"अरे नहीं… और सुंदर लग रही हो… सूर्यास्त के बाद आसमान देखा है? सांवला रंग, आसमान में घुला-घुला…"
"हटो अच्छा… बैंक में काम करते हो, बातें शायरोंवाली! चलो कल मिलते हैं. दीदी के यहां जाना है… उनकी तबियत ठीक नहीं है."
उस दिन के बाद से दीपा ने शायद ही कोई और रंग पहना हो… उसी रंग के ढेर सारे कुर्ते, दुपट्टे!
दीपा मुझे सुबह जल्दी उठने के फ़ायदे गिना रही थी और मैं ये सोच रहा था कि क्या सांवला रंग भी इतना आकर्षक हो सकता है?.. वो कुछ समझा रही थी, "और अगर सुबह सूर्य नमस्कार कर लो ना…"
"अरे बस करो यार," मैंने उसकी बात काटी.
"… ये आसमानी रंग का कुर्ता, तुम ये रंग बहुत पहनती हो ना?"
"तुम्हें भी नहीं पसंद आया ना, मम्मी भी कह रही थीं, इसमें मेरा रंग और दबा लगता है लेकिन मुझे बहुत पसंद है."
"अरे नहीं… और सुंदर लग रही हो… सूर्यास्त के बाद आसमान देखा है? सांवला रंग, आसमान में घुला-घुला…"
"हटो अच्छा… बैंक में काम करते हो, बातें शायरोंवाली! चलो कल मिलते हैं. दीदी के यहां जाना है… उनकी तबियत ठीक नहीं है."
उस दिन के बाद से दीपा ने शायद ही कोई और रंग पहना हो… उसी रंग के ढेर सारे कुर्ते, दुपट्टे!
कुछ दिन और फिर मैं और दीपा, हमारा घर, हमारी दुनिया… मेरे घर में भी सबको पता था.
"आज नहीं आ पाऊंगी, पापा और जीजाजी दीदी को अस्पताल लेकर गए हैं. बिट्टू मेरे पास है… दीदी बहुत तकलीफ़ में है." दीपा रो रही थी.
हफ़्ते भर बाद पता चला, दीदी नहीं रहीं!.. छह महीने का बेटा दीपा ही संभालती थी. हमारा मिलना बहुत कम हो पाता था, लेकिन जब भी आती थी, उसी तरह आती थी, आसमानी रंग में लिपटी हुई…
"तुम्हें हुआ क्या है आज? रोई हो क्या बहुत?" उसकी आंखें देखकर मैं डर गया, "अरे… फिर रोने लगी? बोलोगी कुछ?.."
"पापा-मम्मी बहुत परेशान हैं. बिट्टू बहुत छोटा है… सब चाहते हैं मैं… जीजाजी से शादी कर लूं…" वो फफक कर रो पड़ी.
कितने साल बीत गए. मैं और किसी को दिल में जगह नहीं दे पाया. घर के लोग भी समझा कर हार गए. मैंने शादी नहीं की! बस घर से बैंक, बैंक से घर… ना कहीं आना-जाना, ना किसी से मिलना.
बैंक में लंच चल रहा था.
"वैसे देखा जाए, तो फेसबुक है कमाल का, कितने दोस्त ढूंढ़ निकाले हमने…" शैलेन्द्रजी बोले.
"कैसे करते हैं?.. मतलब… थोड़ा डिटेल में बताइए." मैं अपनी हड़बड़ाहट छुपाते हुए बोला.
"अरे, कुछ नहीं… देखिए… एक अपना अकाउंट बना लीजिए." शैलेन्द्रजी पूरे उत्साह से समझाने लगे.
आधी छुट्टी लेकर घर आया. फेसबुक पर ढूंढ़ा, हज़ारों 'दीपा' थीं. शहर का नाम भी जोड़ दिया… एक मिनट के लिए लगा सांस रुक गई!
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कितने सालों बाद देखा. अनगिनत तस्वीरें थीं. पति के साथ, बच्चों के साथ… बहुत ध्यान से एक-एक तस्वीर देखी. उसने लगभग हर रंग के कपड़े पहने थे, सिवाय आसमानी रंग के… अंधेरा कमरे में पसर गया था. खिड़की खोलकर बाहर देखा…
"ये स्याह आसमान कल भी मेरा था, आज भी सिर्फ़ मेरा है…" मैं बुदबुदाया, "दीपा ने आसमानी रंग पहनना छोड़ दिया है…"
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