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कहानी- कृष्ण-सुभद्रा (Short Story- Krishna-Subhdra)

''तुम्हें पता है आज राखी का दिन है. आज तुम छोटू को राखी बांधकर उसकी बहन बन जाओ और वह तुम्हारा भाई बन जाएगा. जो बहन की रक्षा करते हैं, वही तो भाई होते हैं. छोटू तुम्हारी रक्षा करता है, तुम्हारा ध्यान रखता है, इसलिए तुम उसको अपना भाई बना सकती हो.''

हाइवे के किनारे बने ढाबों पर आपको अक्सर कितने ही छोटू मिल जाएंगें. उसी तरह आपको सड़क किनारे यहां-वहां भटकती फटेहाल, भूखे पेट और बेबस आंखों वाली मुन्नियां भी मिल जाएंगीं. इन्हीं छोटूओं और मुन्नियां में से एक छोटू और मुन्नी है, जो इस कहानी के मुख्य किरदर हैं. आठ साल का छोटू अपने बारे में बस इतना जानता है कि वह छोटू है और उसका काम ढाबे पर आने-जाने वालों के जूठे बर्तन उठाना-धोना और झाड़ू-पोंछा वग़ैरह करना है. मलिक इसके बदले में जो भी दे दे वह खाकर-पीकर वहीं कहीं कोने में गुजर-बसर करते हुए सो जाता है. 

मुन्नी पांच साल की है. किसी को नहीं पता कि वह कौन है? जानने कि बात तो यह है कि उसे ख़ुद ही नहीं पता कि वह कौन है? और कहां से आई है? वह न ज़्यादा बोलती है, ना ही रोती, है ना हंसती है, ना ही मुस्कुराती. ऐसा लगता है जैसे भाव शून्य होकर वह बस पेट भरने को जीती जाती है.

वह जानती है तो केवल पेट की भूख को सिवाय इसके वह कुछ नहीं जानती. छोटू उसे पिछले तीन साल से ऐसे ही यहां-वहां भटकता हुआ देख रहा है. वह सुबह-शाम जो भी खाता उसमें से थोड़ा बचाकर मुन्नी को दे देता.

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एक रोज़ छोटू जब मुन्नी को एक रोटी में लिपेटकर उबले आलू के दो टुकड़े दे रहा था, तभी उसके मालिक ने उसे देख लिया. इस बात पर वह उसे गाली देते हुए पीटने लगा.

''ख़ुद तो हमारी दी हुई रोटियों पर पलता है और दूसरों को भीख बांटता है. आज से तुझे कम खाना दूंगा फिर देखता हूं कि तू कैसे अपना खाना यहां-वहां बांटता है. बहुत बड़ा दानी बना घूमता है साला दो फूटिया!''

दूसरे दिन मालिक के ग़ुस्से के कारण उसे एक निवाला भी नसीब ना हुआ. उस दिन उसे अपनी भूख से ज़्यादा मुन्नी की भूख की फ़िक्र सता रही थी. ढाबे के बाहर मुन्नी दो-चार निवालों की आस में मंडरा रही थी. सुबह से शाम होने को थी, पर अब तक दोनों भूखे थे. तभी छोटू को ढाबे पर खाना खाते दो भले ग्राहक देखकर एक युक्ति सूझी और वह उनसे धीमे स्वर में बोला, ''मैडम जी, आपकी थाली में अगर कुछ छूट जाए तो आप वहां ढाबे के बाहर जो लड़की खड़ी है उसे दे देना, वह बेचारी सुबह की भूखी है और दया करके मेरे मलिक को मत बताना कि मैंने आप लोगों से कुछ कहा है, वरना वह मेरी खाल खींच लेगा.''

छोटू की बात सुनते ही वे पति-पत्नी अपना बचा हुआ खाना ही नहीं, बल्कि थोड़ा सा और ताज़ा खाना ख़रीदकर उस बच्ची को दे आए. दिनभर की भूखी मुन्नी ने ऐसे खाना खाया कि दोनों दम्पति के आंखों में आंसू आ गए. 

उस रोज़ छोटू भूखा ही सोया. आधी रात मालिक ने तरस खाकर उसे आम के अचार के साथ एक रोटी दे दी. दूसरे दिन से छोटू को रोज़ की तरह खाना मिलने लगा. मुन्नी और छोटू का यह बेनाम रिश्ता चल ही रहा था कि एक दिन की बात है मुन्नी के पीछे कुत्ते पड़ गए.

मुन्नी दौड़ती हुई छोटू के पास आई तो छोटू ने उन कुत्तों को मार भगाया. ढाबे के मालिक को उस दिन मुन्नी पर दया आई और वह बोला, ''यहां-वहां दिनभर डोलती फिरती है, ढाबे के काम में छोटू का थोड़ा हाथ ही बंटा लिया कर.''

ढाबे के मालिक की बात मुन्नी को ज़्यादा समझ नहीं आई, पर छोटू अच्छे से समझकर बोला, ''बिल्कुल साब! जे हमाये साथ बर्तन धुला लेगी, टेबल पर कपड़ा मार देगी, मैं सीखा दूंगा इसे छोटे-मोटे काम.''

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''क्यों मुन्नी रहेगी मेरे साथ ढाबे में. फिर तुझे भी मेरी तरह खाना मिलेगा.'' मुन्नी की तरफ़ देखकर छोटू बोला तो मुन्नी ने भी बिना ज़्यादा सोचे हां में अपनी आंखें चमका दीं.

उस दिन से दोनों मिलकर ढाबे में रहने लगे. छोटू मुन्नी को कोई भी मुश्किल काम नहीं करने देता.

एक दिन कि बात है, रक्षाबंधन का दिन था. ढाबे पर दो भाई-बहन खाना खाने को रुके. तो उनके स्वागत के लिए छोटू दौड़कर आया और बोला, "आओ साहब! आओ मैडम! हमारे ढाबे के स्वादिष्ट भोजन का आनन्द लो. बताओ क्या लेंगे आप लोग! कढ़ाई पनीर, मिक्स वेज़, फ्राई दाल, तंदूरी रोटी, पुलाव, खीर..." छोटू ने ढेर सारे खाने के आइटम एक साथ एक सांस में बोले तो वह लड़की बोली, ''अरे! आज राखी है और हम दोनों भाई-बहन है, इसलिए मुझे अपने भाई को राखी बांधनी है. खाना हम बाद में खाएंगे पहले मेरे लिए एक साफ़ सी थाली ले आओ और तुम्हारे यहां जो भी अच्छी मिठाई उपलब्ध हो वह भी ले आओ.''

छोटू उनके कहे अनुसार थाली और मिठाई ले आया. दूर खड़ी मुन्नी यह सब देख रही थी और छोटू उन्हें देखती हुई मुन्नी को देख रहा था.

यहां बहन ने राखी की थाली सजाकर भाई को राखी बांधी और फिर दोनों ने खाना ऑर्डर किया. मुन्नी अपनी मासूम नज़रों से यह सब देख रही थी. तभी उस लड़की की नज़र मुन्नी पर गई तो उसने उसे पास बुलाकर पूछा, ''कौन हो तुम? और यहां क्या करती हो?''

''मैं मुन्नी हूं, बस यहां खड़ी-खड़ी लोगों की शक्ल देखती रहती हूं. छोटू जो खाने को देता है खा लेती हूं, जो काम बताता है कर देती हूं. मेरा कोई नहीं है सिवाय छोटू के.'' उसकी बातें सुनकर उन भाई-बहन की आंखें डबडबा उठीं.

वे बोले, ''छोटू  तुम्हारा भाई है क्या?"

''भाई ये क्या होता है? हम दोनों का कोई नहीं हम दोनों अनाथ हैं. बस मैं उसकी मुन्नी हूं और वो मेरा छोटू है.''

भोली सी मुन्नी की इस बात पर वह लड़की बोली ''तुम्हे पता है आज राखी का दिन है आज तुम छोटू को राखी बांधकर उसकी बहन बन जाओ और वह तुम्हारा भाई बन जाएगा. जो बहन की रक्षा करते हैं, वही तो भाई होते हैं. छोटू तुम्हारी रक्षा करता है, तुम्हारा ध्यान रखता है, इसलिए तुम उसको अपना भाई बना सकती हो.''

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यहां छोटू भी उनकी बातें सुन रहा था. तभी उस लड़की ने मुन्नी को राखी दी, जिसे मुन्नी ने छोटू की कलाई में बांध दिया. यह देखकर वह लड़की छोटू से बोली, "अब तुम मुन्नी को राखी के बदले कोई भी उपहार इस वादे के साथ दो कि तुम इसकी हमेशा रक्षा करोगे.''

बेबस सा छोटू बोला, ''दीदी! वादा तो मैं दे दूंगा, पर उपहार कहां से लाऊंगा?''

इस बात पर वह लड़की हंसती हुई बोली, ''तुम मुन्नी को एक प्यारा सा नाम उपहार में दो और फिर मुन्नी तुम्हें भी एक नाम उपहार में देगी. मुन्नी और छोटू ये भी भला कोई नाम हैं!''

तभी छोटू ने उत्सुकता से पूछा, ''आप दोनों का क्या नाम है भैया और दीदी!''

''मेरा नाम सुभद्रा है और मेरे भाई का नाम कृष्ण है.''

फिर क्या! छोटू ने मुन्नी को आज एक नाम उपहार में दे दिया, ''सुभद्रा!"

और बदले में मुन्नी ने भी अपने भाई को, ''कृष्ण'' नाम से पुकारा. 

उन दोनों को ख़ुश देखकर ढाबे में आए दोनों भाई-बहन सुकून से भर उठे. मुन्नी और छोटू को कृष्ण-सुभद्रा के रिश्ते में बांधकर कुछ ही देर में वे चले गए. यहां छोटू देर तक अपनी कलाई की राखी देखकर मुस्कुराता रहा.

writer poorti vaibhav khare
पूर्ति खरे

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Photo Courtesy: Freepik

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