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कहानी- बेस्ट फ्रेंड (Short Story- Best Friend)

शरद कुमार का पहला प्रश्न था, "तनुजा आपकी कॉलेज की फ्रेंड है?"
"जी!" पहली बार नंदिनी मुस्कुराई.
"वो मेरी बहुत अच्छी मित्र है. मेरी ख़ामोशी और संजीदगी को वो अपनी चपलता से पूरी कर देती है यानी मेरी पूरक…"

वो दो सहेलियां थीं नंदिनी और तनुजा. दोनों के पिता एक ही विभाग में काम करते थे. संयोग कुछ ऐसा कि पोस्टिंग भी साथ-साथ होती रही. यूनिवर्सिटी में हॉस्टल में रूम मेट, दोनों एक-दूसरे को बेस्ट फ्रेंड बताती.
पता नही कब ये मित्रता एक पायदान नीचे खिसक कर सिर्फ़ फ्रेंड पर आ टिकी थी. दोनों का सिलेक्शन भी एक ही विभाग में हुआ.
कुछ वर्षों बाद जब प्रोमोशन की नौबत आई, तो सीनियोरिटी में भी दोनों सबसे ऊपर थीं. प्रमोशन का आधार सिर्फ़ इंटरव्यू था. ये इंटरव्यू लेने वाले थे उनके नए आए बॉस शरद कुमार.
नंदिनी ख़ामोश तबीयत की, पर तनुजा बोलने वाली. दोनों ही कार्यकुशल. साक्षात्कार में एक ही चयनित होना था यानी दोनों सहेलियां प्रतिद्वंद्वी बनकर एक-दूसरे के सामने थीं.
आजकल तनुजा का बॉस के केबिन में आना-जाना बढ़ गया था. आज भी अंदर जाने से पूर्व उसने दरवाज़ा नॉक किया, "मे आई कम इन सर?"
"यस, यस तनुजा मैम कम इन.. कहिए…"
"सर इस फाइल में प्रॉब्लम आ रही है, क्या जवाब दूं क्लाइंट को?"
"लाइए इधर फाइल देखता हूं." तनुजा फाइल सर के हाथ में देती है. तभी चपरासी का कॉफ़ी पूछने के लिए प्रवेश, "आप लेंगी कॉफी तनुजा मैम?"
"श्योर सर, इफ यू डोंट माइंड."
तभी नंदिनी का केबिन में प्रवेश, "सर…" पर तनुजा को वहां बैठा देख, वो वापस जाने के लिए मुड़ती है.
"रुको नंदिनी." तनुजा बोली, पर नंदिनी थोड़ी देर में आने को कहकर पलट जाती है.

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कॉफी के सिप लेते हुए तनुजा शरद सर को बताती है कि वो और तनुजा कॉलेज के ज़माने से मित्र हैं, फिर कुछ सोचते हुए और मुस्कुराते हुए कहती है, "ख़ामोश और रट्टू तोता टाइप की है नंदिनी." सर भी हौले से मुस्कुराते हैं.
शरद कुमार नोटिस कर रहे थे कि तनुजा जब भी केबिन में आती किसी न किसी बहाने, तरीक़े से नंदिनी के विरोध में कुछ न कुछ बता जाती.
कार्यकुशल होते हुए भी तनुजा काम को टालने में माहिर थी, जबकि नंदिनी का कार्य हमेशा पूरा रहता.
आज शरद कुमार को बाहर नंदिनी दिख गई.
"आइए नंदिनीजी, कहां जाना है?"
"सर! मेरे पति 15 मिनट में पहुंच रहे हैं."
"अरे आइए. मोबाइल से बोल दीजिए कि मैं घर पहुंच रही हूं."
मजबूरी में नंदिनी कार में बैठी.
शरद कुमार का पहला प्रश्न था, "तनुजा आपकी कॉलेज की फ्रेंड है?"
"जी!" पहली बार नंदिनी मुस्कुराई.
"वो मेरी बहुत अच्छी मित्र है. मेरी ख़ामोशी और संजीदगी को वो अपनी चपलता से पूरी कर देती है यानी मेरी पूरक…"
"ओह!"
"सर, वो अजयजी की कार, प्लीज़ मुझे यहीं उतार दीजिए."
सर को थैंक्स कहकर नंदिनी उतर गई.
इंटरव्यू हो चुके थे. इंटरव्यू के दौरान जहां नंदिनी धीर-गंभीर और संयत ढंग से उत्तर दे रही थी, वहीं तनुजा किंचित नर्वस और तनाव में थी.
एक हफ़्ते बाद ही परिणाम आ गए. उस सीट के लिए नंदिनी सिलेक्ट हो चुकी थी. जिस समय नंदिनी बधाइयां क़बूल कर रही थी, आक्रोशित तनुजा बॉस के केबिन में प्रवेश कर रही थी.
"आइए तनुजा मैम." शरद कुमार बोले.

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"मैं आपका ही इंतज़ार कर रहा था." हौले से मुस्कुराए वो.
"बैठ जाइए, सबसे पहले तो ये सुनिए कि नंदिनी आप से अधिक योग्य पात्र है. दूसरी बात ये कि आप कुशल तरीक़े से नंदिनी के निगेटिव पॉइंट्स मेरे सामने रख रही थीं. क्या मैं नही समझता? आप नंदिनी को अपना मित्र कहती हैं, पर ये कैसी मित्रता है? मैंने नंदिता से भी आपके बारे में पूछा था, तो उसने आपको उसके व्यक्तित्व का पूरक बताया. ये विश्वासघात आपको भारी पड़ा है. और जवाब आपके पीठ पीछे नही सामने ही दिया गया है."
तनुजा सिर झुकाए केबिन से निकल रही थी.

रश्मि सिन्हा

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Photo Courtesy: Freepik

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