“मुझे पहले ही समझ जाना चाहिए था जब सोसायटी के सोशल मीडिया ग्रुप पर भी किसी ने पेड़ लगाने की योजना पर कोई रिस्पॉन्स नहीं दिया गया था. ऐसे ग्रुप का फ़ायदा क्या जहां सिर्फ़ पंचायत में समय ख़राब किया जाता हो.” मैं ग़ुस्से में सेक्रेटरी को सुनाकर आ गई.
हम तपती दोपहर में शॉपिंग से लौटे थे. उफ़! फिर पेड़ के नीचे पड़ोसन ने कार खड़ी कर दी.
“मुझे इतना ग़ुस्सा आ रहा है कि…” मेरी बात बेटी ने हंसकर काट दी, “कि अगर तुम सुपर-वुमन होतीं, तो उसकी कार उठाकर फेंक देतीं, यही न?” उसके हंसने से मेरा ग़ुस्सा और बढ़ गया.
“तुम चाबी लेकर घर चलो. मैं कार पार्क करके सोसायटी ऑफिस में मिलकर आती हूं."
सोसायटी ऑफिस में मुझे जैसा कि पता ही था, दो टूक-सा जवाब मिला, “सोसायटी पार्किंग में फर्स्ट कम फर्स्ट सर्व का नियम है. किसी प्लेस पर पहले कार खड़ी करनेवाले से हम ये कहकर कार हटवा नहीं सकते कि किसी और को खड़ी करनी है.” पर मैं भी अबकी पूरी तैयारी के साथ गई थी.
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“अबकी आपको पूरा वाकया सुनना ही पड़ेगा. जब बिल्डर हमें फ्लैट्स हैंडओवर कर रहा था, तब सिर्फ़ मैंने मीटिंग में मुद्दा उठाया था कि उसने तय शर्तों के मुताबिक़ छाया देनेवाले पेड़ नहीं लगाए हैं. तब तो किसी ने मेरा साथ नहीं दिया. अगर दस लोग भी साथ खड़े हो जाते, तो बिल्डर को पेड़ लगवाने पड़ते. खैर, जो हुआ सो हुआ. मैं हर मॉनसून में अपने पैसों से पेड़ ख़रीदकर लाती हूं और अपनी मेहनत से लगाती हूं. और तो और अपने पैसों से ट्री-गार्ड भी लगाती हूं. ग्राउंड फ्लोर पर पेड़ के नज़दीक रहनेवालों से इतना नहीं होता कि पेड़ की सुरक्षा करें या पानी ही डाल दें. मैं ही बोतल में भर-भरकर पानी डालती हूं…” मेरी आगे की बात सेक्रेटरी मैडम ने सुननी भी ज़रूरी नहीं समझी.
“सॉरी मैडम, आप पेड़ के लिए कुछ भी करें अगर वो सार्वजनिक ज़मीन पर लगा है, तो वो सार्वजनिक सम्पत्ति ही होगी."
"पर आप मेरी पूरी बात तो सुने. मैं तो आपसे सिर्फ़ इतनी उम्मीद करती हूं कि आप मेरी पेड़ लगाने की योजनाबद्ध मेहनत में साथ दें. इसे सोसायटी का…”
“सॉरी मैम, हम रेज़ीडेंट्स को उपदेश नहीं दे सकते.”
“मुझे पहले ही समझ जाना चाहिए था जब सोसायटी के सोशल मीडिया ग्रुप पर भी किसी ने पेड़ लगाने की योजना पर कोई रिस्पॉन्स नहीं दिया गया था. ऐसे ग्रुप का फ़ायदा क्या जहां सिर्फ़ पंचायत में समय ख़राब किया जाता हो.” मैं ग़ुस्से में सेक्रेटरी को सुनाकर आ गई.
मैं भन्नाया सिर लेकर घर आई, तो बेटी किसी से बात कर रही थी. कुछ ही देर में बच्चों से मेरा घर भर गया.
“आंटी, हमें स्कूल प्रोजेक्ट के तहत पेड़ लगाने होते हैं. सोसायटी ग्रुप पर हम आपके मैसेज और योजनाएं पढ़ते रहते हैं. आप हमें अपनी योजनाओं के कार्यकर्ता बना लीजिए. देखिएगा एक दिन किसी को कार खड़ी करने के लिए पेड़ की छाया की कमी नहीं होगी. यही तो आप चाहती हैं न?”
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“पेड़ ख़रीदने के पैसे भी ख़र्च नहीं करने पड़ेंगे. हमने आपके निर्देशित तरीक़ों से इतने पेड़ बीज से उगाए हैं.” कहते हुए बच्चों ने कुछ छोटे-छोटे पुराने डब्बों में उगी नई कोंपलें आगे कर दीं. मैं उन्हें अभिभूत होकर देखे जा रही थी. वाह, मेरे छोटे-छोटे प्रयासों ने नई जनरेशन के मन में पर्यावरण को लेकर जागृति भर दी! ये तो छाया के नीचे कार खड़ी करने की जगह मिल जाने से भी अच्छी बात हुई.’ है न?
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