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कहानी- मेट्रो वाला वह लड़का (Short Story- Metro Wala Woh Ladka)

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उसके इस मुस्कुराहट भरे जवाब से उस लड़के के चेहरे के भाव ऐसे बदले मानो उसने कुछ अलग ही अनुमान लगा लिया हो. आंखों में आश्चर्य और गुलाबी होंठों पर खिली हुई मुस्कुराहट.
अनु के मन में प्रश्न लहरा उठा था, 'क्या इसने मुझे कुंवारी समझा?
पति शब्द सुनकर इसके चेहरे के भाव ऐसे बदले क्यों?

किसी काम के सिलसिले में चार दिनों के लिए अनु अकेले ही दिल्ली आई थी. नया शहर नए रास्ते ऊपर से महानगरों की दूरियां. लेकिन समस्या ही तो समाधान की जड़ होती है. दिल्ली की मेट्रो सुविधा के क्या कहने? इतने बड़े महानगर में लंबी दूरियों पर आवागमन का बेहतरीन साधन, शोर न शराबा, कम ख़र्च में सबसे बेहतर एसी वाली ठंडी-ठंडी, कूल-कूल सुविधा. पर हां, उसके लिए शहर के रूट मैप की जानकारी होना भी तो अति आवश्यक है. नए लोगों को थोड़ा समय लगता है, लेकिन आज नहीं तो कल आवश्यकतानुसार सीख ही जाते हैं. लेकिन अनु तो सिर्फ़ चार दिनों के लिए ही आई थी. इसीलिए उसने एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाने के लिए कैब का सहारा लिया.
मोबाइल फोन के गूगल मैप में गंतव्य स्थान का पता डाल दो, तो रास्तों की जानकारी तो हो ही जाती है और कैब ड्राइवर द्वारा ग़लत रास्ते पर ले जाने का ख़तरा भी नहीं.
काम अपनी जगह किन्तु नए-पुराने दोस्तों से मुलाक़ात का आनंद लिए बगैर वह कैसे लौटती. तीन दिन ऐसे फुर्र करते उड़े, न दिल को ख़बर न ही दिमाग़ को पता. रात को देर तक उल्लू की तरह जागना और पूरे दिन काम के सिलसिले और मेल-मिलाप में यहां से वहां दौड़-भाग. आज चौथा दिन था और होटल में उसकी एक पुरानी सहेली रिया उसके साथ थी. सुबह नाश्ता करके दोनों ही अपनी कॉमन सहेली से मिलने उनके घर गए. नई-पुरानी बातों, क़िस्सों और ठहाकों में समय कब उड़न छू होता गया उन्हें ख़्याल ही न रहा. बदलते परिवेश की देन यह कि आजकल लोग समय देखने हेतु मोबाइल का इस्तेमाल करते हैं, जो अनु ने पर्स में रखा हुआ था. कहने को तो उसने अपने बाएं हाथ में महंगी घड़ी भी पहनी हुई थी, लेकिन मोबाइल के चलते अब घड़ी तो मात्र दिखावे और फैशन के लिए ही रह गई है. अक्सर उसकी घड़ी के सेल तो ख़त्म ही रहते हैं और वह टिक-टिक को भूल शांत-सुप्त अवस्था में उसकी कलाई की शोभा बढाती है. वह स्वयं ही अक्सर चुटकी लिया करती, "अब तो मैं घड़ी को बस ब्रेसलेट की तरह पहना करती हूं."

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ख़ैर, घड़ी बंद थी, लेकिन समय अपनी रफ़्तार से आगे बढ़ा जा रहा था और अचानक अनु का ध्यान सहेली के ड्रॉइंगरूम में टेबल पर रखी आर्टिस्टिक घड़ी पर पड़ा.
ओह! साढ़े बारह बज गए… मुझे तो आज शाम फ्लाइट पकड़नी है, चार पैंतालीस को बोर्डिंग शुरू हो जाएगी. यहां से होटल और फिर वहां से एयरपोर्ट आने-जाने में भी तो समय लगेगा… मन ही मन सोचते हुए उसने सहेली से विदा लेते हुए चल रहे हंसी-ठट्ठे को विराम दिया.


“कुछ सेल्फीज़ ले लेते हैं.” वह अपनी मित्र के नेह भरे आग्रह को टाल न पाई. उनके घर से निकलते-निकलते पंद्रह मिनट और उसकी तंग मुट्ठी से फिसल गए. सूरज के बढ़ते ताप संग धड़कने भी बढ़ने लगी थीं, सो तेज-तेज कदम बढ़ा ऑटोरिक्शा पकड़ा और दोनों सहेलियां रिक्शा में बैठ मेट्रो स्टेशन की तरफ़ बढ़ रही थीं.
“मन में धुकधुकी मची है कहीं फ्लाइट छूट न जाए. कैब से जाऊंगी और यदि रास्ते में ट्रैफिक जाम भी हुआ, तो निश्चित रूप से आज तो मैं लेट हो जाऊंगी. रिया प्लीज़, तुम मेरी मदद करोगी?” अनु ने अपनी सहेली से विनम्र लहजे में मदद की गुहार लगाई. तुम मुझे एयरपोर्ट के लिए जानेवाली मेट्रो में बैठा दो, ताकि मैं समय पर एयरपोर्ट पहुंच जाऊं."
“ज़रूर, इसमें प्लीज़ की क्या बात है? मैं तो आज फ्री ही हूं, तुम्हारे साथ समय बिताना मुझे भी बहुत अच्छा लग रहा है. इसी बहाने कुछ और समय के लिए एक-दूसरे का साथ मिलेगा. ऐसे मौक़े कोई बार-बार थोड़े ही न आते हैं. न जाने तुम फिर कब दिल्ली आओ.” रिया ने अपनी पुरानी सहेली की परेशानी को समझ लिया था.
“कितनी प्यारी हो तुम रिया.” अनु ने उसके गालों को सहला दिया .
दोनों होटल पहुंचीं और चेक आउट कर फिर से रिक्शा से नज़दीकी मेट्रो स्टेशन की तरफ़ बढ़ गयी थी.
टिकट विंडो से रिया ने टिकट लिए और अनु के साथ मेट्रो में सवार हो गई.
"अब हमें अगले स्टेशन पर उतरकर मेट्रो बदलनी होगी. फिर वहां से मैं तुम्हें एयरपोर्ट के टर्मिनल टी थ्री पर पहुंचानेवाली ब्लू लाइन में बैठा दूंगी और उसके बाद तुम आगे स्वयं अकेले चली जाना.
“यह तुमने बहुत अच्छा किया मुझे पूरा रास्ता समझा दिया रिया. अब मुझे कोई फ़िक्र नहीं.” धड़कनें संयत हो चुकी थीं और अनु के चेहरे पर शांत भाव थे.
स्टेशन पर उतर कदमों को गति देते हुए रिया ने अनु को दूसरी मेट्रो में बैठाया और अगले ही पल मेट्रो के दरवाज़े बंद हो गए. प्लेटफार्म पर खड़ी रिया और मेट्रो में अनु दोनों शीशे से आर-पार देख हाथ हिलाती हुई एक-दूसरे की नज़रों से ओझल हो गई थीं.
अब अनु मेट्रो से दिल्ली आईजीई हवाई अड्डे तक के सफ़र में अकेली थी. दोपहर का समय था, इसलिए मेट्रो में गिने-चुने लोग ही सफ़र कर रहे थे. वरना सुबह-शाम ऑफिस आवर्स में तो तिल भर की भी जगह नहीं मिलती है. अनु चुपचाप बैठी अपने सूटकेस का ख़्याल रखते हुए आनेवाले स्टेशन की अनाउंसमेंट पर कान लगाए हुए थी. कुछ सोचते हुए वह खड़ी हुई और मेट्रो के गेट के अंदर की तरफ़ बने रूट मैप को देखने लगी.
'एरोसिट' स्टेशन के नाम को पढ़कर उसके मन में प्रश्न उठा कि कहीं यह एयरपोर्ट को तो इंगित नहीं करता?
कुछ सोचते हुए वह पुनः अपनी सीट पर आ कर बैठ गई. किन्तु अब मन में ऊहापोह थी कि कहीं वह ग़लत स्टेशन पर न उतर जाए. एरोसिटी तो तीसरा स्टेशन है, जबकि रिया ने कहा था कि चौथे स्टेशन पर उतरना. चिंतित हो उसने नज़रें इधर-उधर दौड़ाईं.
गेट के दूसरी तरफ़ की सामने की सीट पर एक लड़का बैठा था, जिसने सफ़ेद शर्ट गहरे रंग की पैंट और हाथ में गहरे रंग का ब्लेजर लिया हुआ था. लड़का देखने में बेहद हैंडसम था. लंबा कद, गोरा रंग, तीखे नैन-नक्श, चमकते हुए गाल और उनमें गहरे गड्ढे. उसके कपड़े एवं रूप-रंग को गौर से देखकर अनु के मन में विचार आया कि यह शायद किसी एयरलाइन में फ्लाईट पर्सर होगा. इतने सुंदर लड़के या तो मॉडलिंग के क्षेत्र में होते हैं या फिर एयरलाइन में फ्लाइट पर्सर ही देखे हैं. यकायक दिमाग़ घूमा हां, मुझे इसी से पूछ लेना चाहिए कि एयरपोर्ट के टर्मिनल पर उतरने के लिए कितने स्टेशन बाकी हैं? निश्चित रूप से यह भी एयरपोर्ट ही जा रहा होगा, लेकिन फ्लाइट पर्सर और एयर होस्टेस को पिकअप और ड्रॉप के लिए एयर लाइंस गाड़ी भेजती हैं. फिर यह मेट्रो में क्यों?


कोरोना के चलते सभी एयर लाइंस की हालत भी तो खस्ता हो गई है. हो सकता है कॉस्ट कटिंग करने के लिए अब सुविधाएं कम कर दी हों एयर लाइंस ने. इसीलिए इस समय मेट्रो से सफ़र कर रहा हो, वरना दफ़्तर जानेवाले लोग, तो सुबह-शाम आते-जाते हैं. एयर लाइन की नौकरी में ही आने-जाने का समय फ्लाइट के अनुसार बदलता जो रहता है.
मन में विचारों की उठा-पटक चल रही थी, तभी वह लड़का अपनी सीट से उठा और गेट के पास आ कर खड़ा हो गया.
कहीं यह अगले स्टेशन पर उतरनेवाला तो नहीं? कहीं अगला स्टेशन ही एयरपोर्ट हो तो?
इसी से पूछना सही रहेगा… यह सोचते हुए अनु के कदम स्वतः ही उसकी तरफ़ बढ़ गए.
“एक्सक्यूज़ मी.”
वह मुस्कुराया, “हाय.”
“क्या आप बता सकते हैं कि टर्मिनल टू के लिए किस स्टेशन पर उतरना होगा?"
वह अपनी जगह से दो कदम आगे बढ़ा और उसने मेट्रो की सीट्स के ऊपर बीच में लगे एक बोर्ड पर देखा और बताया, "अगला स्टेशन एरोसिटी है और उसके बाद जो स्टेशन आएगा वहीं उतर जाइए, वह टर्मिनल तीन से जुड़ा हुआ है."
“लेकिन मेरी फ्लाइट का डिपार्चर तो टर्मिनल टू से है.”
“टर्मिनल टू भी थ्री के साथ ही लगा हुआ है.” वह मुस्कुराया.
उसके गालों के गड्ढों की गहराई उसकी मुस्कान के साथ आकर्षक हो गई थी.
अनु मेट्रो के गेट की तरफ़ बढ़ गई और वह भी वहीं आ खड़ा हुआ.
“आप कहां से हैं?”
"आय एम फ्राम चेन्नई.” अनु ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया.
मन ही मन सोचा- 'यह मुझसे हिंदी में बात कर रहा है और मैं इसे अंग्रेज़ी में जवाब दे रही हूं. चेन्नई में रहते-रहते इंग्लिश मुंह पर चढ़ गई है, जबकि दिल्ली में तो हिंदी ही आम बोलचाल की भाषा है.”
उसने अगला सवाल किया, "आप वहां कोई जॉब करती हैं?”
“ह्म्म्म, मेरे पति का बिज़नेस है, वही संभालती हूं उनके साथ.” वह फिर मुस्कुराई.
सच तो यह है कि मुस्कुराहट तो अनु के चेहरे के हाव-भाव का अभिन्न अंग थी. अपने कॉलेज के समय यह मुस्कान ही तो उसकी ख़ास पहचान थी- “वह लड़की जो हर समय खिलखिलाती रहती है…”


उसके इस मुस्कुराहट भरे जवाब से उस लड़के के चेहरे के भाव ऐसे बदले मानो उसने कुछ अलग ही अनुमान लगा लिया हो. आंखों में आश्चर्य और गुलाबी होंठों पर खिली हुई मुस्कुराहट.
अनु के मन में प्रश्न लहरा उठा था, 'क्या इसने मुझे कुंवारी समझा?
पति शब्द सुनकर इसके चेहरे के भाव ऐसे बदले क्यों?
यह लड़का मात्र पच्चीस-छब्बीस की उम्र का होगा और मैं पचास की हो रही हूं. क्या इसे मेरी उम्र समझ नहीं आई होगी? जबकि कोरोना काल में घर बैठे-बैठे पांच किलो वज़न भी बढ़ा ही लिया है.
ऐसा कई बार होता है उसके साथ कि अक्सर लोग उसे कम उम्र की समझते हैं.
लेकिन इतनी युवा भी तो नहीं लगती हूं…
पुलकित मन से अनु ने उसकी आंखों को पढने की कोशिश की.
फिर सोच में पड़ गई, 'हो सकता है मास्क में चेहरा ढके होने के कारण इसे उम्र समझ नहीं आई हो, लेकिन शरीर तो समझ में आता है… मन के भाव जो भी हों, किन्तु अनु के चेहरे और आंखों में प्रसन्नता से सजी मुस्कुराहट खिली थी, जो मास्क पहनने के बाद भी नज़र आ ही रही थी.
उस लड़के से बात करते समय फिटनेस कॉन्शियस अनु का आत्मविश्वास पहले से कई गुना बढ़ गया था.
तभी उस लड़के ने अगला प्रश्न किया, “क्या बिज़नेस है आपका वहां?”
अनु ने उसे अपने काम के बारे में थोड़ा कुछ बताया और उस लड़के ने अपने बारे में.
“मैं लीगल एडवाइज़र हूं, आप मेरा नंबर सेव कर लें. कभी कोई काम पड़े तो…”
उसने अपना नाम एवं नंबर अनु को बताया, जो अनु मोबाइल में सेव करने लगी. किन्तु मन ही मन सोच रही थी, 'शायद अब यह उससे उसका नंबर भी लेगा… दूं या न दूं? ये लड़के भी न अकेली लड़कियों को देखकर दिल फेंक आशिक बन जाते हैं. न उम्र का लिहाज़ और न ही मैरिटल स्टेटस से मतलब… बस लड़की मुस्कुराई और ये लट्टू हुए. उसे अपने कॉलेज के सहपाठी की बात याद हो आई थी, जो अक्सर कहा करता था, “लड़की हंसी और फंसी.”

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नंबर सेव कर जैसे ही अनु ने ऊपर देखा, उस लड़के की नज़रें अनु पर टिकी थीं. अनु ने भी उसे गौर से देखा. उसकी शर्ट तो सफ़ेद है, लेकिन पैंट काली और हाथ में लिया ब्लेजर नहीं काला कोट था.
“मुझे लगा कि आप किसी एयरलाइन के लिए काम करते हैं. अक्सर हर एयरलाइन में एम्प्लॉयीज़ की यूनिफॉर्म व्हाइट एंड ब्लू होती है न, इसीलिए आपसे एयरपोर्ट के बारे में पूछने लगी थी.”
वह मुस्कुराता रहा.
तभी मेट्रो में अनाउंसमेंट हुई, “नेक्स्ट स्टेशन इज़ एरोसिटी…”
"बाय." उसने हाथ हिलाया, मेट्रो के गेट खुले और वह बगैर पीछे मुड़े स्टेशन पर उतर गया.
पुनः एक अनाउंसमेंट के बाद मेट्रो के गेट बंद हो गए थे और वह सोचती रह गई, 'इसने मुझसे मेरा नंबर नहीं लिया, वेरी स्ट्रेंज?'
तो फिर इसने अपना नंबर क्यों दिया? पति शब्द सुनते ही यह आश्चर्य से क्यों हंसा?.. जाने कितने सवाल उसके मन में बरसाती बादलों की तरह भारी हो कर घुमड़ आए. तभी मेट्रो ने अगले स्टेशन के लिए अनाउंसमेंट कर दी थी.
अनु ने अपना ट्रॉली बैग सम्भाला और स्टेशन पर उतर गई. किसी से पूछा, “टी थ्री किस ओर है?”
उस शख़्स ने दायीं तरफ़ इशारा किया. वह उस ओर बढ़ गई और फिर उसके बाद पूछते-पाछते टी टू पर.
फ्लाइट बोर्ड करने के लिए सारी फॉरमैल्टीज़ पूरी कीं और समय से बोर्डिंग कर फ्लाइट में बैठ गई. लेकिन उस ख़ूबसूरत लड़के का चेहरा उसकी आंखों के सामने बार-बार आकर मुस्कुराने लगता और अनु के चेहरे पर मुस्कुराहट खिल उठती. फिर वही सवाल, ज़ेहन में अंगड़ाई लेने लगता, 'आख़िर उसने अपना नंबर मुझे क्यों दिया?'
चेहरा गंभीर मुद्रा में और दिमाग़ लगातार तबड़क-तबड़क कर रहा था. अनायास ही हम्म… गर्दन हिलाई. अब समझी शायद नया ही लीगल प्रैक्टिस करने लगा है और यह उसका अपनी मार्केटिंग करने का एक तरीक़ा है. जैसे बातचीत कर लोग अक्सर अपना विजिटिंग कार्ड हाथ में थमा दिया करते हैं.
हौले-हौले बहते शहद की तरह अनु के होंठों पर मुस्कान फैलने लगी थी- गुड लक माय न्यू फ्रेंड…
उसने हैंड बैग से किताब निकाली और बुक मार्क लगे पेज से आगे पढ़ने में मशगूल हो गई. कुछ समय ध्यान केन्द्रित रहा, किन्तु फिर भटकने लगा. आख़िर मेनोपॉज़ की उम्र में स्वयं को युवा महसूस करने के पल कैसे भुला सकती है वह.

रोचिका अरुण शर्मा

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