डॉक्टर ने पहले तो समझाने की कोशिश की, परन्तु वह अपनी बात पर अड़ा रहा कि उसकी पत्नी सुधर ही नहीं सकती.
अंत में डॉक्टर मित्र ने दवा तो दी, परन्तु साथ में यह हिदायत भी दी कि इस बीच वह अपनी पत्नी से बहुत अच्छा व्यवहार करे. उसके साथ प्रेमपूर्वक पेश आए. उसके काम की तारीफ़ करे. मीठे स्वर में बात करे. कभी उसे घुमाने ले जाए और कभी उसके लिए उपहार ले आए.
एक व्यक्ति स्वभाव से बहुत ग़ुस्सेवाला था. सदैव दूसरों में कमियां खोजना, सब की निंदा करना, यही उसका स्वभाव था.
समय पर माता-पिता ने उसका विवाह कर दिया, तो वह हर बात पर पत्नी के भी नुक़्स निकालने लगा. उसके भोजन बनाने में, घर संभालने में, हर काम में कमी ढूंढ़ कर उसे डांटता रहता.
वह दिखने में अच्छी थी. उसके बनाए भोजन की सब प्रशंसा करते, परन्तु पति को कमियां ही नज़र आतीं. उसे अपने मित्रों की पत्नियां सर्वगुण सम्पन्न लगतीं, पर अपनी पत्नी बात करती, तो उसे मूर्ख कह कर उसकी खिल्ली उड़ाता और चुप रहती, तो उसे असामाजिक कहता. पति के व्यवहार से वह उदास हो जाती तो, "क्या हर समय रोनी सूरत बनाए रखती हो?" कहकर उसे डपटता.
उसे अपनी पत्नी में दोष ही दोष नज़र आते. उसके मन में यह बैठा हुआ था कि वह मूर्ख और फूहड़ है.
और वह पत्नी से छुटकारा पाने के तरीक़े सोचने लगा, ताकि वह किसी स्मार्ट और समझदार स्त्री से विवाह कर सके.
तलाक़ में अनेक झंझट हैं और बदनामी होने का डर अलग से. उसमें ख़र्च और समय भी बहुत लग जाता है. इसके साथ ही तलाक़ देने से उसे दूसरा विवाह करने में भी समस्या आएगी. यह बात भी वह जानता था.
अतः वह कोई ऐसे उपाय की तलाश में था, जिससे उस पर कोई लांछन न लगे.
उसकी क़रीबी मित्र मंडली में एक डॉक्टर भी था. सो एक दिन वह इसी मतलब से अपने डॉक्टर मित्र से मिलने गया. उसे अपना राज़दार बनाते हुए कहा, "कोई ऐसा ज़हर हो, जो धीमा असर करता हो, ताकि किसी को संदेह न हो और पत्नी से छुटकारा भी मिल जाए."
डॉक्टर ने पहले तो समझाने की कोशिश की, परन्तु वह अपनी बात पर अड़ा रहा कि उसकी पत्नी सुधर ही नहीं सकती.
अंत में डॉक्टर मित्र ने दवा तो दी, परन्तु साथ में यह हिदायत भी दी कि इस बीच वह अपनी पत्नी से बहुत अच्छा व्यवहार करे. उसके साथ प्रेमपूर्वक पेश आए. उसके काम की तारीफ़ करे. मीठे स्वर में बात करे. कभी उसे घुमाने ले जाए और कभी उसके लिए उपहार ले आए.
यूं बीस-पच्चीस दिन बीते होंगे कि पति परेशान-सा उसी डॉक्टर मित्र के पास गया और बोला, “वह तो पूरी तरह से बदल गई है. भोजन भी अच्छा बनाती है. मीठी बातें भी करती है. हम एक साथ सिनेमा गए और चार दिन के लिए शिमला भी गए. वहां बहुत आनंद आया. ऐसी पत्नी ही तो मैं चाहता हूं.
मैं उसे किसी भी हालत में खोना नहीं चाहता. मेहरबानी करके कोई ऐसी दवा दो, जिससे कि उसके अंदर गए हुए ज़हर का असर ख़त्म हो जाए."
वह अपने डॉक्टर मित्र से मिन्नतें करने लगा.
इस पर डॉक्टर ने राज़ खोला, "जो दवा दी थी वह वास्तव में ज़हर थी ही नहीं, बल्कि ताक़त का पाउडर था. अतः तुम बेफ़िक्र रहो, तुम्हारी पत्नी को कुछ नहीं होगा.
तुम्हें उसमें जो इतने नुक़्स नज़र आते थे दरअसल, वह सब तुम्हारे अपने नज़रिए के कारण ही था. हम सब मित्र तो पहले से ही उनके गुणों से प्रभावित थे.
तुम उससे हमेशा दुर्व्यवहार करते थे, तभी वह अप्रसन्न रहती थी. हमेशा की डांट-फटकार के कारण-चिड़चिड़ापन आ गया था उसमें. तुम्हारे बुरे व्यवहार के कारण वह दुखी रहती थी. बिना कारण उस पर चिल्लाते थे, तो वह भी कभी तो उत्तर देगी ही.
अब तुम प्यार से बोलने लगे हो, तो तुम्हें उसकी अच्छाइयां नज़र आने लगी हैं और वह भी प्रसन्न रहने लगी है.
वास्तव में बदली वह नहीं, तुम बदल बदल गए हो. तुम्हारी सोच बदल गई है और वही पत्नी अब तुम्हें अच्छी लगने लगी है.”
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