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लघुकथा- मां का प्रेम (Short Story- Maa Ka Prem)

पक्षी को देख कर साफ़ लग रहा था कि उसने उड़कर जान बचाने की कोशिश नही की थी. यह देखकर सभी को बहुत आश्चर्य हुआ.
एक लड़के ने जब उस पक्षी को हटाया, तो उसके नीचे से तीन चूजे दिखाई दिए, जो जीवित थे. बच्चों को बचाने के लिए उसने उन्हें अपने पंखों के नीचे छुपा लिया था.

गांव के सरकारी स्कूल में संस्कृत की क्लास चल रही थी. गुरुजी दिवाली की छुट्टियों का काम बता रहे थे.
तभी किसी शरारती विद्यार्थी के पटाखे से स्कूल के स्टोर रूम में पड़ी दरी और कपड़ो में आग लग गई. देखते ही देखते आग ने भीषण रूप ले लिया. वहां रखा सारा फर्नीचर भी जल कर राख गया.
सारे छात्र पास के घरों से, हैंडपंपों से, जो भी बर्तन हाथ में आया, उसी में पानी भर-भरकर आग बुझाने लगे.
आग बुझने के काफ़ी देर बाद जब स्टोर रूम के अंदर कुछ लोग गए, तो उनकी नज़र स्टोर रूम की छज्जी पर गई. वहां एक पक्षी जल कर कोयला हो गया था.
पक्षी को देख कर साफ़ लग रहा था कि उसने उड़कर जान बचाने की कोशिश नही की थी. यह देखकर सभी को बहुत आश्चर्य हुआ.
एक लड़के ने जब उस पक्षी को हटाया, तो उसके नीचे से तीन चूजे दिखाई दिए, जो जीवित थे. बच्चों को बचाने के लिए उसने उन्हें अपने पंखों के नीचे छुपा लिया था.
एक छात्र ने संस्कृतवाले गुरुजी से पूछा, "गुरुजी, इस पक्षी को अपने बच्चों से कितना मोह था कि इसने उन्हें बचाने के लिए अपनी जान तक दे दी?"


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गुरुजी ने कहा, "बेटा, यह मोह नहीं, मां का प्रेम है. मोह करनेवाला इस विकट परिस्थिति में अपनी जान बचा कर भाग जाता. बेटा, प्रेम और मोह में ज़मीन आसामान का फ़र्क है.
मोह में स्वार्थ निहित होता है और प्रेम में त्याग होता है. भगवान ने मां को प्रेम की मूर्ति बनाया है और इस दुनिया में मां के प्रेम से बढ़कर कुछ और नहीं है. मां के उपकारों से हम कभी भी उपकृत नहीं हो सकते."

वीरेंद्र बहादुर सिंह

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