"आइए… आइए, बच्चे सुबह से परेशान हैं सीमा आंटी के लिए…" शेखर ने दरवाज़ा खोला, बच्चे आकर लिपट गए. बिटिया को देखकर मेरा मन भर आया, हूबहू अपनी मां जैसी. औपचारिक बातों के बीच मेरी निगाहें, तो मलाड वाली सुंदरी को ढूंढ़ यह थीं, जो इस त्रासदी की खलनायिका थी.
बिना मन के मैं चुपचाप कार में आकर बैठ गई. कहां जा रही हूं मैं? अपनी सखी के हत्यारे के घर?.. जहां मेरी दिवंगत सहेली की सौतन बांहें फैलाकर मेरा स्वागत करेगी?
"पता नहीं क्यों इतनी परेशान हो? विभा तुम्हारी सहेली थी, तो शेखर भी मेरा दोस्त है. इतने सालों बाद अचानक मिल गया, बुलाने लगा… तो क्या मैं मना कर देता?" कार चलाते हुए विशाल मुझे सफ़ाई देने लगे.
"मेरी सहेली थी वो! इसी शेखर की वजह से गई वो दो बच्चों को छोड़कर…" मेरी आवाज़ भर्रा गई.
"तुम विभा की आत्महत्या के लिए शेखर को क्यों ज़िम्मेदार मानती हो? हर घर में पति-पत्नी लड़ते हैं, हर पत्नी पंखे से नहीं लटक जाती!"
मैं कुछ कहते-कहते रुक गई. विभा उस मनहूस दिन से ठीक एक दिन पहले मुझसे मिलने आई थी, "सीमा… मेरा शक सही निकला! मलाड में शेखर ने एक फ्लैट किराए पर लिया हुआ है. शनिवार-इतवार वहीं रुकते हैं सेक्रेटरी के साथ… मीटिंग-वीटिंग सब बहाना है. कल कह रहे थे कि जैसा चल रहा है चलने दो, नहीं तो तलाक़ ले लो. बच्चों की शक्ल देखने को तरसा दूंगा… मैं क्या करूं…"
घंटों मेरे पास बैठकर फूट-फूटकर रोती रही. मुझे नहीं पता था कि वो हमारी आख़िरी मुलाक़ात थी.
अगली सुबह हुई उसके बच्चों की दर्दनाक चीखें सुनकर… इच्छा तो ये हो रही थी कि जब पत्नी के पार्थिव शरीर को देखकर शेखर बिलख रहा था, तो कॉलर पकड़कर बोलूं, "आत्महत्या नहीं, हत्या है ये! ले आओ अपनी माशूका अब…" सोचती ही रही मैं, हिम्मत कर नहीं सकी.
दस दिनों बाद ही विशाल का तबादला हो गया और मुंबई, विभा, शेखर सब अतीत का हिस्सा बन गए. और आज इतने सालों बाद मुंबई आते ही मिलना.
"आइए… आइए, बच्चे सुबह से परेशान हैं सीमा आंटी के लिए…" शेखर ने दरवाज़ा खोला, बच्चे आकर लिपट गए. बिटिया को देखकर मेरा मन भर आया, हूबहू अपनी मां जैसी. औपचारिक बातों के बीच मेरी निगाहें, तो मलाड वाली सुंदरी को ढूंढ़ यह थीं, जो इस त्रासदी की खलनायिका थी.
"और बताइए! आपके मलाड वाले रिश्तेदार कैसे हैं?" मेरे पति का कोई फोन आ गया था, मैंने मौक़ा पाकर धमाका किया, लेकिन शेखर के चेहरे पर कोई भाव नहीं आए.
"मुझे पता है कि विभा आपको सब बता चुकी थी." शेखर शून्य में देखते हुए बोला जा रहा था.
"मुझे होश आया, लेकिन बहुत देर हो चुकी थी… बस उसी दिन से कोई और रिश्ता नहीं शेष रहा सीमाजी… बस मैं, विभा की यादें और हमारे बच्चे." बोलते-बोलते शेखर मुझे अपने कमरे में ले गया.
चंदन की माला चढ़ी विभा की आदमकद तस्वीर को शेखर एकटक देख रहा था… और मुस्कुराती हुई विभा, प्रायश्चित रूपी श्रृद्धांजलि स्वीकार कर रही थी.
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