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लघुकथा- शरद पूर्णिमा (Short Story- Sharad Purnima)

शीतल, मंद, सुगंधित पवन यों लहरा रही थी मानो शरीर को गुदगुदाते हुए आत्मा में उतर जाना चाहती हो. दादी की बगिया के चांदनी में नहाए फूल जैसे मस्ती में नृत्य कर रहे थे. ज़मीन हरसिंगार के फूलों से पटी हुई थी. कुछ ही देर में बच्चों के मन में इतना आह्लाद भर गया, जो उन्होंने शायद पहले कभी महसूस नहीं किया था.

दादी मां, " मैंने सबके लिए खीर बनाई है. चलो टुन्नू, मुन्नी आज छत पर थोड़ी देर टहलते हैं फिर वहीं बैठकर खाएंगे. आज शरद पूर्णिमा है. आज चंद्रमा से अमृत टपकेगा."

Sharad Purnima


टुन्नू, "हा.. हा.. हा… दादी, आज के वैज्ञानिक युग में भी आप ये सब मानती हैं."
मुन्नी, "मुझे तो गृहकार्य करने के बाद टीवी देखना है."
टुन्नू, "और मुझे वीडियो गेम खेलने हैं. हमें नहीं खानी खीर-वीर."
ये वही टुन्नू-मुन्नी हैं, जो छुटपन में हर समय मेरे आगे-पीछे लाड़ लड़ाते रहते थे?.. दादी की आंखें नम हो गईं और पापा ने देख लिया.
पापा, "आज कोई वीडियो गेम या टीवी नहीं चलेगा. सब छत पर चलेंगे."
बच्चों ने बड़ी हसरत से मम्मी की ओर देखा, पर वहां भी निराशा हाथ लगी. वो तो पहले से ही दादी के कहने पर छत पर मेज कुर्सी सजाने में लगी थीं. चलते समय दादी ने मम्मी-पापा के हाथ से स्मार्ट फोन भी लेकर रख दिया, तो बच्चों को शरारती हंसी आ गई.

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शीतल, मंद, सुगंधित पवन यों लहरा रही थी मानो शरीर को गुदगुदाते हुए आत्मा में उतर जाना चाहती हो. दादी की बगिया के चांदनी में नहाए फूल जैसे मस्ती में नृत्य कर रहे थे. ज़मीन हरसिंगार के फूलों से पटी हुई थी. कुछ ही देर में बच्चों के मन में इतना आह्लाद भर गया, जो उन्होंने शायद पहले कभी महसूस नहीं किया था. मम्मी-पापा के हाथ में आज फोन, लैपटॉप कुछ नहीं था, तो वे ऑफिस के काम भी नहीं निपटा सकते थे.
अचानक टुन्नू को अपनी समस्या याद आ गई और उसे लगा उसको पापा के साथ बांटने का इससे अच्छा मौक़ा हो ही नहीं सकता. मुन्नी को भी कुछ ऐसा ही लग रहा था.
बात निकली तो दूर तलक गई. बच्चों को लगा वे व्यर्थ में ही इतने तनाव पाले हुए थे. उनकी हर समस्या का समाधान तो मम्मी-पापा के पास है, जिनसे विमर्श करने का पहले ख़्याल ही नहीं आया था. मन हल्का हुआ, तो गीत ज़ुबान पर आने लगे. दादी ने अंताक्षरी का सुझाव दिया, तो सहमति बन गई.

Sharad Purnima


फिर तो मुन्नी का गिटार, टुन्नू का केसियो, मम्मी का तबला आनन-फानन में उनके साथ जुड़ गए. हंसी ठहाकों और मधुरिम गीतों के बीच बारह बजे, तो खीर निकाली गई. आज ये खीर बच्चों को स्वादिष्टतम व्यंजन लग रही थी. तनाव मुक्ति का, स्वस्थ पारिवारिक मनोरंजन का, संघर्षभरे रास्तों पर ख़ुद के अकेले न होने की संतुष्टि का अमृत जो उसमें घुल चुका था.
टुन्नू-मुन्नी, "दादी, आप ठीक कह रही थीं. इसमें तो वास्तव में अमृत घुल गया लगता है. थोड़ी और दीजिए.

bhaavana prakaash
भावना प्रकाश


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Photo Courtesy: Freepik

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