"... तुम्हें याद है, अपने जन्मदिन पर पहनी नीली फ्रॉक में तुम कितनी प्यारी लग रही थी? कभी-कभी हम अपनी चीज़ों की कद्र करना भूल जाते हैं और दूसरों की चीज़ देखकर दुखी हो जाते हैं. हमें ऐसा नहीं करना चाहिए..."
पिंकी को अपनी सहेली सानिया जैसी गुलाबी फ्रॉक चाहिए थी.
कल ही मां ने उसकी ज़िद पर जादू वाली पेंसिल खरीदी थी, लेकिन अब मां के पास पैसे नहीं थे.
पिंकी रोते-रोते सो गई.
सुबह भी उसका चेहरा उदास था.
स्कूल में जब टीचर ने उसे देखा तो पास बुलाकर प्यार से पूछा, "क्या हुआ पिंकी, तुम इतनी उदास क्यों हो?"
पिंकी रो पड़ी और बोली, "मां ने मुझे सानिया जैसी फ्रॉक नहीं दिलाई."
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टीचर ने पिंकी को प्यार से समझाया, "बेटा, हर घर की परिस्थितियां अलग होती हैं.
किसी के पास एक चीज़ होती है, किसी के पास दूसरी.
लेकिन भगवान ने सबको एक जैसा दिमाग़ और शरीर दिया है.
तुम्हें याद है, अपने जन्मदिन पर पहनी नीली फ्रॉक में तुम कितनी प्यारी लग रही थी?
कभी-कभी हम अपनी चीज़ों की कद्र करना भूल जाते हैं और दूसरों की चीज़ देखकर दुखी हो जाते हैं.
हमें ऐसा नहीं करना चाहिए.
जो हमारे पास है, उसी में ख़ुश रहना चाहिए."
पिंकी को बात समझ में आ गई.
उसके चेहरे पर मुस्कान लौट आई.
घर जाकर वह मां से बोली, "मां, अब मैं ज़िद नहीं करूंगी.
मुझे अपनी चीज़ों से ही ख़ुश रहना चाहिए."
मां ने पिंकी को गले से लगाया और कहा, "शाबाश, मेरी समझदार पिंकी!"
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इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि हमें हमेशा अपनी चीज़ों की कद्र करनी चाहिए.
दूसरों की चीज़ देखकर दुखी होने की बजाय
जो हमारे पास है, उसमें ख़ुश रहना ही सही समझदारी है.
- कंचन चौहान

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