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कहानी- सातवां वचन (Short Story- Satva Vachan)

“आप मुझे वो सातवां वचन दे दीजिए.”
अनामिका ने हमेशा की तरह स्वर में ढेर सारा प्यार घोलकर कहा.
इस पर संदेश हमेशा की तरह ठहाका लगाकर बोला, “देखो झूठ तो मैं बोलता नहीं और सच तो तुम्हारे सामने ही है.”
“क्या मतलब? कौन सा सच?” अनामिका की आंखों में डर मिश्रित आश्‍चर्य था.
“अरे यही कि मैं अपनी सहकर्मियों को बहन की नज़र से तो नहीं देख सकता न. ये सारा खुलापन, ये मज़ाक, ये मस्ती बहन के साथ संभव है क्या? न ही इनके बिना काम.” संदेश ने थोड़ा गंभीर होकर कहा.

शादी का मंडप वाक़ई बहुत ख़ूबसूरत था. ढोल, मजीरा बज रहे थे. सजे-धजे उत्साहित लोग गाने-बजाने और दूसरे पक्ष की टांग खींचने में लगे थे. रामनिवास शर्मा की सबसे छोटी बेटी के विवाह की रौनक़ देखते ही बनती थी. अनामिका उनकी चार बेटियों में सबसे छोटी थी. संदेश ने उसे एक शादी में देखा और पहली ही नज़र में उसकी स्निग्ध सादगी पर मुग्ध हो गया था. दो दिन तक उसे हर रस्म में हर जगह एक ही लड़की को निहारते देख संदेश की मां की ख़ुशी का ठिकाना न रहा, क्योंकि लड़की उनकी पसंद की थी. उसके परिवार के लिए संदेश की मां के मन में बहुत आदर था. वो बरसों से बेटे से शादी की ज़िद्द कर रही थीं. बेटे के हां करते ही परिवार में ख़ुशियों की बहार आ गई. एक महीने के अंदर शादी का दिन भी आ पहुंचा.
सुंदर मंडप के नीचे प्रज्ज्वलित हवन कुंड के एक तरफ़ अनामिका और संदेश बैठे थे, दूसरी और तीसरी तरफ़ दोनों परिवार के लोग अलग-अलग मंडली बनाकर बैठे थे. गीत-संगीत और हंसी-ठहाकों के साथ विवाह संपन्न हो रहा था. पंडितजी वचन बोलते जा रहे थे और अनामिका हां करती जा रही थी. फिर आई संदेश की बारी, अबकी संदेश हां करता जा रहा था. अनामिका को पंडितजी के बिना उन लोगों की हां की परवाह किए एक सुर में वचन बोलते जाने पर हंसी आ रही थी. पंडितजी ने उसी अंदाज़ में गाते हुए कहा, “अब वर का आख़िरी वचन, मैं तुम्हारे अलावा दुनिया की सभी स्त्रियों को माता या बहन के रूप में देखूंगा.”
इस पर संदेश तपाक से बोला, “भई ये वचन तो मैं नहीं दे सकता.” अनामिका ने हतप्रभ होकर संदेश को देखा, उसके चेहरे पर शरारती मुस्कान थी. फिर आगे-पीछे देखा दोनों परिवार के लोग ढोल बजाकर गाने में व्यस्त थे. फिर उसने पंडितजी की ओर देखा. वो मंत्र समाप्त होने पर अगली रस्म की तैयारी में व्यस्त थे. स्वभाव से दब्बू और अंतर्मुखी अनामिका ने पलकें झुका लीं.
संदेश पेशे से पत्रकार था. उसका अपना एक समूह था, जो सच्ची घटनाओं पर आधारित डॉक्यूमेंट्री फिल्में बनाता था. समूह के सभी बारह सदस्य अपने-अपने क्षेत्र में विशिष्टता प्राप्त थे. इनका आपसी सामंजस्य तथा टीम स्पिरिट सराहनीय थी. यही नहीं वे संवेदना के स्तर पर भी एक-दूसरे से एक परिवार की तरह जुड़े थे. उनकी एकता तथा संगठन के कारण ही उनकी फिल्म की गुणवत्ता अद्वितीय होती थी. वे अपने प्रतिद्वंदियों में ईर्ष्या का कारण होते थे.
शादी के बाद जब अनामिका अपने पति के साथ उसके कार्यस्थल पर रहने आई, तो उसे अपनी कल्पना से बड़ा तथा सुंदर घर देखने को मिला. उसके पिता एक सरकारी कार्यालय में क्लर्क थे. वो पिता के सख़्त अनुशासन में पली और कन्या विद्यालय में पढ़ी थी. लड़कों से दोस्ती करना तो दूर उनसे बातचीत करने की भी इजाज़त लड़कियों को नहीं थी. बंधे सरकारी वेतन वाले कर्मनिष्ठ पिता इज़्ज़त को ही अपनी पूंजी मानते थे. पैतृक संपत्ति बेचकर उन्होंने सभी लड़कियों का विवाह सही समय पर अच्छे घरों में किया था. उनकी बेटियां गृहकार्य दक्षता तथा सुशील व्यव्हार के लिए प्रसिद्ध थीं, तो संदेश का परिवार अपनी उच्च शिक्षा और आधुनिकता के लिए.
अनामिका का स्वागत जितने उत्साह और प्यार-दुलार के साथ उसके ससुराल में हुआ था, आज उतने ही जोश और उमंग के साथ पति की मित्र मंडली उसका स्वागत कर रही थी. जहां एक ओर लाल साड़ी में लिपटी पलकें झुकाए अनामिका सबके कौतूहल का कारण बनीं खड़ी थी, वहीं अलग-अलग, खुली-खुली पाश्‍चात्य पोशाकें पहने बेबाक़ और बिंदास संदेश की महिला मित्रों को अनामिका तनाव मिश्रित आश्‍चर्य के साथ देख रही थी.

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आख़िर पार्टी ख़त्म हो गई और बच गए केवल ग्यारह लोग, जो जाने के मूड में ही नहीं लग रहे थे. डेढ़ महीने ससुराल, हनीमून, रिश्तेदारों के घर संदेश के साथ बेहद खुले माहौल में रहकर आई अनामिका का अभी तक साहस नहीं था कि लोगों के बीच वो पति से कुछ कहे या बगल में बैठ ही जाए. संदेश और उसके घरवालों का असीम प्यार और सदव्यवहार भी उसके संस्कार नहीं तोड़ पाया था. थकी अनामिका संदेश के बगल में एक कुर्सी छोड़कर बैठ गई. तभी अपराजिता जिसे सब प्यार से अप्पू कहते थे, मस्तीभरी चाल से आई और बीच वाली कुर्सी पर बैठ गई. बड़े ही प्यार से एक हाथ अनामिका के और एक हाथ संदेश के कंधे पर रखा. एक नज़र संदेश पर डालकर बोली, “सो फाइनली यू हैव गॉट योर ड्रीम गर्ल.” फिर मुग्ध होकर अनामिका को निहारते हुए बोली, “रियली यू हैव मैग्निफिसेंट ब्यूटी. टुडे आई एम वेरी हैप्पी टु सी माई बेस्ट फ्रेंड सो हैप्पी.” कहते हुए उसने बांहें दोनों के गले में डालकर उन्हें अपने नज़दीक खींच लिया.
मैरिज पार्टी में भी टी-शर्ट और शॉर्ट्स पहने इस युवती को देखकर अनामिका पहले से ही हैरान थी. उसे अपने पति के साथ ऐसी बेबाक़ी से बातें करते देखकर तो उसके विस्मय की सीमा न रही.
“तो हो जाए पार्टी शुरू.” तान्या ने शैम्पेन की बोतल खोलते हुए कहा.
“मगर पार्टी तो ख़त्म हो गई न?” अब तो आश्‍चर्यचकित अनामिका के मुंह से निकल ही गया.
“न न न… असली पार्टी तो अब शुरू हुई है अनामिका.” चेतन बोला, तो अनामिका ने उसे ऐसे घूरा जैसे कह रही हो, 'दोस्त की पत्नी को भाभी न कहकर नाम से सम्बोधित करने की हिम्मत कैसे हुई.' चेतन घबराकर पीछे हट गया.
देर रात तक हंसी-मज़ाक डांस और शैम्पेन का दौर चलता रहा. संदेश ने कई बार अनामिका से ज़िद की ₹, पर उसने शैम्पेन लेने से मना कर दिया.
रात में सबके जाने के बाद संदेश बड़े ही रोमांटिक मूड में क़रीब आया, तो अनामिका रो पड़ी, “मुझे शराब की गंध बिल्कुल पसंद नहीं है.” अनामिका की आवाज़ में दुख और बेबसी थी.
“ओह सॉरी! मुझे मालूम नहीं था.” संदेश ने बड़े प्यार से उसके बालों में उंगली फेरकर कहा और दूसरे कमरे में चला गया. अनामिका रोते-रोते सो गई.
सुबह ब्रश करके अपना मुंह सूंघकर बेड टी लेकर संदेश कमरे में पहुंचा. उसने अनामिका के सिर पर हाथ रखा, तो वो चौंक कर उठ बैठी.
“महारानी साहिबा के लिए चाय पेश है खिदमत में.” संदेश कुछ ऐसे अदब से झुककर बोला कि अनामिका शरमा गई.
“इजाज़त हो तो एक प्रश्‍न पूछूं? अब मेरे मुंह से बदबू, तो नहीं आ रही?” संदेश ने अपना मुंह नज़दीक लाकर पूछा.
“नहीं” अनामिका शरमाते हुए बोली.
“तो फिर एक प्यारा-सा गुड मॉर्निंग किस दे दो. डेढ़ महीने बाद काम पर जा रहा हूं. विश करो कि मन लग जाए.” कहकर संदेश ने अपने अधर उसके अधरों पर रख दिए.
आज मौसम बड़ा ख़ुशगवार था. सुबह से ही संदेश बड़े रोमांटिक मूड में था. अनामिका नाश्ता बनाने किचन में गई, तो संदेश नहाने जाते हुए बोला, “किचन का जो भी काम हो एक साथ ख़त्म कर लो. इतने अच्छे मौसम में बार-बार किचन और काम की बात मत करना.” अनामिका के चेहरे पर ख़ुशनुमा मुस्कान तैर रही थी और वह पकौड़े तल रही थी, इतने में घंटी बजी. दरवाज़ा खोला, तो देखा अप्पू लैपटॉप बैग लटकाए, ढेर सारी किताबें पकड़े अपने चिर-परिचित मस्तमौला अंदाज़ में खड़ी थी.
“मैंने सब कुछ जॉट डाउन कर लिया है. आज मैं ख़त्म करने के मूड में हूं. ये फिल्म तो ऐसी बनी है कि दर्शक और राइवल्स दोनों पागल हो जाएंगे.” अप्पू अपने तूफ़ानी अंदाज़ में सारी चीज़ें ड्रॉइंगरूम में बिखेरती हुई बोलती जा रही थी और अनामिका हाथ में पकौड़े की प्लेट लिए उसे हतप्रभ-सी देख रही थी.
“पर मैं आज काम के मूड में बिल्कुल नहीं हूं.” संदेश बाथरूम से निकलकर सीधे टॉवेल में ही ड्रॉइंगरूम में आते हुए बोला.
“अच्छा! मिस्टर संदेश भी कभी काम के मूड में नहीं हो सकते हैं? ऐसा भी क्या हो गया है?” अप्पू ने बड़े नाटकीय अंदाज़ में बोलकर एक साथ चार पकौड़े मुंह में भर लिए और फाइलें सेट करने लगी. “हो ये गया है कि मेरी नई-नई शादी हुई है और मैं आज बड़े ही रोमांटिक मूड में हूं.” कहकर संदेश ने अप्पू के सामने ही अनामिका को बांहों में भर लिया.
“हद होती है नालायकी की, छह महीने हो गए हैं और तुम्हारा हनीमून है कि ख़त्म ही नहीं हो रहा. चुपचाप काम करो. दिन काम के लिए होता है. रात में तुम्हें पत्नी नहीं मिलती क्या?” अप्पू कागज़ रोल करके संदेश के कंधे पर मारती हुई बोली और चार और पकौड़े मुंह में ठूंस लिए.
“क्यों मेरी प्यारी पत्नी की नज़र में कबाब में हड्डी बनती हो. जल्द ही ये पकौड़े-वकौड़े मिलने बंद हो जाएंगे.” संदेश वैसे ही अनामिका को समेटे हुए बोला.
“हा! हा! अब मेरी सुनो. राइवल्स ने भी हमारे मिलते-जुलते विषय पर डॉक्यूमेंट्री बनाई है. ये तो तुम जानते ही हो. उन्होंने उसके लिए पांच दिन बाद की बुकिंग करा ली है.”
“क्या?”


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संदेश की शरारती मुस्कान गायब हो गई और तनाव के बादल चेहरे पर छा गए. वो अनामिका को छोड़कर खड़ा हो गया.
“डोंट वरी, अप्पू द ग्रेट ने तीन दिन बाद की बुकिंग करा ली है. कैसे हुआ ये मत पूछना. बस जल्दी से काम पर लग जाओ, वरना तुम्हारी प्यारी पत्नी से तुम्हें खाना-वाना मिलना बंद हो जाएगा.” अप्पू के होंठों पर शरारतभरी मुस्कान थी.
“ओह अप्पू! यू आर रियली ग्रेट.” कहते हुए संदेश ने अप्पू के कंधे पर एक धौल जमाई और उसे एक हाथ से खुद से सटा लिया. “अनामिका, तुम ज़रा शाम के लिए सभी मतलब दस बारह लोगों के खाने का इंतजाम कर दोगी प्लीज़, कोई दिक़्क़त तो नहीं है?” संदेश अनामिका की ओर मुखातिब होते हुए बोला.
“दरअसल, हम दोनों का काम शाम तक ख़त्म हो जाएगा. फिर सबका काम शुरू होगा.” अभी थोड़ी देर पहले अप्पू के सामने और उसके साथ संदेश के खुले व्यव्हार से तनावग्रस्त अनामिका उसके अपने प्रति इतने विनीत व्यवहार से ख़ुश हो गई.
वैसे शादी के बाद महीनों से यही हो रहा था. पति-पत्नी दोनों ही अच्छे इंसान थे. एक-दूसरे की क़द्र करते थे, मगर उनके संस्कार बिल्कुल भिन्न थे. कहां तो अनामिका ने कभी जाना ही नहीं था कि परिवार में कुछ व्यक्तिगत भी होता है और कहां संदेश के जीवन में, उसकी स्टडी में, दराज़ों में, यहां तक कि घर के हर कोने में उसके
‘व्यक्तिगत’ कहे जानेवाले काग़ज़ और पत्र बिखरे रहते थे. पर अनामिका को ज़्यादा ख़लिश इस बात की थी कि संदेश की वे सारी चीज़ें उसके दोस्तों के लिए व्यक्तिगत नहीं थीं.
संदेश अनामिका और उसकी वैयक्तिक्ता की क़द्र करता था और उससे भी इसकी अपेक्षा करता था. यदि उसकी डायरी खुली भी रखी हो तो न पढ़ना, पत्र आने पर भेजनेवाले का नाम तक न पूछना, ख़ुद समय न निकाल पाने पर उसे अकेले ही घूमने जाने, मॉल में शॉपिंग कर आने को प्रेरित करना, शराब पीने पर उससे दूरी बनाकर रखना अनामिका को सुखद आश्‍चर्य से भर देता, लेकिन कुछ बातों से वह तनावग्रस्त हो जाती. वो लैपटॉप जो इतना व्यक्तिगत होता था कि उसे अनामिका के सामने तक नहीं खोला जाता था, अप्पू को उसका पासवर्ड तक मालूम था. जब तब अप्पू आ धमकती और संदेश का लैपटॉप लेकर घंटों जाने क्या किया करती. कभी-कभी वो सारी चीज़ें सहेज भी देती, जिन्हें अनामिका को छूना मना था.
कुछ दिन बाद डॉक्यूमेंट्री फिल्म हिट होने की पार्टी धूमधाम से हुई. ख़ुशनुमा माहौल में सब एक-दूसरे की तारीफ़ कर रहे थे. पर सबसे ज़ोरदार थी अप्पू की तारीफ़.
“सच, अगर अप्पू राइवल्स की डॉक्यूमेंट्री की तारीख़ पता लगाकर उसके पहले की तारीख़ न ले लेती तो सारा मज़ा ख़राब हो जाता.” चेतन बोला.
“करेक्ट! सबको यही लगता कि हमने नक़ल की है.” अनूप ने जोड़ा.
“लेकिन इतनी जल्दी डेट लेने का तिकड़म भिड़ाना अप्पू के ही बस का था.” नलिन ने बात आगे बढ़ाई .
“तो पर्सन ऑफ द इवनिंग…” एकता ने शैम्पेन की बोतल खोलने का उपक्रम करते हुए जोड़ा, तो बात काटते हुए अप्पू बोली, “ रुको, रुको, रुको… आज की पर्सन ऑफ द इवनिंग है अनामिका.” “अनामिका? वो कैसे?” सबके मुंह से एक साथ निकला.


‘भई अबकी बार साथ तो साथ, अकेले किया जानेवाला काम भी मैंने संदेश के घर पर ही बैठकर किया है. पता है क्यों?” सब उत्सुकता से अप्पू की ओर देखने लगे. तब अप्पू ने सूत्रधार की तरह नाटकीय अंदाज़ में बोलना शुरू किया.
“एक तो एकता कपूर के सीरियलों की तरह साफ़-सुथरा, सुंदर, सजा-धजा घर, ख़ूबसूरत लॉन, उस पर इसके हाथ के टेस्टी स्नैक्स और खाना, वाह! दिमाग़ की सारी बत्तियां जल जाती हैं यहां काम करने में.”
“वाह! क्या बात है! ये तो नाइंसाफ़ी है. जाने कितनी टेस्टी चीज़ें तुम अकेले चट कर चुकी हो.” नलिन नाराज़गी जताते हुए अनामिका से मुखातिब हुआ, “भाभीजी, जो कुछ आपने इसे खिलाया है वो हमें भी खिलाना पड़ेगा. अब से हम भी यही काम करेंगे.”
“अच्छा ! मेरी बीवी बावर्ची है क्या? मुझे नहीं मालूम था कि ये मेरे पीछे मेरी बीवी से मेहनत करवाती है. अगली फिल्म के डायलॉग्स इसी के यहां लिखूंगा और हर घंटे पर कॉफी पियूंगा.”
संदेश ने ठुनक कर कहा फिर बोला, “अगर पर्सन ऑफ इवनिंग अनामिका है, तो आज जश्‍न कोल्ड ड्रिंक्स के साथ मनाते हैं. ये शराब नहीं पीती है.”
“भई हम तो पिएंगे. बिना पेग के सेलिब्रेशन कैसा?” सीरीश और सर्वेश बोले. बाकी सब थोड़ा मुंह बनाकर राज़ी हो गए. फिर तो देर रात तक हंसी-ठहाके का दौर चलता रहा.
उस रात संदेश को अच्छे मूड में देखकर फिर अनामिका ने बात छेड़ी, “आप मुझे कुछ गिफ्ट देने की बात कह रहे थे.”
“हां, हां और ये भी कह रहा था कि तुम ख़ुुद ही बता दो तो अच्छा है.” संदेश ख़ुशी से बोला.
“आप मुझे वो सातवां वचन दे दीजिए.”
अनामिका ने हमेशा की तरह स्वर में ढेर सारा प्यार घोलकर कहा.
इस पर संदेश हमेशा की तरह ठहाका लगाकर बोला, “देखो झूठ तो मैं बोलता नहीं और सच तो तुम्हारे सामने ही है.”
“क्या मतलब? कौन सा सच?” अनामिका की आंखों में डर मिश्रित आश्‍चर्य था.
“अरे यही कि मैं अपनी सहकर्मियों को बहन की नज़र से तो नहीं देख सकता न. ये सारा खुलापन, ये मज़ाक, ये मस्ती बहन के साथ संभव है क्या? न ही इनके बिना काम.” संदेश ने थोड़ा गंभीर होकर कहा. फिर अपने परिचित रोमांटिक मूड में अनामिका को छेड़ते हुए कहने लगा, “देखो कितनी रोमांटिक रात है. आज तुम्हारी ख़ातिर मैंने अपनी प्रेमिका को छोड़ दिया और तुम हो कि वचन के चक्कर में पड़ी हो. फिर अनामिका की आंखों में तैरते प्रश्‍न को पढ़कर खिलखिलाकर बोला, “मेरी प्रिय शैम्पेन भई.” अनामिका की आंखों में गर्व की हंसी और अधरों पर शरारत भरी मुस्कान तैर गई. संदेश ने हंसकर उसे अपनी बांहों में भर लिया.
तीन महीने बाद अगली डॉक्यूमेंट्री हिट होने की पार्टी थी. हंसी, मज़ाक, ठहाकों का दौर चल रहा था कि चेतन बोला, “आजकल तुम्हारी एफीशियन्सी कितनी बढ़ गई है संदेश! दिनभर तो तुम मेरे साथ वाले प्रोजेक्ट पर काम करते रहे हो. लेखन को कब समय देते थे?”
“यूं तो शाम को कर लेता था. अब अपने और घर के सारे दायित्वों से छुट्टी जो मिल गई है. बस छह रातें पूरी-पूरी लगीं.” संदेश ने संजीदगी से कहा.
“अरे बाप रे! इतना काम भी न करो कि बीवी घर से निकाल दे.” तान्या ने चुटकी ली.
तभी वेटर शराब के ग्लास लेकर आया. संदेश ने अनामिका की ओर देखा फिर मना कर दिया.
“क्या हुआ कोई हेल्थ प्रॉब्लम तो नहीं?” चेतन ने पूछा. जश्‍न में शराब को मनाकर देना सबके लिए आश्‍चर्यजनक था. सब उधर चिंता से देखने लगे.
“नो! फिक्र नॉट… ये हेल्थ नहीं लव प्रॉब्लम है. ये हमारा काम इतनी जल्दी इसीलिए तो ख़त्म हुआ. वो जो हर पंद्रह दिन पर हम लोग वर्क प्रोग्रेस डिस्कस करने के लिए शैम्पेन पार्टी करते है न उस दिन, नहीं नहीं उस रात ये कमरे से आउट कर दिए जाते हैं. बस हम इन्हें यूटिलाइज कर लेते हैं.” अप्पू अपने मस्तीभरे अंदाज़ में बोले जा रही थी.
“अच्छा! भई सब मिलकर जल्दी से इसकी शादी करवाओ नहीं तो ये झगड़ेवाली रात हमारे पतियों को भी यूटिलाइज़ करना शुरू कर देगी.” अन्वी ने कुछ इस अंदाज़ में बोला कि सारे के सारे ठहाका लगाकर हंसने लगे.
“यार हद होती है बेशर्मी की.” विधा अन्वी की पीठ पर धौल जमाकर हंसते-हंसते बोली.
"मैंने क्या कहा? बस अप्पू को बताने की कोशिश की कि उसने क्या कह दिया है.” अन्वी हंसते हुए बोली.
सब पेट पकड़कर हंस रहे थे, लेकिन अप्पू न झेंपी न शर्माई, बल्कि बहुत सामान्य लहज़े में बोली.
“हम लोग तो हमेशा से संवेदनशील संवाद रात में ही लिख पाते थे, पर शादी के बाद सहकर्मी साथ ऑनलाइन काम करने के लिए भी स्पाउस की परमीशन लेनी पड़ती है, इसीलिए तो मैं शादी नहीं करती.”
देर तक मौज-मस्ती करने के बाद सब घर लौटे.
“आप मुझसे तो अप्पू की कोई बात नहीं बताते उसे क्यों बताया कि…” अनामिका ग़ुस्से में वाक्य अधूरा छोड़ने के थोड़ी देर बाद बोली, “क्या ये पति-पत्नी के बीच की व्यक्तिगत बात नहीं है?”
“आई एम सॉरी! वो क्या है कि थोड़ी पी लेने के बाद मैं बहुत संवेदनशील संवाद अच्छे से लिख पाता हूं. हमारे काम का समय हम अपने मूड के हिसाब से तय करते हैं. तो बस वही जब मैं ड्रॉइंगरूम में सोता था, तो ऑनलाइन उसके साथ देर रात तक काम किया करता था. वो अक्सर छेड़ती कि तुम्हारी पत्नी इतनी रात तक काम करने से ग़ुस्साती नहीं है, तो एक दिन मैंने बता दिया. सॉरी यार!” संदेश ने मानाने की कोशिश की तो, मगर बात कुछ ख़ास बनी नहीं.


अप्पू छोटी थी जब उसके माता-पिता ने तलाक़ ले लिया था. इसीलिए उसे शादी के नाम से चिढ़ थी. अपनी बहुत-सी व्यक्तिगत बातें वो केवल संदेश से कहती थी. वो बहुत अच्छी इंसान थी और एक साहसी, बेबाक़ और प्रतिभाशाली पत्रकार भी. अनामिका ने ये सारी बातें टुकड़ों में बाकी दोस्तों से सुनी थीं. यूं तो सभी दोस्तों के साथ संदेश का व्यवहार बहुत खुला था. शायद यही उनकी ताक़त थी और व्यवसाय की आवश्यकता भी. पर अप्पू के साथ उसका खुला व्यवहार अनामिका को बहुत खटकता था.
आज सुबह से अनामिका बहुत ख़ुश और व्यस्त थी. कल उसके सास-ससुर आ रहे थे. शादी के बाद वह कुछ दिन उनके पास रही थी तब उसकी सास ने अपने स्नेहिल व्यवहार से उसका दिल जीत लिया था. कल लगभग एक साल बाद वह उनसे मिलने आ रही थीं. बीस दिन बाद उसकी शादी की पहली सालगिरह थी. सास-ससुर उसे धूमधाम से मनाने की ख़्वाहिश लेकर आ रहे थे. पर शाम से संदेश एक फोन आने के बाद पता नहीं कहां चला गया था. उसका फोन भी स्विच ऑफ जा रहा था. कितने काम अटक गए थे. आख़िर साढ़े बारह बजे संदेश वापस आया.
अनामिका का चिंतातुर चेहरा देखते ही संदेश बोला, “अप्पू ने बुलाया था. हम लोग सफायर लेन चले गए थे.”
“ऐसा क्या ज़रूरी काम था कि फोन भी स्विच ऑफ कर दिया?” अनामिका को ग़ुस्सा तो बहुत आ रहा था, पर उसने स्वर को संयत रखते हुए पूछा. तब तक संदेश अपना फोन चार्जिंग के लिए लगा चुका था.
“अरे मेरे फोन की बैटरी तो घर से निकलते समय ही डाउन हो गई थी, देखो.”
“तो आप उसे चार्ज करके भी तो जा सकते थे. ऐसी भी क्या जल्दी थी कि न मोबाइल चार्ज करने का टाइम था, न मुझे कुछ बताने का.” अब अनामिका के स्वर का रोष बढ़ गया था.
“मैंने तुम्हे बताया है अप्पू के जीवन में कुछ ऐसे कॉम्प्लिकेशन्स हैं, जो नॉर्मली लोगों के जीवन में नहीं होते. ऐसे में वो जब अपसेट हो जाती है, तो मैं ही उसे संभाल पाता हूं. जब भी हम अकेले होते हैं कभी किसी एकांत कमरे में नहीं, किसी ऐसी जगह पर बैठकर बातें करते हैं, जहां थोड़ी भीड़ हो और सब लोग आपस में मग्न हों. ये भी बताया हुआ है न?” अबकी संदेश स्वर को यथासंभव संयत रखते हुए बोला.
“सफायर लेने जैसी जगह? जहां आप मुझे ले गए थे तो बताया था कि ये शहर की सबसे रोमांटिक जगह है. जहां अजीब से कपड़े पहने कई जोड़े इधर-उधर टहलते रहते हैं?” अनामिका के स्वर का रोष उफ़ान पर आ चुका था.
“उफ़! फिर वही… अब तुम साथ होती हो तो ऐसी जगहें रोमांटिक हो ही जाती हैं. इसका मतलब ये तो नहीं…” संदेश भी फट पड़ा, “मैं तुमसे झूठ भी कह सकता था. पर क्यों कुछ और कहूं जब मेरे मन में चोर नहीं है. देखो अनामिका इतनी स्पेस तो तुम्हें मुझको देनी ही होगी.” कहकर ग़ुस्से में संदेश बिना खाना खाए ही सो गया.
सुबह हितेश और सपना, संदेश के मॉम-डैड घर पहुंचे, तो उन्होंने माहौल में हंसी-ठहाके भर दिए.
“ये पांचवी ड्रेस है जो तुम्हें अनामिका पहनकर दिखा रही है. अभी तक सूटकेस से मेरे लिए कुछ नहीं निकला है.” संदेश ने उलाहना देते हुए कहा.
“देखो तो चिढ़कू को.” मॉम हंसते हुए बोली, “तेरा सामान तेरे डैड के सूटकेस में है.”
पति-पत्नी दोनों ही इतने ख़ुश मॉम-डैड के सामने झगड़ना नहीं चाह रहे थे, इसलिए सामान्य व्यव्हार कर रहे थे, पर मां की अनुभवी आंखों से कुछ छिपा नहीं. संदेश की मां का बुटीक शहर में प्रसिद्ध था. वो एक सुलझी, समझदार और स्नेही औरत थीं. खाने के बाद सब बैठे तो मॉम ने अनामिका को छेड़ते हुए पूछा, “शादी की पहली सालगिरह पर संदेश से क्या ले रही है मेरी अनु?”
“जो मांगती हूं वो तो ये देते नहीं. बहुत समय से पेंडिंग है.” अनामिका उलाहना देते हुए बोली.
“अच्छा! फिर तो इसकी ख़ैर नहीं.” मॉम ने अनामिका का पक्ष लिया.
“क्यों रे क्या बात है.” पहले मॉम ने अकेले में संदेश से पूछना ज़रूरी समझा.
“कुछ नहीं मां ख़ुद तो सबको भाईसाहब कहती है और चाहती है मैं सबको बहनजी कहूं.” संदेश ने रोष भरे स्वर में सिर हिलाते हुए कहा.
दूसरे दिन संदेश के काम पर जाने के बाद उन्होंने पहले अनामिका की पाक-कला, गृहसज्जा की ख़ूब तारीफ़ की, फिर प्यार से उसकी उदासी का कारण पूछा. भोली अनामिका ने थोड़ी न-नुकुर के बाद सब कुछ बता दिया.
“हूं तो ये बात है. बेटा, आज के ज़माने में जब स्त्रियां पुरुषों के साथ ऐसे अलग क़िस्म के काम करने लगीं हैं, जिनका सबसे इम्पॉर्टेंट फैक्टर टीम स्पिरिट है, ऐसे रिश्ते बनना स्वाभाविक है. देखो तुम्हारे डैड किताबी कीड़ा हैं. इनको ऐसे मित्र चाहिए जिनके साथ ये लेखन के नए ट्रेंड डिस्कस कर सकें, तो इनकी मित्र मंडली अलग है और मेरी मेरे व्यवसाय के हिसाब से अलग.” फिर बड़े कोमल शब्दों में उन्होंने बात को आगे बढ़ाया, “ज़्यादातर लोग एक सी सोच और एक सी प्रतिभा के कारण एक व्यवसाय में आते हैं, इसलिए उनसे हमारा मन और मानसिक स्तर भी मिल जाता है, जो प्रगाढ़ मैत्री की पहली शर्त है. इसीलिए कभी-कभी वे निजी सुख-दुख भी बांटने लगते हैं, क्योंकि उन्हें लगता है कि उनका मित्र ही उन्हें भली-भांति समझ सकता है. इस बात को समझने को ही स्पेस देना कहते हैं.” इतना कहकर मॉम ने ठिठककर अनामिका की ओर देखा.
“लेकिन मां, किसी भी समय, किसी भी जगह लगता है ये तो मुझसे ज़्यादा क़रीब अप्पू से हैं. ऐसी ही स्पेस अगर मैं भी इनसे मांगने लगूं तो?” कहते हुए अनामिका सुबक पड़ी.
मॉम ने अनामिका को सुबकते देखा तो उन्हें लगा ये बात उसके दिल में गहरी चुभ गई है. केवल समझाने से काम नहीं चलेगा, लेकिन उसकी बात से उन्हें एक उपाय सूझ गया. दूसरे दिन संदेश की मेज पर अनामिका के नाम का एक ख़ुशबूदार गुलाबी लिफ़ाफ़ा पड़ा था. “अनामिका तुम्हारा लेटर” उसकी ओर बिल्कुल ध्यान न देते हुए लिफ़ाफ़ा उसे पकड़ाया.
“मेरे दोस्त विकी का है." अनामिका ने ख़ुशी से लिफ़ाफ़ा पकड़ते हुए कहा.
“दोस्त? तुम तो सबको भाई बोलती थीं ये अचानक दोस्त कहां से पैदा हो गया.” संदेश ने अपना काम करते-करते निर्लिप्त भाव से कहा.
“कल मॉम ने मुझे समझाया कि मॉडर्न बन जाओ. मैं और विकी फेसबुक पर दोस्त हैं. कल चैट के समय जब मैंने एक बार भी भाईसाहब नहीं बोला, तो इसने नोटिस कर लिया. कारण पूछने पर मैंने बताया ज़िंदगी में ऐसी बहुत-सी बातें होती हैं, जो इंसान भाई-बहनों से शेयर नहीं कर सकता. मुझे भी एक दोस्त चाहिए. तो इसने कहा मैं भी कितने दिनों से यही कहना चाहता था. तभी उसका लैपटॉप ख़राब हो गया. उसका एसएमएस आया था कि लेटर भेजेगा.” अनामिका एक सांस में रटे संवाद बोल गई, तो मॉम को लगा कहीं संदेश समझ न जाए. पर निर्लिप्त भाव से काम करते संदेश ने उठकर उनके कंधे पर हाथ रखकर अपनी ख़ुशी ज़ाहिर करते हुए कहा, “यू आर ग्रेट मॉम. जो बात मैं एक साल में नहीं समझा सका, वो तुमने एक दिन में समझा दी.”
देखते जाओ बेटा मैं किस-किस को क्या-क्या समझाती हूं. मॉम मन ही मन सोचते हुए अपनी आगे की योजना पर विचार कर रही थीं.
“अनामिका, तुम्हारा मोबाइल क्यों स्विच ऑफ रहता है आजकल? पानी के साथ कुछ खाने को भी ले आना. बहुत भूख लगी है.” सोफे में धंसते हुए संदेश ने पुकारनेवाली आवाज़ में कहा.
“अनामिका घर पर नहीं है.” पानी का ग्लास और स्नैक्स पकड़ाते हुए मॉम बोलीं.
“कई दिनों से देख रहा हूं मॉम, अनामिका दिन में घर में होती ही नहीं है. शाम को भी देर से आती है. कहां जाती है? मुझे तो कुछ बताती नहीं. तुम्हें कुछ पता है?”
“अरे, तो तू सीधे-सीधे पूछ क्यों नहीं लेता?”
“मैं पूछता हूं तो कहती है सरप्राइज़ है.”
“वो जो उसका दोस्त है न, विकी, जाना-माना आर्किटेक्ट है. अब आर्किटेक्ट को तो इंटीरियर डिज़ाइनर की ज़रूरत और क़द्र दोनों होती ही है. इसीलिए तो दोस्ती हुई थी दोनों में. यहां अनामिका का टैलेंट चूल्हे-चौके में सड़ रहा था. विकी ने उसका हौसला बढ़ाया. अब दोनों पैकेज के रूप में काम करने की सोच रहे हैं. मैंने भी उसे प्रोत्साहित किया. सोच रही होगी कुछ बात बन जाए तो तुम्हें बताए.”
“लेकिन मॉम, उसने मुझसे कभी नहीं कहा कि वो काम करना चाहती है. मेरे पास कॉन्टैक्ट्स की कमी है क्या जो किसी का एहसान ले वो. कौन है ये विकी? क्यों जाना-माना आर्किटेक्ट होते हुए एक अनुभव शून्य औरत के साथ काम करना चाहता है?” संदेश बड़बड़ाते हुए परेशान-सा टहलने लगा.
“जाके पैर न फटी बिंवाई, वो क्या जाने पीर पराई.”
“क्या मतलब?” संदेश ने मुस्कुराती हुई मॉम का वाक्य सुनकर पूछा.
“तू चाहता था न कि अनामिका तुझे स्पेस दे. तो बेटा ऐसी लड़की जिसकी दुनिया तुझसे शुरू होकर तुझपे ख़त्म हो जाती हो, जो तेरी हर बात को आदेश की तरह लेकर तुझे घर के और स्वयं तेरे सभी दायित्वों से मुक्त रखती हो, वो तो तुझे स्पेस देने से रही. जब घर से निकलेगी, काम के सिलसिले में ठोकरें खाएगी, दोस्तों का महत्त्व समझेगी, दोस्त बनाएगी तभी तो तुझे समझ पाएगी न?” मॉम ने सीधे बेटे की आंखों में देखकर कहा.
“लेकिन मॉम मेरा प्रश्‍न अब भी वही है. विकी को एक अनुभवहीन लड़की में कौन-सी व्यावसायिक दक्षता नज़र आ रही है? तुम्हें नहीं मालूम, एक तो अनामिका बहुत इनोसेंट है. उसे सुरक्षा के नियमों की जानकारी बिल्कुल नहीं है. दूसरे कुछ दिन पहले हमारा झगड़ा भी हुआ था. कहीं मुझे चिढ़ाने या सबक सिखाने के लिए तो नहीं..? कहीं किसी मुसीबत में न पड़ जाए.” संदेश जैसे ख़ुद से ही बोल रहा था.


“चिंता मत कर, मैंने सुरक्षा के सारे नियम अच्छे से याद करा दिए हैं." "यही कि अपना मोबाइल स्विच ऑफ रखे?” संदेश का तनाव मुखर हो उठा था.
“ओह! उसने तुम्हें बताया नहीं कि उसका मोबाइल ख़राब है. डैड के मोबाइल पर करो. वही लेकर गई है वो.”
संदेश का फोन उठाते ही अनामिका ने विकी का गुणगान शुरू कर दिया. अंत में बोली, “आज मैं थोड़ी देर से लौटूंगी. वो क्या है कि आज हमेशा चहकनेवाला विकी बहुत ख़ामोश है. अब इतने दिन से वो सिर्फ़ मेरे लिए मेरे साथ खाक छान रहा था, तो मेरा भी तो फ़र्ज़ बनता है कि उससे उसकी ख़ामोशी की वजह निकलवाऊ, तो हम डेलास में डिनर पर जा रहे हैं.”
“वो ठीक है, मगर…” संदेश के चेहरे पर संतोष भी था और तनाव भी.
“कुछ देर से आने की बात हो रही थी.” मॉम ने ठीक से चेहरा पढ़ने के लिए पूछा.
“हां वो डिनर करके आएगी. मैं चलता हूं दो घंटे में आ जाऊंगा. आज मेरे पसंद का चिकन बनाना. तुम्हारी लाड़ली बहू नॉन वेज नहीं खाती, तो उससे बनवाना भी अच्छा नहीं लगता.” संदेश निकलते हुए बोला.
“कैसी रही? आगे का क्या प्लान है?" हितेश ने सपना का फोन उठाते ही उत्सुकता से पूछा.
“उसके फेशियल एक्स्प्रेशन से लगा तो बिल्कुल नहीं कि जेलस है, लेकिन हां, परेशान हो गया था. अरे हां अनामिका आपके साथ ही है न? संदेश कह रहा था उसे रास्ते वगैरह याद नहीं हैं.” सपना के स्वर में चिंता थी.
“हां भई! मेरी भी बेटी है वो. तुमने क्या मुझे इतना ग़ैरज़िम्मेदार समझा है. उसे पूरी तरह आत्मनिर्भर बनाने और इंटीरियर डेकोरेटर के रूप में उसका रजिस्ट्रेशन कराने में बस आज का दिन लगेगा. आज मेरा संकल्प और तोहफ़ा दोनों पूरे हो जाएंगे. बस आने में थोड़ी देर हो जाएगी.”
“वेरी गुड! इसका मतलब वो डिनरवाले डायलॉग आपने लिखे थे. मैं कहूं कि बच्ची समझदार हो गई. यहां भी आख़िरी डोज़ बाकी है. अरे हां आपने वो अनामिका की किसी के साथ दोस्ताना दिखाती हुई कुछ फोटो तो एडिट कर फेसबुक पर अपलोड कर दी है न? मैं उसे अपने सामने दिखाउंगी ताकि एक्स्प्रेशन्स पढ़ सकूं.”
“येस मैम! काम पूरा है.”
“ठीक है, रखती हूं.”
“ज़रा सुनो!” सपना फोन रखने ही वाली थी कि हितेश की असमंजस भरी आवाज़ सुनकर रुक गई.
"हम ठीक तो कर रहे हैं न? आई मीन प्लान क्या है?"
“अरे, आप तो ऐसे कह रहे हैं जैसे हम उसे सच बताएंगे ही नहीं. चिंता न कीजिए.” सपना ने आश्‍वासन दिया.
“फोटो देखकर कहीं संदेश भड़क गया तो?”
“इसी का तो इंतज़ार है. भड़के तो समझाया जाए कि जो स्पेस वो अनामिका को दे नहीं सकता, वो मांगने का भी उसे कोई हक़ नहीं है.”
“और अगर नहीं भड़का. उसने इसे सामान्य ढंग से लिया तो?”
“तो अनामिका को ये समझाया जा सकेगा कि संदेश जो स्पेस मांग रहा है, वो देने को भी तैयार है. इसका मतलब वो सच में आधुनिक है और उसके मन में कोई चोर नहीं है.”
“इसका मतलब आज हमारी अनु को अपने पति से या तो सातवें वचन का तोहफ़ा मिल जाएगा या उसे समझ आ जाएगा कि उसे इसकी कोई ज़रूरत नहीं.” हितेश ने अपने बगल में बैठी अपने प्रोजेक्ट में रंग भरती अनामिका की ओर देखकर मुस्कुराते हुए कहा.
अनामिका स्पीकर पर लगे फोन से सास की भी बातें सुन रही थी.
“मेरा मन तो अभी से ख़ुश हो गया डैड. आत्मनिर्भरता और अपनी प्रतिभा के प्रस्फुटन की राह दिखाने का जो तोहफ़ा आप लोगों ने मुझे दिया है वो अनमोल है. जिसके माता-पिता इतने सुलझे हुए और सहयोगी हों उसके मन में कोई चोर कैसे हो सकता है?” अनामिका की आंखें कृतज्ञता से भीग गईं थीं.

- भावना

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Photo Courtesy: Freepik

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