पुलिस ने उन्हें जाने देने की विनती नहीं सुनी. उनके लिए ज़्यादा ज़रुरी था मुख्यमंत्री की कारों का कारवां गुज़रते समय व्यवस्था बनाए रखना. मुझे तो वह गणतंत्र का अपमान लगा था, पर आश्चर्य है कि जब मैंने यह घटना समाचार पत्रों में भेजी, तो कोई मेरी बात से सहमत नहीं हुआ अर्थात घटना छपी नहीं.
फिर वही शोर, वही बहसें, वही एक-दूसरे पर दोषारोपण, मैंने टीवी बंद कर दिया. कल चुनाव है. मुझे चैन से ठंडी सांस लेकर सोचना था, तोलना था. जाने क्यों उस घटना के बाद चुनाव वाले दिन मन बहुत तिक्त हो जाता है. याद आ जाती है वो घटना…
एक बार किसी शादी से लौटते समय हमारी कारें लगभग बीस मिनट के लिए रोक दी गईं और हमने तेईस लाल बत्ती वाली गाड़ियां सामने से गुज़रते देखीं. मगर जिस बात के कारण मैं यह क़िस्सा भूल नहीं पाई वह यह थी कि रोकी गई भीड़ में हमारी तरह ही दो और आम परिवार थे- एक किसी गर्भवती स्त्री का, जो प्रसव पीड़ा से तड़प रही थी और एक वो जो किसी हाथ की हड्डी टूटे बच्चे को डॉक्टर के पास ले जा रहा था. पर पुलिस ने उन्हें जाने देने की विनती नहीं सुनी.
उनके लिए ज़्यादा ज़रुरी था मुख्यमंत्री की कारों का कारवां गुज़रते समय व्यवस्था बनाए रखना. मुझे तो वह गणतंत्र का अपमान लगा था, पर आश्चर्य है कि जब मैंने यह घटना समाचार पत्रों में भेजी, तो कोई मेरी बात से सहमत नहीं हुआ अर्थात घटना छपी नहीं. उससे बड़ी विडंबना ये कि आज मेरे आलावा किसी को यह याद तक नहीं रहा.
दूसरे दिन मैं उठी, नित्य कार्य किए. ठंडी सांस लेकर आंखें मूंदकर ख़बरों को ‘रिकॉल’ किया, नापा-तौला और अपनी बाकी ज़िम्मेदारियों की तरह वोट देने निकल गई. क्योंकि मेरा विश्वास है कि कुछ भी हो, लोकतंत्र राजशाही से तो बेहतर ही है और इसे और बेहतर बनाना हमारे हाथ में कुछ-कुछ है और कुछ और होता जाएगा… बस हम अपने अच्छे-बुरे अनुभव बांटते रहें… सोचते रहें….
- भावना प्रकाश
अधिक कहानियां/शॉर्ट स्टोरीज़ के लिए यहां क्लिक करें – SHORT STORIES
Photo Courtesy: Freepik
डाउनलोड करें हमारा मोबाइल एप्लीकेशन https://merisaheli1.page.link/pb5Z और रु. 999 में हमारे सब्सक्रिप्शन प्लान का लाभ उठाएं व पाएं रु. 2600 का फ्री गिफ्ट