू लिस्ट भी कनक को बता दिया.
तभी सुरीली की मां बोली, "सुरीली, तुम भी जा कर किचन में कनक का हाथ बंटाओ, वह अकेली यह सब नहीं कर पाएगी."
मां का इतना कहना था कि सुरीली को ऐसे लगा जैसे अब उसकी मां उसकी नहीं रही, वह अपनी बहू की हो गई है. मां को अपनी बेटी से ज़्यादा फ़िक्र अपनी बहू की है. लेकिन सुरीली ने तुरंत कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की, बल्कि एक ही शहर में ससुराल और मायके होने की वजह से रात के खाने से पहले ही वह बहाने बनाकर ससुराल लौट आई. तब से फिर कभी सुरीली ने मायके की तरफ़ मुड़ कर नही देखा.
एक शाम जब सुरीली मार्केट से घर पहुंची, तो उसने देखा कि उसकी ननद मधु अपने बच्चों के साथ घर आई हुई है. यह देख सुरीली अंदर ही अंदर कसमसा कर रह गई. मधु का आना उसे कतई पसंद नहीं था और उससे भी अधिक मधु का यहां आकर अनावश्यक हस्तक्षेप करना, तो उसे बिल्कुल नहीं भाता था. मधु का ऐसा व्यवहार सुरीली को अपने अस्तित्वहीनता का बोध कराता. अक्सर मधु का बेतकल्लुफ़ होना अपने बच्चों की सारी ज़िम्मेदारी सुरीली पर डाल कर आराम से बतियाना, अपनी सहेलियों से मिलने और घूमने चले जाना… यह सब सुरीली को परेशान करता, क्योंकि मधु के ऐसा करने से सुरीली पर घर के सारे काम का बोझ आ जाता. ऐसे ही कई छोटे-छोटे कारणों के चलते मधु और सुरीली के मध्य तनाव बना रहता.
मधु को देख सुरीली कुछ कहे बगैर ही सीधे किचन की ओर चली गई, क्योंकि वह जानती थी कि थोड़ी ही देर में मधु और उसके बच्चे अपनी फ़रमाइशों की झड़ी लगा देंगे. जैसे ही सुरीली किचन में गई उसका पारा चढ़ गया और वह तमतमाती हुई किचन से बाहर आ कर अपनी सासू मां से बोली, "अम्माजी, किचन का पूरा सेटअप किसने चेंज किया..?"
सासू मां कुछ कहती उससे पूर्व ही उनके क़रीब बैठी मधु बोल पड़ी, "भाभी, लुक वाइज़ किचन का सेटअप बिल्कुल भी अच्छा नहीं लग रहा था और फ्रिज की वजह से किचन कंज्सटेड लग रहा था, मायक्रोवेव भी सही जगह पर नहीं था, इसलिए मैंने ही सबकी जगह बदल दी."
मधु का इतना कहना था कि सुरीली और मधु के बीच कहासुनी हो गई. सुरीली ग़ुस्से से अपने कमरे में आ गई और आंसू बहाने लगी. मां से वैसे ही सुरीली नाराज़ चल रही थी, सो उसने अपने बाबूजी को फोन पर सारा वृत्तांत कह सुनाया. धैर्य पूर्वक सुरीली को सुनने के पश्चात बाबूजी बोले, "किसी भी मां या सास के लिए अपनी बेटी और बहू दोनों के मध्य सामंजस्य स्थापित करवाना इतना आसान नहीं होता. मायके में जितना अधिकार बेटी का होता है उतना ही हक़ बहू का भी होता है. तुम्हारी मां तो हमेशा से चाहती थी कि कनक और तुम मिल-जुलकर रहो. तुम्हारा आना कभी कनक को ना खटके और मायके में तुम्हारा सम्मान बना रहे. उसने तो ऐसा करने का प्रयास भी किया था, लेकिन नतीज़ा यह हुआ कि तुम नाराज़ हो कर चली गई, क्या ये मैं नहीं जानता."
बाबूजी से यह सब सुन सुरीली को अपनी सोच पर पछतावा हुआ. उसके मन में अपने मां के प्रति जो ग़ुस्सा और ग़लतफ़हमी थी वह अब दूर हो चुकी थी. सुरीली ये भी समझ गई कि मां उससे कितना प्यार करती हैं. मायके में उसका मान बना रहे, इसलिए मां ऐसा बर्ताव कर रही थी. सुरीली को इस बात का भी एहसास हो गया कि ननद और भाभी का रिश्ता दो प्रतिद्वंद्वियों का नहीं, बल्कि यह एक बहुत ही ख़ूबसूरत व प्यारा होता है, जिसमें ईर्ष्या-द्वेष के लिए कोई स्थान नहीं होना चाहिए. क्योंकि बेटी और बहू दोनों का ही घर में समान महत्व होता है.
सुरीली के दिल और दिमाग में लगे जाले अब साफ़ हो गए थे. वह ख़ुशी-ख़ुशी मायके जाने को तैयार थी. साथ ही ननद मधु के संग भी वह अपने रिश्ते सुधारने का संकल्प ले अपने कमरे से बाहर आई.
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