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कहानी- प्यार मरता नहीं… (Short Story- Pyar Marta Nahi…)

"नहीं! आज सिर्फ़ तुम और मैं और कोई नहीं, कोई भी नहीं." यह कहते हुए मैंने अपनी हथेलियां शेखर की हथेलियों पर रख दीं और एकटक यूं हीं उसे देखने लगी.
शेखर कुछ झेंपते हुए बोले, "तुम भी न पागल हो..."

कहते हैं शादी के बाद बहुत कुछ बदल जाता है. हां! शायद यह सच ही तो है, तभी तो मैं यानी 'रिया सक्सेना' से 'रिया निगम' हो गई. पर क्या मेरे नाम की पीछे का सरनेम ही बदला या मेरे जीवन में और भी बहुत कुछ बदल गया? आज शाम जब शेखर का मैसेज आया तब मैं उसका मैसेज पढ़ते हुए यही सोच रही थी, "सॉरी रिया, आई एम गेटिंग लेट."

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लेट हम्म… लगभग हर दूसरे दिन शाम ढलते यही मैसेज तो आता है, आई लव यू या आई मिस यू जैसे मैसेजेस तो जैसे उसकी उंगलियों ने टेक्स्ट करने ही छोड़ दिए. वही देर रात शेखर का घर आना. कभी डिनर करना, तो ऑफिस ही डिनर करके आना. राहुल से, "स्कूल कैसा रहा..?" जैसे मतलब के सवाल-जवाब करके मोबाइल देखते हुए सो जाना.
"क्या कल भी देर से ही आओगे शेखर?" मैंने हल्की आवाज़ में पूछा, तो शेखर ने भी अपेक्षित सा जवाब दिया, "पता नहीं कल काम रहा, तो देर हो भी सकती है. क्यों? क्या हुआ, कुछ काम है क्या कल?"
"नहीं बस ऐसे ही पूछ रही थी."
मैंने बिना कुछ सोचे अकेले ही कल की प्लानिग बना ली और शेखर को दूसरे दिन टेक्स्ट करते हुए बताया कि आज हम एक साथ दिन गुज़ारेगें.
आज अरसे बाद मैंने ग्रीन साड़ी पहनी. कानों में साड़ी की मैचिंग के झुमके डाले और हल्का-फुल्का सा मेकअप करके तैयार हो गई. राहुल हमारा बेटा चार बजे स्कूल से आ जाएगा यही सोचकर मैंने दो बजे लंच के लिए होटल ब्लू स्टार में हमारे लिए एक टेबल बुक कर ली.
दरअसल, आज हमारी शादी की दसवीं सालगिरह थी. मैं ब्लू स्टार पहुंच गई और शेखर भी आ गए. आते ही शेखर ने कहा, "बढ़िया प्लान किया तुमने, लेकिन ऐसे अकेले क्यों? कुछ ख़ास लोगों को भी बुला लेतीं और राहुल उसे भी ले आतीं न साथ में?"
"नहीं! आज सिर्फ़ तुम और मैं और कोई नहीं, कोई भी नहीं." यह कहते हुए मैंने अपनी हथेलियां शेखर की हथेलियों पर रख दीं और एकटक यूं हीं उसे देखने लगी.
शेखर कुछ झेंपते हुए बोले, "तुम भी न पागल हो. अच्छा बताओ क्या ऑर्डर करना है. वही दाल, पनीर, चपाती और सलाद पापड़ न?"
"नहीं आइसक्रीम, मोमोस और पेटीज़." मैंने मुस्कुराते हुए कहा.
"नहीं, अभी हफ़्ते भर पहले ही तो तुम्हारे पेट में दर्द था. ये सब मत खाओ और अब तो ये बच्चों जैसा खाना छोड़ो."
शेखर नें मेन्यू देखते हुए कहा.
"नहीं आज हम वो सब करेंगें, जो शादी से पहले करते थे. शेखर! वे मखमली प्यार भरे दिन लौट तो नहीं सकते, पर हम उन दिनों को फिर से याद तो कर सकते हैं न? देखो न शादी के दस साल बाद हम कितने बदल गए. अब न एक-दूसरे के लिए समय है, न ही पहले जैसा प्यार. बस ढ़ेर सारी ज़िम्मेदारियों के इर्द-गिर्द जीवन फंस-सा गया है." मैंने उदास मन से कहा.
"देखो न आज मैं बिल्कुल आपके मन मुताबिक़ तैयार होकर आई हूं, पर आपने एक नज़र भरकर भी मुझे नहीं देखा. शेखर, आपको ऐसा नहीं लगता की हमारे बीच का प्यार अब कहीं खो सा गया है?"

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इतना कहते ही मेरा फोन बज पड़ा. राहुल के स्कूल से फोन था, "मैम, राहुल के पेट में दर्द है क्या आप उसे अभी ले जाएगीं?"
यह सुनकर मैं एकदम घबरा गई और मेरी सांस तेज़ चलने लगी. ऐसे में शेखर ने मुझे संभाला और मेरी हाई ब्लड प्रेशर की दवा मुझे दी. फिर हम तुरन्त राहुल के स्कूल गए. राहुल हमारे साथ था और अब सब ठीक था. कार ड्राइव कर रहे शेखर की तिरछी निगाह मेरी ओर देखकर कह रहीं थीं, "प्यार कभी मरता नहीं है रिया!.. प्यार बस समय के साथ अपना रूप बदल लेता है."

पूर्ति वैभव खरे

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