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कहानी- एक रिश्ता अपना-सा (Short Story- Ek Rishta Apna-Sa)

“मैं जानती हूं कि तुम यही सोचती होगी कि मेरी मम्मी की किसी से नहीं बनती. बेटी, इंसान-इंसान में फ़र्क़ होता है. अगर मेरी सास मेरे लिए ठीक नहीं थीं तो ज़रूरी नहीं कि हर सास वैसी हो. मैं मानती हूंं कि जवानी में मुझसे कुछ रिश्ते परखने में भूल हुई होगी, लेकिन वह इंसान ही क्या जो अपने अनुभवों से कुछ सीख न सके. तुम्हारी मम्मी इतनी बुरी भी नहीं है बेटा कि अच्छे इंसान की कद्र न कर सके.”

कॉलेज से घर लौटते हुए प्रिया का दिमाग़ सिर्फ़ और सिर्फ़ वंदना आंटी के बारे में सोच रहा था. घर पहुंचने पर उसने टीवी पर अपना पसंदीदा धारावाहिक देखने की कोशिश की, लेकिन मन भटकते हुए पहुंच गया उसी ओर…
बात दोपहर की थी. प्रिया व उसकी कुछ सहेलियां अपनी प्राध्यापिका की प्रेरणा से कुछ उपहार लेकर शहर के दूरदराज़ कोने में बने वृद्धाश्रम गई थीं. वहां एकाकी जीवन बिता रहे बुज़ुर्ग पुरुष व महिलाओं को देख उसे काफ़ी हैरत हो रही थी. उन्होंने उन बुज़ुर्गों के साथ काफ़ी समय बिताया, लेकिन उनके संग नाचते-गाते अचानक प्रिया के पैर में मोच आ गई.
“आह!” वह तेज़ दर्द से कराह उठी. तभी एक वृद्ध महिला ने सहारा देकर उसे उठाते हुए कहा, “बेटी, मेरे कमरे में बाम रखा है. आओ, तुम्हें लगा दूं. अभी पैर ठीक हो जाएगा.”
न जाने उनकी आवाज़ में क्या कशिश व अपनापन था कि प्रिया उनके साथ चल दी. बाम लगवाते हुए प्रिया ने ध्यान से वृद्धा का चेहरा देखा. चश्मे के पीछे से झांकती मोटी-मोटी आंखों में अथाह स्नेह झलक रहा था.
प्रिया ने बरबस पूछ लिया, “आंटी जी, आप यहां कब से हैं?”
वृद्धा ने नज़रें उठाए बिना प्यार से जवाब दिया, “बेटी, यही घर तो अपना है, जहां मुझे काफ़ी पहले आ जाना चाहिए था. ख़ैर! मेरी छोड़ो, अपनी सुनाओ, क्या नाम है तुम्हारा और किस कक्षा में पढ़ती हो?”
“मेरा नाम प्रिया है तथा मैं गर्ल्स कॉलेज में बीएससी फाइनल की छात्रा हूं. आंटी जी, आपका क्या नाम है?”
“वंदना” जवाब देने के साथ ही उन्होंने प्रिया को सहारा देकर खड़ा कर दिया.
न जाने उनके हाथोें में क्या जादू था कि प्रिया के पैर का दर्द छूमंतर हो गया और वह मुस्कुराते हुए उनके साथ बाहर आ गई, जहां उसकी सहेलियां बुज़ुर्गों के संग अपने अनुभव बांटते हुए उनकी भावनाएं जानने-समझने में जुटी थीं.


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प्रिया भी वंदना आंटी के साथ एक मेज़ पर बैठ गई. बातचीत में उसे पता चला कि वंदना आंटी के पति का निधन होने के बाद जब वो अपने इकलौते बेटे-बहू की नज़रों में खटकने लगी थीं, तब उन्होंने ख़ुद ही घर छोड़कर वृद्धाश्रम में रहने का निर्णय लिया था. प्रिया को यह जानकर बहुत हैरानी हुई कि वंदना आंटी के दो वर्षों से यहां होने के बावजूद उनके बेटे-बहू ने एक बार भी यहां आकर उनका हालचाल जानना मुनासिब नहीं समझा था. प्रिया ने आंटी को अपने हाथ से बुने मोजे भेंट किए, तो इस उपहार को पाकर वो ख़ुशी से अभिभूत हो गईं, “बेटी, तुम दिल की जितनी अच्छी हो उतनी ही सुशील भी हो, वरना आजकल की लड़कियों को कढ़ाई-बुनाई में रुचि कहां है?”
उनके संग बातचीत में गुम प्रिया को समय का ध्यान तब आया जब उसकी सहेली ममता ने उसे झकझोर कर कहा, “मैडम जी, अब चलें या अपनी आंटी के साथ ही रहना है?” प्रिया ने भरे मन से वंदना आंटी से विदा ली, तो उन्होंने उसका माथा चूमते हुए कहा, “हो सके तो फिर आना बेटी.”
“मैं ज़रूर आऊंगी आंटी.” किसी अपने से बिछड़ने का एहसास लिए प्रिया वहां से चली आई थी.
अचानक किसी बर्तन के गिरने की आवाज़ सुन प्रिया जैसे नींद से जागी. मम्मी रसोई में थीं. एक पल के लिए उसनेे सोचा कि वंदना आंटी के बारे में मम्मी को बता दे, पर मम्मी के स्वभाव की याद आते ही उसने अपना इरादा बदल दिया. मम्मी भावुकता की जगह व्यावहारिकता को अहमियत देती हैं. साथ ही किसी अजनबी से रिश्ते की उनके लिए कोई क़ीमत नहीं.
प्रिया चाहकर भी मम्मी को वंदना आंटी के बारे में नहीं बता पाई, क्योंकि मम्मी ने ख़ुुद अपने सास-ससुर के स्वभाव से तंग आकर पापा के साथ अपना ससुराल छोड़ दिया था. ऐसे में भला उन्हें वंदना आंटी से हमदर्दी क्यों होती?
अगले दिन प्रिया कॉलेज से अकेली ही वृद्धाश्रम चली गई. वापसी में वंदना आंटी ने उसे जयपुरी चूड़ियों का लाजवाब सेट यह कहकर पहना दिया कि मेरी बेटी होकर मुझे मना करती हो. दोनों के बीच काफ़ी बातें हुईं. दोनों ने एक-दूसरे को जाना-समझा.
प्रिया के मन में फिर से टीस उठी कि कितने निर्दयी और स्वार्थी हैं वे बेटे-बहू, जिन्होंने इतनी नेक महिला को बुढ़ापे में घर से बाहर निकलने पर मजबूर कर दिया. इस मुलाक़ात ने दोनों के बीच एक अनजाना बंधन इस कदर मज़बूत कर दिया कि प्रिया कॉलेज से छुट्टी होने पर अक्सर उनसे मिलने चली जाती. वंदना आंटी ने भी उस पर ममता का सागर उड़ेल दिया था.
परीक्षा सिर पर आ पहुंची थी. प्रिया मन लगाकर पढ़ाई में जुटी थी कि बाथरूम में पैर फिसलने से मम्मी घायल हो गईं. रीढ़ की हड्डी में फ्रैक्चर बताते हुए डॉक्टर ने उन्हें पूरी तरह आराम करने की सलाह दी. नज़दीकी रिश्तेदारों में कोई ऐसा नहीं था जो इस आड़े वक़्त में घर का कामकाज और मम्मी की देखरेख कर पाता. मम्मी की एक सहेली ने किसी नौकरानी को भेजा, लेकिन उसके नाज-नखरे इतने थे कि ख़ुद मम्मी का सब्र जवाब दे गया और वह नाक-भौं सिकोड़कर चलती बनी.
प्रिया के लिए अब मुश्किल खड़ी हो गई. एक तरफ़ परीक्षा तो दूसरी तरफ़ घर का काम और मम्मी की देखभाल. इस चक्कर में वह कुछ दिन तक वंदना आंटी से भी नहीं मिल पाई थी. प्रिया के वृद्धाश्रम न आने पर वंदना आंटी को उसकी चिंता सताने लगी. जब उनसे नहीं रहा गया, तो उन्होंने प्रिया को फोन किया. प्रिया ने वंदना आंटी को घर की सारी स्थिति के बारे में बता दिया. प्रिया के घर की हालात जानकर वंदना आंटी भी परेशान हो उठीं.
आज प्रिया का पहला पेपर था. पेपर देकर घर लौट रही प्रिया का मन मम्मी की तरफ़ ही लगा हुआ था. बदहवास-सी जब वो घर में घुसी, तो भौंचक्की रह गई. मम्मी और वंदना आंटी किसी बात पर ठहाके लगा रही थीं.
“अरे वंदना आंटी आप! यहां कैसे?”
“मेरी प्रिया बेटी किसी तकलीफ़ में हो तो मैं उससे दूर थोड़े ही रहूंगी.”
“मम्मी, ये वंदना आंटी हैं… माफ़ करना मैं आपको इनके बारे में नहीं बता पाई.”
“इसकी मुझे बहुत नाराज़गी है.” मम्मी के चेहरे के भाव बदल गए. फिर वो दो पल रुककर बोलीं, “तुम इनके इतने नज़दीक आ गई और हमसे ये बात छुपाए रखी…”
प्रिया ने मम्मी की बात को बीच में ही काटते हुए कहा, “मम्मी, मुझे लगता था कि आपको ये सब ठीक नहीं लगेगा, क्योंकि…”
“मैं जानती हूं कि तुम यही सोचती होगी कि मेरी मम्मी की किसी से नहीं बनती. बेटी, इंसान-इंसान में फ़र्क़ होता है. अगर मेरी सास मेरे लिए ठीक नहीं थीं तो ज़रूरी नहीं कि हर सास वैसी हो. मैं मानती हूंं कि जवानी में मुझसे कुछ रिश्ते परखने में भूल हुई होगी, लेकिन वह इंसान ही क्या जो अपने अनुभवों से कुछ सीख न सके. तुम्हारी मम्मी इतनी बुरी भी नहीं है बेटा कि अच्छे इंसान की कद्र न कर सके.”
प्रिया के चेहरे पर शर्मिंदगी के भाव देख वंदना आंटी ने उसे खींचकर अपने पास बिठाते हुए कहा, “प्रिया, मम्मी की बातों का बुरा मत मानना. तुम्हारा सोचना अपनी जगह सही था और एक मां के तौर पर सुमनजी की सोच भी सही है.
तुम मुझे यहां देखकर हैरान हो रही होगी ना? कल फोन पर बातचीत के दौरान मुझे तुम्हारी परेशानी का अंदाज़ा हो गया था. सारा दिन मैं यही सोचती रही कि तुम परीक्षा की तैयारी कैसे करोगी? पढ़ाई करोगी या घर व मम्मी को संभालेगी. फिर मुझसे नहीं रहा गया और मैंने फोन पर तुम्हारी मम्मी से बात की. उन्हें अपने बारे में बताया और तुम्हारे घर चली आई.”
फिर वंदना आंटी की बात को आगे बढ़ाते हुए मम्मी ने कहा, “जानती हो, घर आते ही इन्होंने सारा काम संभाल लिया. पापा छुट्टी लेने की सोच रहे थे, लेकिन इन्होंने तुम्हारे पापा को भी ऑफिस भेज दिया. सच कहूं तो इन्होंने मेरा इतना ख़्याल रखा, जितना मेरी सगी मां भी न रख पाती.”

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“मुझे भी आप सबसे मिलकर बहुत अच्छा लगा. लगा ही नहीं कि मैं किसी अजनबी के घर में हूं.” कहते हुए वंदना आंटी का स्वर रुंध गया.
फिर वंदना आंटी ने प्रिया को खाना खिलाया और शाम को पापा के घर लौटने पर सबके मना करने के बावजूद रिक्शे में बैठकर वृद्धाश्रम लौट गईं. उनके आने से घर में जैसे ख़ुशियों की बरसात होने लगी. मम्मी के स्वास्थ्य में भी तेज़ी से सुधार आने लगा. आख़िर उन्हें भी अपने साथ के लिए कोई मिल गया था.
प्रिया की परीक्षा अब ख़त्म हो चुकी थी. फिर एक दिन अचानक वंदना आंटी ने कहा, “अब तो प्रिया घर पर रहेगी और आपकी तबीयत में भी सुधार है. अब मेरा रोज़-रोज़ यहां आना ठीक नहीं.”
मम्मी की बजाय पापा ने जवाब दिया, “मेरे माता-पिता इस दुनिया में नहीं हैं, लेकिन मैं उनकी कमी हमेशा महसूस करता था. मेरा मानना है कि बुज़ुर्गों की छत्रछाया बच्चों के लिए हमेशा सुखमयी होती है. आपके यहां आने पर मैंने अपनी मां को आपके भीतर पाया. हम नहीं जानते कि आपने हमारे परिवार के प्रति क्या धराणा बनाई होगी, लेकिन मेरी और सुमन की यही इच्छा है कि आपका साया हर पल हम पर बना रहे.”
पापा ने जिन संतुलित शब्दों में अपने दिल के उद्गार व्यक्त किए, उन्हें महसूस कर प्रिया के दिल की धड़कनें तेज़ हो गईं. मम्मी शांत भाव से वंदना आंटी की ओर उम्मीद भरी निगाहों से देख रही थीं. स्पष्ट था कि पापा ने जो कुछ भी कहा, उसमें उनकी भी सहमति थी.
वंदना आंटी से कुछ कहते न बना. फिर मम्मी ने कहा,“ प्रिया से हमें आपके बेटे-बहू के बारे में भी पता चला. हम भी आपके बेटे-बहू जैसे हैं. हमें भी अपनी सेवा का मौक़ा दीजिए. आपका साथ रहेगा तो हमारा परिवार संपूर्ण हो जाएगा.”
उनकी आत्मीयता व प्यार देखकर वंदना आंटी की आंखों में आंसू छलछला आए. नम आंखों से उन्होंने कहा, “अपने बेटे प्रतीक और उसकी पत्नी बीना की उपेक्षा से दुखी होकर वृद्धाश्रम आने पर मैंने तय कर लिया था कि अब मैं सांसारिक मोहमाया से हमेशा दूर ही रहूंगी, लेकिन आपका परिवार मुझे अपनी तरफ़ खींच रहा है. मैं आपके साथ रहने के बारे में ज़रूर सोचूंगी, फ़िलहाल मुझे इजाज़त दीजिए.”
वंदना आंटी मुड़ने लगीं कि प्रिया ने उनका रास्ता रोक लिया, “आपकी पोती की भी यही तमन्ना है कि आप हमारे साथ रहें.” वंदना आंटी ने उसका माथा चूमा और तेज़ी से आगे बढ़ गईं.
पीछे से प्रिया उन्हें पुकारे जा रही थी, “प्लीज़ वंदना आंटी… प्लीज़ मत जाओ…”
अब वो ख़ुद को रोक नहीं पा रही थीं. न चाहते हुए भी उनके क़दम प्रिया के घर की तरफ़ मुड़ गए. वो प्रिया के पास आईं और उसे सीने से लगाते हुए बोलीं, “वंदना आंटी नहीं, दादी मां कहो.”
प्रिया के साथ-साथ मम्मी-पापा की आंखोें में भी ख़ुशी के आंसू छलक रहे थे.

- संदीप कपूर

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Photo Courtesy: Freepik

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