
पुलिस, अदालत, तलाक़, मारकाट, हिंदू-मुस्लिम दंगे जैसी स्थिति बनते-बनते रह गई. फिर भी लोग कयास लगा रहे थे ये दोनों परिवार धर्म से ऊपर उठ वसुधैव कुटुंबकम का बड़ा दम भर रहे थे. अब एक-दूसरे को प्राण पिपासु की तरह देखेंगे. हेरा फेरी दोनों के बीच दरार नहीं खाई बन कर उभरेगी.
घटना ऐसे दौर में घटी है जब जनसमूह थोड़े को मुद्दा और न्यूज़ चैनल आइटम बनाने की जुगत में लगे रहते हैं. सच कहें तो अब लोगों के पास धीरज और ठहराव बिल्कुल नहीं रहा.
बलदेवगढ़ की मारुति नगर कॉलोनी का यह भवन निश्चित रूप से किराए पर देने के मद्देनज़र निर्मित हुआ है. बाएं भाग में तीन वर्ष प्राचीन दंपति सबा और अशर रहते हैं. दाएं में पांच वर्ष प्राचीन दंपति सुग्रीव और सुनीति. दोनों दंपति अभी लालन-पालन से मुक्त हैं, जबकि बीच के भाग में रहने वाले भास्कर और दीपा तीन पुत्रियों के लालन-पालन में खून-पसीना एक किए डालते हैं. गंगा-जमुनी दोस्ती निभा रहे अशर और सुग्रीव स्थानीय सीमेंट फैक्ट्री में कार्यरत हैं. सुग्रीव का ओहदा अशर से अग्रणी है. सबा और सुनीति ने गंगा-जमुनी संस्कृति के तहत तीन-चार साड़ियां एक ही दुकान से हूबहू ख़रीदी हैं. कॉलोनी के आयोजनों में अक्सर नहीं पर कुछ बार पहन कर स्त्री वर्ग को चौंका चुकी हैं. आयु में अंतर के कारण भास्कर और दीपा से ये दोनों युवा दंपति जुदा रहते हैं.
भास्कर इसे अपना तिरस्कार नहीं मानता, पर दीपा की स्पष्ट राय है, “सब दिखावा है. मुस्लिम और पंडिताइन की मित्रता फर्ज़ी है. किसी दिन दोनों मुंह की खाएंगी.” मुंह की खाने के लिए मानो नया साल प्रतीक्षा कर रहा था. दोनों दंपतियों ने तय किया एक जनवरी चूंकि इतवार को है, तो बलदेवगढ़ से 15 किलोमीटर दूर मुकुंदपुर सफारी में विश्वविख्यात स़फेद बाघों को देखेंगे और मनचाहा खाएंगे.
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सबा और सुनीति ने एक जैसी गुलाबी साड़ी पहनने की मिलीभगत कर ली. 30 दिसंबर की शाम सुग्रीव की बहन का कॉल आया वह मथुरा जा रही है. एक जनवरी को ट्रेन सुबह नौ के आसपास बलदेवगढ़ पहुंचेगी. सुग्रीव और सुनीति स्टेशन आकर मिल लें. तय हुआ बहन से मिलते हुए मुकुंदपुर सफारी का रुख किया जाएगा.
दुनिया का कोई भी दंपति उठाकर देख लो, उनमें कुछ न कुछ विपरीत तत्व शर्तिया पाए जाते हैं. सुनीति को श्रृंगार में व़क्त लगता है, जबकि सुग्रीव की बॉडी में बला की फुर्ती भरी है. एक जनवरी को उसने फुर्ती बढ़ा ली कि ट्रेन न चली जाए. सुनीति को जल्दी करने को कह हेलमेट धारण कर बाइक पर आ डटा. दो-तीन बार हॉर्न बजाकर सुनीति की श्रृंगार चेष्टा को मंद करने की कुचेष्टा की, पर श्रृंगारप्रिय भार्या श्रृंगार में कटौती पसंद नहीं करती. सबा की कहें तो वह चूंकि प्राकृतिक तौर पर हसीन है, इसलिए श्रृंगार में दिलचस्पी नहीं रखती, पर तालों को बार-बार जांचने की उसकी पुरानी आदत है. द्वार, आलमारी, बक्सा जहां-जहां ताले लगाने की संभावना होती है, लगाती है. तालों को झटका देकर तालों का भली प्रकार बंद होना जांचती है. सबा के ताला प्रेम से अशर भ्रमित हो जाता है.

“सबा, बार-बार ताले चेक करती हो. तुम्हें दिमाग़ी बीमारी है.”
सबा को बार-बार ताले चेक करते देख अशर का जब सब्र चुक गया, वह बाहर निकल आया. उसे मेरी बिल्ली, बड़ी चिबिल्ली की तरह घर-घर में झांकने, सूंघने का शौक है. उसने भास्कर के खुले मुख्यद्वार से झांका. बैठक में बैठा भास्कर चाय पी रहा था. अशर चाय की तलब को नहीं रोक पाता. भास्कर ने जैसे ही, ‘आओ चाय पियो.’ कहा, अशर बैठक में घुस गया. सबा जब तक तालों को झटका देगी, चाय से आमाशय गरम कर लेगा. लेकिन सबा अपेक्षाकृत जल्दीे निकल आई. देखा शौहर बाइक पर आरूढ़ है. वह तत्परता से बाइक पर बैठ गई.
बाइक को गति पकड़े हुए पांच या दस मिनट हुआ होगा कि सुनीति द्वार बंद कर परिसर में आ गई. चहुं ओर दीदे घुमाए. न सुग्रीव है न उसकी बाइक. क्या दिन दहाड़े सुग्रीव समेत बाइक चोरी हो गई? यह कैसे हो सकता है? ज़रूर पान खाने चला गया होगा. सुनीति, सबा को टेरने के लिए उसके दर पर पहुंची. मुख्यद्वार पर लगा ताला बता रहा था सबा जहां कहीं हो, पर घर के भीतर नहीं है. अशर की बाइक खड़ी है. अशर और सबा क्या बाइक भूल कर छह किलोमीटर दूर रेलवे स्टेशन पैदल चले गए? चश्मा, घड़ी, छाता, थैला भूलते सुना है. बाइक भूलने का यह पहला केस होगा. वह विचारमग्न खड़ी थी. वहीं अशर आ गया. उसकी नज़र गुलाबी साड़ी वाली सुनीति की पीठ पर पड़ी. उसे लगा सबा है.
“सबा, आज बड़ी जल्दी ताले लगा दिए?” सुनीति पीछे पलटी.
“आप...” अशर दंग हो गया.
“यही साड़ी तो सबा पहने है.”
“हम दोनों ने एक जैसी पहनने का प्लान किया है. सुग्रीव नहीं दिख रहा है.”
“पान खाने गया होगा. लगता है पान चबाने का वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाएगा.”
“सबा कहां है?”
“ताले चेक कर रही होगी. तालों पर रिसर्च कर डाले तो नाम के आगे डॉक्टर लग जाए.”
“आपके घर में ताला लगा है.”
“ताला? सबा भीतर रह गई?”
“भीतर है, लेकिन आपने ताला लगा दिया?”
“मेरे लगाए ताले पर वह यक़ीन नहीं करती. ख़ुद ही लगाती है. कहां गई?”
अशर आसपास के घरों में पूछताछ करने लगा. सबा नहीं मिली अलबत्ता प्रत्येक घर से एक-दो मुखड़े साथ हो लिए. मुखड़ों पर नाना प्रकार के भाव थे. जैसे नए वर्ष के प्रथम दिवस पर कोई प्रहसन होने जा रहा है.
कोलाहल सुन भास्कर और दीपा पुत्रियों सहित बाहर निकल आए. भास्कर ने वरिष्ठ होने का कर्तव्य निभाया.
“सुनीति, सुग्रीव के मोबाइल पर कॉल करो.”
सुनीति ने विपदा कही, “मेरा मोबाइल घर पर है. जब सुग्रीव के साथ जाती हूं अपना मोबाइल नहीं ले जाती.”
“अशर, तुम सबा को कॉल करो.”
“वह मेरे साथ जाती है, तो अपना मोबाइल नहीं ले जाती.”
दीपा को लगा वह क्षण आ गया है जब दोनों मित्राणी मुंह की खाने वाली हैं. बोली, “एक जैसी साड़ी, एक जैसी आदत. सुनीति तुम दोनों किस टाइप की हो?”
“अशर जी, आप सुग्रीव जी को कॉल करो.”
“ठीक है.”
अशर ने सुग्रीव को तीन बार कॉल किया. स्विच ऑफ. अशर चौथी बार कॉल कर रहा था, तभी जमावड़े में शामिल वरिष्ठ आयु के सोलंकी जी ने सुनीति को इंगित कर गदर मचा दी, “बहन जी अभी तो आपको बाइक पर सुग्रीव के साथ जाते देखा. इधर कइसे?”
दीपा के हाथ मानो पुख्ता सूत्र लग गया हो.
“सुग्रीव जी के साथ सबा चली गई?” एक साथ कई स्वर उभरे,
“सबा भाभी?”
प्राणनाथ के बरामद होने की तसल्ली और पराई नार को ले जाने की कातरता. सुनीति भली प्रकार नहीं समझ पाई मामला ढाढ़स पाने का है या नीर बहाने का. उसका स्वर तंत्र कठिनाई से खुला, “हम दोनों ने एक जैसी साड़ी पहनी है. सुग्रीव भूल से सबा को बैठा ले गया.”
तीर पर तीर चलाने का सुनहरा अवसर दीपा नहीं छोड़ेगी, “लगता है सुग्रीव जी सूरत नहीं साड़ी देखते हैं.”
सुनकर अशर का पौरुष दो टूक हो गया. सड़क में काफ़ी बड़े-बड़े गड्ढे हैं. बाइक जब उछलती है, पीछे बैठे शख़्स का बदन बाइकर की पीठ से टकरा जाता है. सबा का बदन सुग्रीव की पीठ से टकरा रहा होगा जैसा ख़्याल आते ही वह भस्मीभूत हो गया. उसके मुख से उद्गार निकला, “सुनीति भाभी, आपका शौहर लफड़ेबाज है.”

सुनीति मान रही है सुग्रीव ने बेहूदा हरकत की है, पर समूह के सम्मुख उसे लफड़ेबाज साबित नहीं करना चाहती. बोली, “सुग्रीव की आंखें पीठ पर नहीं लगी हैं कि पीछे बैठने वाली की पहचान कर लेता. सबा तो देख लेती. बैठी और चली गई.”
अशर अड़ा रहा, “आप सुग्रीव की साइड मत लो भाभी.”
समूह में उपस्थित रमा नाम की नारी सहसा वाचाल हो उठी, “चलो माना चले गए, पर अब तक लौटे क्यों नहीं? दोनों मुंह में टेप चिपका कर तो गए नहीं हैं. कुछ तो बातचीत हुई होगी. कॉल भी रिसीव नहीं किए.”
रमा की बात से सुनीति को यह गमन सुग्रीव की बहक गई नीयत का मामला लगने लगा. उसके आंसू प्रवाहमान हो गए. अशर को रोती हुई सुनीति दया की पात्र लगी.
सबा सचमुच जहनी तौर पर बीमार है. अपना शौहर न पहचान सकी. यदि लौट आती है, मेंटल हॉस्पिटल ले जाकर करंट के चार-छह झटके लगवा देगा.
एक बुज़ुर्गवार अशर के दर्द की डिग्री बढ़ाते हुए बोले, “बकवास ज़माना आ गया है. कुछ लोग अपने पति और पत्नी में अंतर नहीं कर पा रहे हैं. कुछ लोग लिव इन में रहे हैं. 60-65 साल के कुछ विधुर और विधवाएं शादी कर रहे हैं. मेरी गत यौवना को स्वर्गारोही हुए पांच साल हो रहे हैं, पर मैंने कभी पराए धन पर नज़र नहीं डाली.”
भास्कर ने बात संभाली, “मुझे लग रहा है जल्दबाज़ी में हेरा फेरी हो गई है.” मनुष्यों की जिज्ञासा विकराल होती है. कौन भागा, किसके साथ भागा, कब भागा जानने के लिए लोग जुहाते जा रहे हैं. इन्हीं में शामिल युवा एडवोकेट सहसा प्रकाश में आ गया, “व़क्त जाया न करें. खोज-ख़बर लें.”
नारायण ने एडवोकेट की राय को पुष्ट किया, “ठीक बात. अभी बहुत दूर नहीं गए होंगे.”
एडवोकेट अब प्रमुख वक्ता बन गया, “थाने में रिपोर्ट लिखानी होगी. पुलिस सभी रास्तों के चुंगी नाकों में तैनात हो जाएगी. चूंकि बाइक से गए हैं शर्तिया तौर पर सड़क मार्ग से ही जा रहे होंगे.”
“सड़क मार्ग से नहीं रेल मार्ग से जा रहे होंगे. मुझे लगता है सुग्रीव जी बहन से मिलने नहीं, सबा जी के साथ फरार होने के लिए स्टेशन गए हैं.”
एडवोकेट जारी था, “दो-चार लोग रेलवे स्टेशन चले जाएं. लोगों से पूछें एक लंबे-तगड़े आदमी को कटे बाल वाली महिला के साथ देखा हो तो बताएं. मालूम हो जाए किस ट्रेन से भागे हैं, तो स्टेशन मास्टर से निवेदन कर ट्रेन को अगले स्टेशन पर रुकवाया जा सकता है.” सुनीति कुछ कहने की मनोदशा में नहीं थी. अशर मनोदशा में था, पर लोग उसे बोलने नहीं दे रहे थे.
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चार युवा आगे आए, “हम दो थाने में रिपोर्ट लिखाने और दो रेलवे स्टेशन चले जाते हैं.” युवाओं की मुद्रा बता रही थी कि वे अब रोके नहीं रुकेंगे. एडवोकेट ने हथेली फैला कर उन्हेंं रोका, “थाने जाना ही होगा, पर घटना के 24 घंटे होने तक पक्की रिपोर्ट नहीं बनती है. कच्ची रिपोर्ट बनती है. पुलिस पूछ सकती है कि किस आधार पर कह रहे हो दोनों भाग गए हैं. पुलिस को, अदालत को सबको सबूत चाहिए. अशर भाई और सुनीति दीदी अपने घरों में देखो, उन लोगों ने कोई पत्र छोड़ा है क्या? पत्र बरामद हो जाए, तो मैं जलजला उत्पन्न कर दूंगा. हम लोग कचहरी जाएंगे, जिलाधीश के बंगले में धरना देंगे, विधायक का घेराव करेंगे, जुलूस निकालेंगे, इससे भी आगे.”
इससे आगे भास्कर बोला, “और बलदेवगढ़ में हिंदू-मुस्लिम दंगा करा देंगे? बुद्धि को लगाम दो वकील, वरना मामला दो परिवारों का नहीं दो वर्गों का बन जाएगा. हिंदू और मुस्लिम इसे इज्ज़त का सवाल बना देंगे. लीटरों खून बहेगा. न्यूज़ चैनल ऐसे मामलों की टोह में रहते हैं.”
एडवोकेट के सुरूर में कुछ गिरावट देखी गई.
पत्र संबंधित मुआयना करने के लिए अशर और सुनीति अपने-अपने घर की ओर चले. घर में लगे ताले ने अशर को घर में न घुसने दिया. वह सबा की तरह ताले झटकने लगा. मन ही मन सबा की सात पुश्तों को तारने लगा- नहीं सोचा था दगा दे जाएगी. भला रहा जो इसे पूरा वेतन नहीं सौंपता था, वरना बड़ी रकम लेकर लापता होती. सुग्रीव बड़ा जिगरी बनता था. अब समझ में आ रहा है सबा को हथियाने के लिए जिगरी बना...
उधर दो-चार समाज सुधारक टाइप की महिलाओं की घेराबंदी में सुनीति ताला खोल अपने घर में प्रविष्ट हुई. पत्र ढूंढ़ते हुए वह प्रति पल कमज़ोर हुई जा रही थी. सुग्रीव एकदम फरेबी आदमी है. इसकी नीयत सचमुच ख़राब है. अक्सर सबा की ख़ासियत बताता रहता है कि कितनी ख़ूबसूरत है... वह मर्कटमुखी ख़ूबसूरत है तो मैं भी लुभावनी हूं. पापी मर्कटमुखी के साथ भाग गया... सबा तो शुरू से चालाक लगती थी. अक्सर कहती सुनीति ऐश करो. सुग्रीव भाईजान की पगार अशर से अधिक है. तुमसे पैसे का हिसाब नहीं पूछते हैं. जो कहती हो ख़रीदते हैं. यह रेयर क्वालिटी कम शौहरों में होती है. अशर अपने अब्बू को पैसे भेजते रहते हैं. मैं कुछ ख़रीदने को कहती हूं तो कहते हैं अभी नहीं, अगले महीने... सुनीति सोच रही थी, आंसू पोंछ रही थी, पत्र ढूंढ़ रही थी. संलग्न महिलाएं सुनीति का परिताप बढ़ाने लगीं, “आदमी तो होते ही दिलफेंक हैं. सबा तो कुछ सोचती.”
“टुच्ची को सुग्रीव जी ही मिले थे? किसी अपने जात वाले को पकड़ती. लोक लाज खो दी.”
इधर यह चल रहा था, तो बाहर भी मीमांसा थम नहीं रही थी. “मुझे तो लगता है इन दोनों का प्रेम प्राचीन था. कॉलेज या स्कूल के ज़माने का.”
“सुग्रीव दिलेर है. सरेआम मित्र की पत्नी को ले उड़ा. पड़ोसी की मेहेरिया किसे अच्छी नहीं लगती, पर सब सुग्रीव जैसे बाहुबली नहीं होते.”
“हिंदू-मुस्लिम आपस में बिल्कुल भरोसा नहीं करते हैं. ये न अमन-चैन से रहते हैं, न रहने देते हैं.”

“सुग्रीव और अशर बड़ा भाईचारा दिखाते थे. असलियत सामने आ गई. अच्छा चुप रहो. अशर और सुनीति आ रहे हैं.” सुनीति खेद में डूबी थी.
हाड़-तोड़ परिश्रम करके भी पत्र नहीं ढूंढ़ सकी. अशर के मुख पर घर में ताला बंद होने की पराजय स्पष्ट देखी जा सकती थी.
इधर ग़ज़ब! उधर भी ग़ज़ब!
ट्रेन न चली जाए, इस फ़िक्र में सुग्रीव ने दो-चार बार बाइक का हॉर्न बजाया था कि सुनीति भरपूर श्रृंगार न कर नज़ाकत को समझेगी. सबा जैसे ही बाइक पर बैठी, उसे सुनीति समझ सुग्रीव बाइक हांक ले गया. सुग्रीव चुप था कि सुनीति डपट देगी.
तुम्हारे कारण ठीक से तैयार नहीं हो पाई. सबा चुप थी कि अशर डपट देगा कि तुम कभी व़क्त पर निकल ही नहीं सकती. बहन से मिलने को आतुर सुग्रीव अपेक्षाकृत स्पीड में बाइक चला रहा था. भारी भरकम स्पीड ब्रेकर पर ध्यान नहीं दिया. टकराकर बाइक का साइलेंसर ख़राब हो फटाके की लड़ी की तरह भड़भड़ वाली ध्वनि करने लगा. सुग्रीव बुलंद स्वर में बोला, ताकि कर्कश ध्वनि के बावजूद सुनीति सुन ले, “साइलेंसर को आज ही ख़राब होना था. वर्कशॉप में जाऊं, तो ट्रेन मिस हो जाएगी. तुम इतना सजती हो जैसे मिस इंडिया चुनी जाओगी.” यही क्षण था जब सबा बाइक से गिरते-गिरते बची.
या अली मैं बेवकूफ़ हूं. न देखा न जांचा. जल्दबाज़ी या फितूर में सुग्रीव के पीछे बैठ गई. सुग्रीव सोचेगा मैंने जान-बूझकर ऐसा किया है. कितनी बेवकूफ़ हूं. दोनों की बाइक काली है. हेलमेट में कौन पहचान में आता है? कपड़े ध्यान नहीं रहता अशर ने आज कौन सी शर्ट पहनी है. सुग्रीव ने जैकेट के साथ यह जो सूती प्लेन स़फेद शर्ट पहन रखी है, दुनिया के तक़रीबन सभी मर्दों के पास होती है.
सुग्रीव, सबा के क्लेश से अनभिज्ञ था, “दीदी से मिलने के बाद साइलेंसर बनवाना पड़ेगा. अशर को कॉल कर दूंगा स्टेशन न आए. सीधे गुलाब वर्कशॉप पहुंचे. अभी तो सबा ताले झटक रही होगी. वह लंबोदर अशर यातायात के नियमों का पालन करते हुए कछुए की चाल से बाइक चलाता है. इसीलिए मैं जल्दी निकल आया.” सबा का बदन सनसना गया. लंबोदर क्या होता है? सुग्रीव अशर का जिगरी दोस्त नहीं जानी दुश्मन है. उसके हिवड़े में खलबली उठी कि सुग्रीव के चेहरे का ग्राफ बिगाड़ दे, पर शर्मसार जीभ तालू से चिपकी जा रही थी. उसे चुप देख सुग्रीव बोला, “वाणी चली गई है क्या? सुनीति तुम तो नॉन स्टॉप बोलती हो.”
सबा की हया कह रही थी बाइक से छलांग लगा दे, पर हाथ, पैर, नाक में प्लास्टर चढ़ने की आशंका से जौहर नहीं दिखा पाई. सुग्रीव ने माना भरपूर श्रृंगार न कर पाने के कारण सुनीति रिसाई है.
“नाराज़ हो? मुझसे सट कर बैठो. कंधे पर हाथ रखो, जैसे आमतौर पर रखती हो. तुम तो ऐसे छिटक कर बैठी हो जैसे पड़ोसी की पत्नी हो.”
सुग्रीव ने स्टेशन पहुंच कर पाया यह सचमुच पड़ोसी की पत्नी है. सबा जैसे ही पानी-पानी होने वाली दशा में बाइक से उतर कर खड़ी हुई, सुग्रीव अचेत होते-होते बचा.
“आप...”
“ग़लती से...”
“ऐसे कैसे..?”
सुग्रीव लटपटा गया. अशर और सुनीति नहीं मानेंगे यह कुकांड जल्दबाज़ी या असावधानी के कारण हो गया है. वे इसे मेरी ख़राब मंशा मानेंगे. सबा के आचरण को क्या कहूं? मैं बोलता रहा, लेकिन इसने नहीं बताया यह सबा है.

“आपने बताया तो होता.”
“हौसला न हुआ. घर चलिए. सुनीति और अशर परेशान होंगे.”
“ट्रेन मिस हो जाएगी. अशर को कॉल कर बता देता हूं. ओह! लो बैटरी... रात में चार्ज करना भूल गया था.”
सबा का इरादा बना रिक्शे से लौट जाए, पर छह किलोमीटर रिक्शे से जाने में व़क्त लगेगा. तब तक ऐसा न हो अशर, सुनीति को लेकर स्टेशन चला आए. आज तो साफ़ कहेगा अपना शौहर नहीं पहचानती. मेंटल हॉस्पिटल चलो. दो-चार झटके लगवा दूं.
“सुबह पता नहीं किसका चेहरा देख लिया जो...”
“अशर का देखा होगा. आप दोनों ने एक जैसी साड़ी न पहनी होती, तो शायद घपला न होता. सुनीति बेवकूफ़ है. किसी से दोस्ती करेगी तो खाने-कपड़े की समानता के स्तर पर.”
सबा का कंठ थरथरा गया.
“ग़लती मेरी है उसकी है. आपसे पहले निकल आती, तो गज़ब न हो जाता. मैं भी बेवकूफ़ हूं. बैठने वाली कौन है, पीछे मुड़ कर देख लेता तो गर्दन में खिंचाव न आ जाता. आइए.”
दोनों प्लेटफार्म नंबर एक पर जब पहुंचे, ट्रेन के प्लेटफार्म नंबर दो पर आने की उद्घोषणा हो रही थी. सुग्रीव भागा फिर थम गया. दीदी का स्वभाव गुप्तचरी करने वाला है. पूछेंगी सुनीति क्यों नहीं आई? कह देगा सुनीति को ज्वर है. परंतु सबा का क्या करे? सबा ने नज़ाकत समझी, “मैं वेटिंग रूम में बैठती हूं. आप दीदी से मिल आएं.”
“ठीक. चिंता न करें, मैं अभी आया.”
दीदी से मिलकर लौटा सुग्रीव थोड़ा बदला हुआ था. उसने वेटिंग रूम में सिकुड़ कर बैठी, ग्लानि में डूबी सबा को गौर से देखा. काफ़ी सुंदर है. अशर सुंदर पत्नी क्या पा गया है ख़ुद को अकबर महान समझता है. जानता है मैं रेलवे स्टेशन गया हूं. आ सकता था, पर उसकी बुद्धि ठीक मौ़के पर निलंबित हो जाती है. मेरी बिल्ली, बड़ी चिबिल्ली की तरह घर-घर घुसकर, सूंघ कर सबा को ढूंढ़ रहा होगा. ठीक है इसे आज परेशान होने दो. सुग्रीव के भीतर पुरुष वृत्ति सुरसुराने लगी. सबा जैसी हसीना बाइक में पीछे बैठी थी, सोचकर हृदय प्रदेश में मधुर घंटियां बजने लगीं. उसने वापसी में बाइक को प्रयत्नपूर्वक बार-बार सड़क के गड्ढों में डाला. सबा जब झटके से उसके पृष्ठ भाग से टकराती, सुग्रीव की आत्मा निर्मल हो जाती. भला है कि सड़कों की मरम्मत नहीं होती, वरना हसीना के स्पर्श सुख से वंचित रह जाता.
ख़राब साइलेंसर वाली बमबारी करती बाइक जब पहुंची, अधिकतर लोग मायूसी लिए लौट गए थे. जिन्हें कुछ भड़काऊ सुनने-जानने की आदत है, वे डटे थे.
एडवोकेट अपने स्थान पर लट्टू की तरह घूम गया, “मिसिंग परसन आ गए.”
सुग्रीव ने देखा उसके घर के पास कई धर्म, वर्ग, जाति के लोग समाजवाद के रूप में एकत्र हैं. उसे नेक ख़्याल आया- यदि इस तरह समाजवाद आ सकता है, तो वह सबा के साथ अनंत काल तक किसी कंदरा में अंडरग्राउंड हो जाएगा. इस बीच अशर ने क्या-क्यों सोच लिया था. उन्मत्त हो उसने सुग्रीव की बाइक का हैंडिल मसमसा डाला, “यह सब क्या है?”
सुग्रीव ने भवदीय भाव दिखाया, “बेवकूफ़ी है. सबा भाभी पीछे बैठीं, मैं सुनीति समझ कर चल दिया. जल्दी में था कि ट्रेन मिस हो जाएगी.”
अशर ने सबा को लपेटे में लिया, “अभी तक तो ताले झटकती थी, अब इंसान को नहीं पहचानती हो. दिमाग़ का इलाज कराओ.”
सबा को अशर से अधिक सुनीति की फ़िक्र थी कि वह गंगा-जमुनी भाव को ख़त्म न कर ले. वह अकस्मात सुनीति से लिपट गई, “सुनीति मुझ पर यक़ीन करो.”
सुनीति ने लिपटने में सहयोग नहीं दिया. सबा को झटका दे, सुग्रीव को सतह से सतह तक मार करने वाली मिसाइल की तीक्ष्णमता से देखते हुए अपने घर में घुस गई. सुग्रीव को जाती हुई सुनीति में भार्या नहीं चंडी दिखाई दी. उसने सूखाग्रस्त सी दिख रही सबा को विलोका. जो हुआ हो ही गया. अब सबा का तमाशा नहीं बनना चाहिए बोला, “आप घर जाएं. मैं संभाल लूंगा.” धरती नहीं फट रही थी, पर मुंह छिपाने के लिए घर था. वह लगभग दौड़ते हुए घर में अंतर्ध्यान हो गई.
सुग्रीव ने समूह को निहारा, खोदा पहाड़ निकली चुहिया जैसे भाव में हैं. कुछ तिरछी मुद्रा में हैं. कुछ नासमझ दिख रहे हैं. रमा ने बड़ा खुलासा किया, “आप लोग कह रहे थे सुग्रीव भैया जी सबा को भगा ले गए हैं. ये तो आ गए.”
सुग्रीव चकित हुआ. मामला गफ़लत, ग़लती, गैरज़िम्मेेदारी का नहीं, चरित्रहीनता का बना दिया गया है. उसने फरियाद की, “छोटी सी बात है. असावधानी में हो गया.”
कोई पड़ोस में खड़े व्यक्ति के कान में फुसफुसाया, “असावधानी का मौक़ा हमको मिले. थोड़ी हवाखोरी कर डालें.”
केस न बनने से वकील सुस्त हो गया, फिर भी नीति वचन कहे, “सुग्रीव भैया ठीक कह रहे हैं. किसी का अर्द्धांग किसी की अर्द्धांगिनी को असावधानीवश बाइक में बैठा ले जाए, लेकिन सकुशल लौटा लाए ऐसी स्थिति में ताजीराते हिंद में कौन सी धारा लग सकती है मुझे मालूम नहीं है. इसलिए बात को तूल न दिया जाए, जो लड़के रिपोर्ट लिखाने थाने चले गए हैं, उनके मोबाइल पर कॉल कर उन्हें वापस बुलाओ. रिपोर्ट लिख ली गई तो स्थिति बिगड़ सकती है. यह पुरुष और स्त्री का नहीं हिंदू और मुस्लिम का मामला है. बात विपरीत धर्मों की हो, तो पुलिस विभाग में बला की फुर्ती समा जाती है. मामला थाने से अख़बार, न्यूज़ चैनल जहां तक पहुंचता है, उसका आकार-प्रकार बढ़ता जाता है. न्यूज़ चैनल, न्यूज़ को आइटम न्यूज़ बना देने में व़क्त नहीं लगाते. तब वे हिंदू और मुस्लिम भी जिन्होंने सुग्रीव भाई और सबा बहन जी की शक्ल तक नहीं देखी है, छीछालेदर करने के लिए कूद पड़ेंगे. यदि ऐसा होता है, मामला हिंदू और मुस्लिम राइट का बन जाएगा.”
लोग अब तक कौतुक पा रहे थे. एडवोकेट की बात सुन सकपका गए. भास्कर बोला, “लड़कों को कॉल करो. रिपोर्ट न लिखाएं लौट आएं. दो रेलवे स्टेशन भी तो गए हैं. उन्हें भी कॉल करो.”
थाने की ओर गए युवा जब थाने से मात्र दो गज की दूरी पर थे, उनके मोबाइल पर कॉल आया. वे प्रसन्न हो गए कि उत्साह में थाने चल तो दिए थे, पर पुलिस हज़ार सवाल करेगी. चलो पिंड छूटा. वे लौट चले. रेलवे स्टेशन की ओर गए युवाओं को कॉल पहुंचा. वे छानबीन में माथापच्ची न कर कैंटीन में आहार ग्रहण कर रहे थे. उन्होंने मिथ्याचार का सहारा लिया, “गुमशुदा घर पहुंच गए और हम स्टेशन में फटफटा रहे हैं.”
सुग्रीव को एडवोकेट तारणहार लगा. समझदारी से बात को सुलझाए दे रहा है. उसने एडवोकेट को आभार से देखा, फिर अशर से कहा, “अशर, ग़लती हो गई. माफ़ करो.” अशर तन कर बोला, “ग़लती हो गई? क़ातिल कहे मुझसे ग़लती से क़त्ल हो गया है तो कचहरी उसे माफ़ कर देगी?”
एडवोकेट ने अशर को धारा समझाई, “माफ़ नहीं करेगी, लेकिन सौद्देश्य की गई हत्या और धोखे से हो गई हत्या के लिए ताजीराते हिंद में पृथक धाराओं की व्यवस्था है. जो हुआ सो हो गया, पर ऐसा भी नहीं हो गया है कि अशर भाई आप सुग्रीव भाई को माफ़ न करें. आप सभी लोगों का व़क्त जाया हुआ. घर जाएं. इतवार का आनंद लें.”
पुलिस, अदालत, तलाक़, मारकाट, हिंदू-मुस्लिम दंगे जैसी स्थिति बनते-बनते रह गई. फिर भी लोग कयास लगा रहे थे ये दोनों परिवार-धर्म से ऊपर उठ वसुधैव कुटुंबकम का बड़ा दम भर रहे थे. अब एक-दूसरे को प्राण पिपासु की तरह देखेंगे. हेरा फेरी दोनों के बीच दरार नहीं खाई बनकर उभरेगी. उपसंहार में यही कहा जा सकता है दोनों परिवारों में गरजकर छींटे पड़े, पर जल्दी ही मौसम साफ़ हो गया.
सबा ने अशर को समझा लिया कि सुग्रीव भाई उसे देख कर घबरा गए थे, “बात को ख़त्म करो.”
सुग्रीव ने सुनीति को समझा लिया, “सबा इतनी शर्मिंदा थी कि वेटिंग रूम में बैठी रही. दीदी से मिलने नहीं गई. बात को ख़त्म करो. देख ही रही हो लोग मौ़के का मज़ा ले रहे हैं.” दोनों परिवारों की मित्रता कायम है. यह ज़रूर है अब सबा और सुनीति एक जैसी साड़ी नहीं पहनती हैं.

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