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कहानी- भूख से बिलखती ज़िंदगी… (Short Story- Bhook Se Bilkhati Zindagi…)

"मानसी, एतिहासिक इमारतें, पार्क, होटल, मॉल वगैरह तो हमने बहुत घूमे हैं. आज मैं तुम्हें एक ख़ास जगह ले जा रहा हूं और उसके साथ-साथ शहर की भी सैर कराऊंगा." अनुराग ने कहा.
मानसी को समझ में नहीं आया, मगर वो कुछ बोली नहीं. अनुराग कार से ही मानसी को सड़क पर घूमते हुए गरीब लोगों, बच्चों को दिखाता जा रहा था और साथ ही यह भी बताता जा रहा था कि पैसे की कमी के कारण उन्हें कैसे-कैसे काम करने पड़ते हैं और दो वक़्त की रोटी जुटाने के लिए दिन-रात कितनी मेहनत करनी पड़ती है.

“ये क्या मानसी? तुमने फिर खाना फेंक दिया, कितनी बार समझाया है कि खाना नहीं फेंकना चाहिए, लेकिन तुमने तो जैसे ठान ली है कि मेरी कोई बात ध्यान से सुननी ही नहीं है. कैसे समझाऊं तुम्हें." अनुराग ने नाराज़गी जताते हुए कहा.
"उफ़! अनुराग, तुम्हारा भाषण फिर से चालू हो गया. ऐसा कौन सा पहाड़ टूट गया है. खाना ज़्यादा बन गया था. बचेगा तो फेंकना ही पड़ेगा न और कौन खाएगा. तुम तो बस एक ही बात पर शुरू हो जाते हो, खाना क्यों फेंक दिया, ऐसा क्यों कर दिया, वैसा क्यों कर दिया. मैं तो तंग आ गयी हूं रोज़-रोज़ तुम्हारा भाषण सुनकर." मानसी ने भी ग़ुस्से से कहा.
"मानसी, मैं तो तुम्हें बस ये समझाना चाहता हूं कि खाना थोड़ा नाप-तोल के बनाया करो, जिससे वो बचे नहीं और उसे फेंकने की ज़रूरत न पड़े. खाना बर्बाद करना अच्छी बात नहीं है. कितने ही लोग ऐसे हैं हमारे देश में, जिन्हें एक वक़्त का खाना भी नसीब नहीं होता. बेचारे भूख से मर जाते हैं और हम जैसे लोग, जो सम्पन्न हैं, वो इस बात को गंभीरता से लेते ही नहीं." अनुराग ने कहा.


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"अच्छा, तुम्हारा हो गया अब. अगर इतनी ही चिंता है तुम्हें गरीबों की, तो कल से तुम ही नपा-तुला खाना बना लिया करो. मैं नहीं बना पाऊंगी, मुझे और भी काम रहते हैं यही सब नहीं सोचते रहना है. और अभी तुम्हारे लेक्चर सुनने का समय नहीं है मेरे पास." मानसी ने झुंझुलाहट भरे शब्दों में कहा.
"ठीक है, जो तुम्हें दिखे सो करो. तुम्हें तो कुछ समझाना ही बेकार है. मैं चलता हूं ऑफिस के लिए देर हो रही है." और अनुराग ऑफिस के लिए निकल गया.
दोपहर में अनुराग ने मानसी को फोन किया और कहा, "सॉरी मानसी, मैंने सुबह तुमसे इस तरीक़े से बात की. मुझे तुमसे ऐसे नहीं बोलना चाहिए था. आख़िर तुम्हारे ऊपर भी तो घर की कितनी ज़िम्मेदारी है. ऐसे में हर छोटी-छोटी बात का ख़्याल रखना थोड़ा मुश्किल हो जाता है. मुझे माफ़ कर दो. आगे से मैं तुमसे यूं सुबह-सुबह ग़ुस्सा नहीं करूंगा. अच्छा! मैं सोच रहा हूं कि कल तुम्हें कहीं घुमाने ले जाऊं, तुम्हें अच्छा महसूस होगा."
मानसी ने कहा, "कोई बात नहीं अनुराग, मैं भी तुमसे माफ़ी मांगती हूं. मैंने भी सुबह थोड़ा ज़्यादा ही रिएक्ट कर दिया. ठीक है कल हम कहीं घूमने चलेंगे."
"ठीक है, तो फिर मैं कल की छुट्टी ले लेता हूं." कहकर अनुराग ने फोन रख दिया.
दूसरे दिन मानसी और अनुराग घूमने निकल गए.
थोड़ी देर बाद मानसी ने पूछा, "वैसे हम जा कहां रहे हैं? तुमने बताया नहीं."
"मानसी, एतिहासिक इमारतें, पार्क, होटल, मॉल वगैरह तो हमने बहुत घूमे हैं. आज मैं तुम्हें एक ख़ास जगह ले जा रहा हूं और उसके साथ-साथ शहर की भी सैर कराऊंगा." अनुराग ने कहा.
मानसी को समझ में नहीं आया, मगर वो कुछ बोली नहीं. अनुराग कार से ही मानसी को सड़क पर घूमते हुए गरीब लोगों, बच्चों को दिखाता जा रहा था और साथ ही यह भी बताता जा रहा था कि पैसे की कमी के कारण उन्हें कैसे-कैसे काम करने पड़ते हैं और दो वक़्त की रोटी जुटाने के लिए दिन-रात कितनी मेहनत करनी पड़ती है. अब मानसी थोड़ा-थोड़ा समझ रही थी कि अनुराग उसे क्या दिखाना चाह रहा था.
कुछ देर बाद अनुराग मानसी को स्लम इलाके में ले गया.
"तुम यहां क्यों लेकर आए हो मुझे. कितनी बदबू है यहां. यहां तो बहुत गरीब लोग रहते हैं, चलो यहां से." मानसी ने ग़ुस्सा दिखाते हुए कहा.
"चलते हैं मानसी, थोड़ी देर इनके जीवन से भी रू-ब-रू हो लेते हैं. देखो मानसी, यह भी हमारे देश की एक हक़ीक़त है जिसे नकारा नहीं जा सकता है. गरीबी की मार के कारण लाखों लोग ऐसा जीवन जीने के लिए मजबूर हैं. देखो, इन बच्चों को जो पेट भरने के लिए कूड़ेदान में भी खाना तलाश रहे हैं. जिस खाने को हम बड़ी ही आसानी से कूड़े में फेंक देते हैं, अगर वो ही खाना इनके पास पहुंच जाए, तो भारत में लोग भूखे नहीं मरेंगे. खाने के एक-एक निवाले के लिए ये लोग आपस में मरने-कटने को भी तैयार हो जाते हैं. जिस खाने के सामान को बड़ी ही आसानी से फेंक दिया जाता है उसे तैयार करने में एक किसान की कितनी मेहनत लगती है इसका अंदाज़ा तो तुम्हें होगा ही.

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भूख से बिलखते, तड़पते इन लोगों की कोई फ़रमाइशें नहीं है, बस पेट भर खाना और तन ढंकने के लिए कपड़ा मिल जाए यही बहुत है इनके लिए. कितने ही ऐसे बच्चे हैं, जो खाना न मिलने की वजह से भूख से मर जाते हैं. कितनी ही ऐसी औरतें हैं, जिन्हें गर्भावस्था में संतुलित आहार न मिल पाने की वजह से उनके बच्चे कुपोषित पैदा हो जाते हैं. तो क्या हमारा फर्ज़ नहीं बनता कि हम कोशिश करें कि अन्न बर्बाद न हो."
थोड़ी देर रुकने के बाद मानसी ने कहा, "मैं मानती हूं कि जो तुम कह रहे हो बिल्कुल सही है, मगर सिर्फ़ हमारे अकेले के करने से तो बदलाव नहीं आ जाएगा. इनकी गरीबी, भूख मिट तो नहीं जाएगी."
"मानता हूं, लेकिन अगर धीरे-धीरे सब हमारी तरह सोचेंगे तो बदलाव ज़रूर आएगा. किसी न किसी को तो पहल करनी ही पड़ती है न. हम सब मिलकर अगर खाने को बर्बाद होने से बचाएंगे, तभी तो इनकी स्थिति में सुधार आएगा." अपने ही देश में लोगों की ऐसी हालत देख मानसी की आंखें भर आईं.
"मुझे माफ़ कर दो अनुराग, आगे से मैं अपनी तरफ़ से पूरी कोशिश करूंगी कि खाना बर्बाद न हो और उसे फेंकने की ज़रूरत भी न पड़े." अनुराग ने मुस्कुरा कर मानसी से कहा, "आज हमारा बाहर घूमना सफल हुआ, क्योंकि आज हम कुछ अच्छा सीख कर घर जा रहे हैं." और दोनों वापस घर की ओर चल दिए.

विनीता आर्या

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