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लघुकथा- मसाला चाय (Short Story- Masala Chai)

"प्रीति, तुम हाथ-मुंह धोकर फ्रेश हो जाओ. तब तक मैं तुम्हारे लिए चाय और स्नैक्स लेकर आती हूं."
बुआ सास यह सब कुछ देखकर बड़ी अचरज में थीं. दीप्ति पर उनकी मसालेदार बातों का कोई भी प्रभाव नहीं पड़ा था.

दीप्ति की बुआ सास आज सुबह ही उसकी सास यानी अपनी बीमार भाभी को देखने आई थीं. दीप्ति घर के कामों के साथ ही उनके स्वागत-सत्कार में भी लगी हुई थी. उसकी सासू मां ने बुआजी के बारे में कई बातें उसे पहले ही बता दी थीं, जैसे- बुआजी को मसाला चाय बहुत पसंद है, दिन में सात-आठ कप पीती हैं. दीप्ति उनकी सारी बातों का ख़्याल रख रही थी.
दीप्ति को देर से काम में लगा देखकर बुआ सास रसोई में दीप्ति के बगल में खड़ी होकर चाय की चुस्की लेती हुई बोलीं, "अरे! दीप्ति बेटा, तुम कितना काम करती हो? सच कहूं, तो मेरी भाभी (दीप्ति की सास) के तो भाग्य ही खुल गए तुम्हें पाकर."

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दीप्ति माथे से पसीने की बूंदें पोछती हुई मुस्कुराकर केवल, "जी बुआजी." ही बोली.
बुआजी, "जब से आई हूं, तुझे काम करते ही देख रहीं हूं, तेरी देवरानी तो ऑफिस चली गई सुबह से और तुम लगी हो यहां पूरे घर को संभालने में. सुना है ख़ूब स्मार्ट है तेरी देवरानी? कब आती है? सुबह की गई है न शायद?"
दीप्ति मुस्कुराती हुई बोली, "जी बुआजी! आनेवाली होगी. वो चार बजे आती है."
तभी दरवाज़े की घंटी बजी और मुस्कुराती हुई प्रीति अंदर आई.
दीप्ति, "प्रीति, तुम हाथ-मुंह धोकर फ्रेश हो जाओ. तब तक मैं तुम्हारे लिए चाय और स्नैक्स लेकर आती हूं."
बुआ सास यह सब कुछ देखकर बड़ी अचरज में थीं. दीप्ति पर उनकी मसालेदार बातों का कोई भी प्रभाव नहीं पड़ा था.
प्रीति चाय की चुस्की लेती दीप्ति से बोली, "दीदी, अब आप जाइए अपने रूम में और अपना काम कीजिए. रात का खाना वगैरह अब सब मैं देख लूंगी."
दीप्ति, "ओके प्रीति, पर कल राहुल का इंग्लिश का…"
दीप्ति को बीच में ही टोकती प्रीति बोली, "अरे दीदी डोंट वरी, मैं उसकी स्कूल डायरी में सब देख लेती हूं, मुझे पता है कल राहुल का इंग्लिश का एग्ज़ाम है, मैं उसे पढ़ा दूंगी. अब आप बेफ़िक्र होकर जाइए."
दीप्ति अपने रूम में चली गई.
यहां बुआजी कुछ समझ ही नहीं पा रही थी कि ये चल क्या रहा है दोनों बहुओं के बीच.
आख़िरकार बुआजी ने प्रीति से पूछ ही लिया, "प्रीति, दीप्ति कौन-सा काम करने गई अपने रूम में?"
प्रीति, " बुआजी, दीदी ऑनलाइन डांस क्लास लेती हैं. मांजी की तबियत ठीक नहीं रहती, इसलिए हर समय एक न एक को उनके पास होना ही चाहिए. ऐसे में हम दोनों ने यह उपाय निकला है कि सुबह नौ से शाम चार बजे तक दीदी मांजी और घर को संभालेगी और शाम चार के बाद मैं! ऐसे में हमारा काम भी नहीं रुकेगा और हम दोनों की घर के प्रति जो ज़िम्मेदारियां हैं, वो भी हम अच्छे से निभा लेंगे.

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बुआजी अपनी भाभी और उनकी दोनों बहुओं की समझदारी की मुरीद हो गईं और अपनी मसालेदार बातों का स्वाद फीका पड़ते देख मसाला चाय के मजे लेने लगीं.

- पूर्ति वैभव खरे

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