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बोध कथा- स्वर्ग और नर्क (Short Story- Swarg Aur Narak)

गुरुजी ने बताया, "ये नरक है."
फिर गुरुजी उसे दूसरे कमरे में ले गए. वहां का नज़ारा भी वैसा ही था.
शिष्य ने पूछा, "दोनों में फ़र्क़ क्या है?"
गुरु ने प्रतीक्षा करने को कहा. खाना लगा और लोग कौर सामनेवाले के मुंह में डालने लगे. शिष्य समझ गया ये स्वर्ग है.

एक बार एक शिष्य ने गुरु से पूछ, "स्वर्ग और नर्क कहां होते हैं? कैसे होते हैं?
गुरु ने कहा, "समय आने पर बताऊंगा. कुछ दिन बाद गुरु शिष्य को एक बड़े कमरे में ले गए, जहां बीच में एक लंबी-सी मेज पड़ी थी. दोनों तरफ़ लोग कुर्सियों पर बैठे थे, लेकिन उनके हाथ एक लकड़ी के साथ इस तरह बंधे थे कि वे हाथ मोड़ नहीं सकते थे.

थोड़ी देर बाद खाना लगा. वे खाना खाने की कोशिश करने लगे, पर खा न सके. खाना सामने था, पर वो उसे खा नहीं सकते थे. खाना खाने के प्रयास में उनके हाथ घायल हुए जाते थे.


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गुरुजी ने बताया, "ये नरक है."
फिर गुरुजी उसे दूसरे कमरे में ले गए. वहां का नज़ारा भी वैसा ही था.
शिष्य ने पूछा, "दोनों में फ़र्क़ क्या है?"
गुरु ने प्रतीक्षा करने को कहा. खाना लगा और लोग कौर सामनेवाले के मुंह में डालने लगे. शिष्य समझ गया ये स्वर्ग है.


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तब गुरु ने बताया कि हम सब अपूर्ण हैं. हमारे साथ अलग-अलग क़िस्म की विवशताएं हैं, जिनके कारण हम अपनी ख़ुशी स्वयं पूरी नहीं कर सकते. स्वर्ग और नर्क सब यहीं है. सहकारिता से जीवन स्वर्ग तथा स्वार्थ से नरक बनता है.

  • भावना प्रकाश

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Photo Courtesy: Freepik

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